
sawan ka mahina 2018 : somnath mandir gujrat
जबलपुर। सावन का महीना आनेवाला है और इसी के साथ देशभर में शिवपूजन की तेयारियां शुरु होने लगी हैं। सावन माह में शिवभक्त ज्योतिर्लिंगों का दर्शन करने भी निकलते हैं। ज्योतिर्लिंगों में सोमनाथ का स्थान सबसे अहम है। भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में इसे सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में माना व जाना जाता है। गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में सोमनाथ का मन्दिर स्थित है।
सोमनाथ मन्दिर गुजरात का अत्यन्त प्राचीन व ऐतिहासिक मन्दिर है। यह मंदिर हिंदू धर्म के उत्थान-पतन के इतिहास का प्रतीक रहा है। यहां तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का संगम होता है। अत्यंत वैभवशाली होने के कारण यहां कई विदेशी आक्रांताओं ने आक्रमण किए और कई बार यह मंदिर तोड़ा तथा पुनर्निर्मित भी किया गया। वर्तमान भवन के पुनर्निर्माण का आरंभ भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने करवाया और पहली दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया। सोमनाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटन स्थल है। लोककथाओं के अनुसार यहीं श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया था। इस कारण इस क्षेत्र का और भी महत्व बढ़ गया। यह तीर्थ पितरों के श्राद्ध, नारायण बलि आदि कर्मो के लिए भी प्रसिद्ध है। चैत्र, भाद्रपद, कार्तिक माह में यहां श्राद्ध करने का विशेष महत्व बताया गया है। इन तीन महीनों में यहां श्रद्धालुओं की बडी भीड़ लगती है।
सोमनाथ एक्सप्रेस जाती है शिवधाम
शिव के इस प्रिय धाम में जाने के लिए कई साधन है पर महाकौशल और मध्यप्रदेश वासियों के लिए ट्रेन से जाना सुविधाजनक होता है। जबलपुर से सोमनाथ के लिए एक ट्रेन चलाई गई है जोकि करीब ड़ेढ दिन में सफर पूरा करती है। ट्रेन क्रमांक 11464 जबलपुर-सोमनाथ एक्सप्रेस इटारसी होकर चलती है। यह ट्रेन जबलपुर से दोपहर 12 बजे रवाना होती है और दूसरे दिन 17.45 बजे सोमनाथ पहुंचती है। हफ्ते में दो दिन जबलपुर से सोमनाथ के लिए बीना होकर जाती है, जोकि सुबह 10 बजे जबलपुर से रवाना होती है।
अद्भुत है मंदिर
सोमनाथ मंदिर बहुत भव्य है। शिवभक्त पद्मावती स्वर्णकार बताती हैं कि समुद्र किनारे स्थित इस मंदिर में जाकर शिवलिंग का दर्शन और पूजन करना स्वर्गिक अनुभव है। जीवन में एक बार सोमनाथ ज्योतिलिंग जरूर जाना चाहिए। इस अनूठे मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में भी स्पष्ट रूप से किया गया है।
Published on:
19 Jul 2018 10:10 am
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