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पितृपक्ष 2025 : इस जगह हुआ था दुनिया का पहला पिंडदान और श्राद्ध

पितृपक्ष 2025 : इस जगह हुआ था दुनिया का पहला पिंडदान और श्राद्ध

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Pitru Paksha 2025

Pitru Paksha Mela के लिए बिहार सरकार ने किया खास आयोजन। (फोटो सोर्स : AI)

Pitru Paksha 2025: संस्कारधानी के समीप एक ऐसा स्थान है जहां देवताओं के राजा इंद्र ने स्वयं अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान किया था। मान्यता है कि लम्हेटाघाट के समीप स्थित इंद्र गया से ही पिंडदान की शुरुआत हुई थी। आज भी यहां हजारों श्रद्धालु पिंड दान करने के लिए पहुंचते हैं। नर्मदा किनारे स्थित इंद्र गया में प्रकृति ने भी इतना सौंदर्य उड़ेला है कि लोग उसके आकर्षण में बंधे रह जाते हैं।

Pitru Paksha 2025: मनु ने भी किया था श्राद्ध

शास्त्रों में वर्णित है कि देवराज इंद्र ने अपने पूर्वजों की आत्मा को शांति प्रदान करने एवं मोक्ष के लिए नर्मदा के लम्हेटाघाट स्थित गयाजी कुण्ड में किया था। जिसका प्रमाण गयाजी कुण्ड के पास देवराज इंद्र के वाहन ऐरावत हाथी के पद चिह्न आज भी देखे जा सकते हैं। पुराणों के अनुसार पृथ्वी के प्रथम राजा मनु ने भी यहां पर अपने पितरों का श्राद्ध किया था । पौराणिक महत्ता के अनुसार नर्मदा को श्राद्ध की जाननकी कहा जाता है।

Pitru Paksha 2025: कहलाता है त्रिशूलभेद नागक्षेत्र

पुराणों के अनुसार तिलवाराघाट उत्तर दक्षिण तट त्रिशूलभेद नागक्षेत्र भी कहलाता है। त्रिशूलभेद की महत्ता का उल्लेख नर्मदा पुराण में किया गया है। जिसमें बताया गया है कि नर्मदा परिक्षेत्र में किया गया श्राद्ध गया गंगा के गया तीर्थ से भी सर्वोपरि है।

Pitru Paksha 2025: कुम्भेश्वर तीर्थ में कटते हैं संकट

लम्हेटाघाट में एक अन्य कुम्भेश्वर तीर्थ भी मौजूद है। इसके लिए कथा प्रचलित है कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, लक्ष्मण व हनुमान ने ब्रह्म हत्या व शिव दोष से मुक्ति के लिए 24 वर्ष तक तपस्या व उपासना की थी। इसके प्रमाण स्वरूप यहां का कुम्भेश्वर तीर्थ मंदिर है, जिसमें एक जिलहरी पर दो शिवलिंग स्थापित हैं।

Pitru Paksha 2025: नर्मदा आई तब मिली पितरों को मुक्ति

स्कंद पुराण के रेवाखंड के अनुसार श्राद्ध क्या है, क्यों करना चाहिए। इस बात पर विचार मंथन करते हुए बताया कि गया है कि प्राचीनकाल में ऋषि,मुनि, देवता और दानवों को भी श्राद्ध का पता नहीं था। जिससे उनके पितरों की आत्माएं पृथ्वी लोक में भटकती रहती थीं। सतयुग के आदिकल्प के प्रारंभ में जब मां नर्मदा पृथ्वी पर प्रकट हुईं, तब स्वयं पितरों द्वारा ही श्राद्ध किया गया और उन्हें मुक्ति मिली। श्राद्ध कन्या के सूर्य राशि में भ्रमण के दौरान ही आश्विन कृष्ण पक्ष की पूर्णिमा से श्राद्ध अर्थात महालय से अमावस्या के तक किया जाता है।