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विभागों में समन्वय नहीं, खतरे में ऐतिहासिक किलों का अस्तित्व

संरक्षण और पर्यटन की दृष्टि से विकास की दरकारलोग बाले- सम्बंधित विभाग समन्वय बनाएं, जनप्रतिनिधि भी इच्छाशक्ति दिखाएं

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historical forts in danger

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जबलपुर. आजादी के अमृत महोत्सव पर अंचल में स्थित ऐतिहासिक किलों की श्रृंखला को संरक्षित के साथ उन्हें पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने की दरकार है। क्योंकि, मौजूदा स्थिति में इन धरोहरों की हालत बदहाल है। डेढ़ दर्जन से अधिक किलों में से कुछ तक पहुंचने के मार्ग ही नहीं हैं। जानकारों का कहना है कि रिजर्व फारेस्ट एरिया में पुरातात्विक दृष्टि से इनके संरक्षण में वन विभाग की बाधा सामने आती है। इसे लेकर सम्बंधित विभागों के बीच समन्वय का अभाव है। उच्चाधिकारियों को इस मामले में हस्तक्षेप कर संरक्षण के लिए ठोस पहल करनी होगी। जनप्रतिनिधियों को भी इच्छाशक्ति दिखानी होगी।
सामाजिक कार्यकर्ता रजत भार्गव का कहना है कि इन धरोहरों को शीघ्र संरक्षित करने की जरूरत है। शासन और जनप्रतिनिधियों को इस मसले में गम्भीरता दिखानी होगी। लक्ष्मीकांत शर्मा का कहना है कि धरोहरों को पर्यटन के लिहाज से विकसित करने की जिम्मेदारों में दृष्टि का अभाव साफ नजर आता है। इनके संरक्षण से लेकर पर्यटन विकास में आने वाली समस्त बाधाओं को समय रहते दूर किया जाना चाहिए, तभी प्राचीन वैभव नई पीढ़ी के लिए बचाया जा सकता है। संजय राजपूत का मत है कि इस मसले को जिम्मेदार गम्भीरता से लें। संरक्षण की दिशा में तत्काल काम शुरू कराएं।
ये है विरासतों का समृद्धि अतीत
मदन महल का किला : जबलपुर में यह 16-17वीं शताब्दी में निर्मित गोंड वास्तुकला का अद्भुत नमूना है।
गोंड किला देवगढ़ : छिदवाड़ा जिले में यह किला 15-16वीं सदी में निर्मित स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है।
रंगमहल हट्टा : दमोह जिले में 1804 में निर्मित स्मारक मराठा शैली का उदाहरण है। यह खंडहर अवस्था में है।
जटाशंकर किला हट्टा : दमोह जिले में 1643 में राजा शाहगढ़ के अधिकारी ने परकोटानुमा किला बनवया था
पुराना किला लांजी : बालाघाट जिले में 1114 में कलचुरी राजाओं ने बनवाया था। अब खंडहर अवस्था में है।
राजनगर किला : दमोह जिले में 18वीं सदी मेें निर्मित इस किले के अब अवशेष ही बचे हैं।
सिंगौरगढ़ का किला- दमोह जिले में रानी दुर्गावती के समय का किला। पिछले साल राष्ट्रपति ने दौरा किया था।
मंडला का सतखंडा शाहबुर्ज किला : गोंड शासकों ने इसे गोलाकार बुर्ज की तरह 15-16वीं सदी में बनाया था।
अजयगढ़ किला और उसके अवशेष : पन्ना जिले में चंदेल राजाओं ने विंध्य की पहाड़ी पर 11-12वीं सदी में बनाया था।
देवरी का किला : सागर जिले में चंदेल राजाओं ने इसे बनवाया। 1813 में यहां आग लगने से बस्ती खत्म हो गई।
धामोनी किला एवं रानी महल : सागर जिले में 17वीं सदी में इसे बुंदेला सरदार ने विंध्य पर्वत श्रृंखला पर बनवाया था।
गौड़झामर का किला : सागर जिले में 17वीं शताब्दी निर्मित यह बुंदेलखंड का महत्वपूर्ण किला है। अब खंडित अवस्था में है।
खिमलासा का किला : सागर जिले में 17वीं शताब्दी में बने किले की दीवार स्थित है। इसके अंदर कई स्मारक हैं।
राहतगढ़ का किला : सागर जिले में 11-12वीं में निर्मित इस किले को गोंडों के 52 गढ़ों में से एक माना गया है।
बेगम महल रामनगर : मंडला जिले में यह किला महल गोंड वास्तुकला का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करता है।
दल-बादल महल चौगान रामनगर : मंडला जिले में 16-17वीं सदी में बने इस धरोहर के अब सिर्फ कुछ अवशेष ही बचे हैं।
गढ़ी का किला बैहर : बालाघाट जिले में 16-17वीं शताब्दी में गोंड वंश के राजाओं ने इसे ईंट-पत्थर से बनवाया था।
गढ़ पहरा का किला : सागर जिले में 18वीं सदी में राजा जयसिंह ने इसे बुंदेली शैली में पहाड़ी पर बनवाया था।