
Decision making, cases of SC ST Act decreased by 15 per cent
जबलपुर. मप्र हाईकोर्ट ने अहम फैसले में कहा है कि पिता का जन्म कहां हुआ, इससे कोई मतलब नहीं है। प्रदेश में जन्मे, पले-बढ़े व शिक्षा प्राप्त व्यक्ति को विस्थापित नहीं माना जा सकता। उसे स्थायी जाति प्रमाणपत्र पाने का अधिकार है। इस मत के साथ जस्टिस वंदना कसरेकर की कोर्ट ने पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी की उप निदेशक अपेक्षा जैन को तीन माह के अंदर स्थायी जाति प्रमाणपत्र जारी किए जाने के निर्देश दिए।
about- महत्वपूर्ण फैसले में हाईकोर्ट ने कहा- प्रदेश में जन्मे, पले-बढ़े व शिक्षित व्यक्ति का अधिकार है स्थायी जाति प्रमाणपत्र
टीटी नगर भोपाल निवासी व पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी में प्रभारी उप निदेशक पद पर कार्यरत अपेक्षा जैन की ओर से २०१६ में याचिका दायर की गई थी। इसमें कहा गया था कि याचिकाकर्ता के पिता मूल रूप से उप्र के निवासी व जाटव जाति से थे। यह जाति मप्र व उप्र दोनों राज्यों में एससी संवर्ग में है। उप्र के मेरठ जिले के गाजियाबाद तहसीलदार ने उनके पिता को इसका प्रमाणपत्र जारी किया था। १९८३ में उनकी मप्र में नौकरी लगी और वे यहां आ गए। १९८५ में भोपाल में याचिकाकर्ता का जन्म हुआ। उनका लालन-पालन व शिक्षा मप्र में हुई। मप्र पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी जबलपुर के अधीन अनुसूचित जाति वर्ग के लिए एकाउंट ऑफीसर ग्रेड २ के पद पर चयन के बाद २९ मार्च २००८ को नियुक्ति हुई। एक अप्रैल २०१३ को उन्हें पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी में इंदौर में उप निदेशक के पद का प्रभार देकर भोपाल में पदस्थ किया गया।
यह कहा कोर्ट ने
कोर्ट ने कहा कि एसडीएम ने ११ जुलाई २००५ के जिस सर्कुलर के आधार पर याचिकाकर्ता का आवेदन खारिज किया, वह सर्कुलर किसी के जन्म, लालन-पालन व शिक्षण से सम्बंधित नहीं है। याचिकाकर्ता विस्थापित नहीं, बल्कि मप्र की मूलनिवासी है। लिहाजा उसे स्थायी जाति प्रमाणपत्र पाने का पूरा अधिकार है।
Published on:
15 May 2018 02:45 pm
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