31 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

इंटरनेशनल बिजनेस छोड़कर मां नर्मदा की सेवा कर रहीं यूपी की शिप्रा पाठक

यूपी की युवती का मां नर्मदा की भक्ति में रमा मन, छोड़ दिया इंटरनेशनल बिजनेस

2 min read
Google source verification
Shipra Pathak-1

Shipra Pathak-1

जबलपुर. नर्मदा परिक्रमा के लिए शहर आई उत्तर प्रदेश के बास बरेली की युवती शिप्रा पाठक के मन में मां रेवा की भक्ति की ऐसी लगन लगी कि उन्होंने नर्मदा खंड को अपना जीवन समर्पित करने का निश्चय कर लिया। ग्वारीघाट तट पर शनिवार को श्वेत वस्त्र, गले में रुद्राक्ष की माला और नंगे पांव आचमन करता देख जिसे लोग साध्वी समझ रहे थे, दरअसल वे इंटरनेशनल बिजनेस विमेन हैं। वे अपनी अपनी इवेंट कम्पनी के कार्यों के लिए इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड, श्रीलंका, हांगकांग और मकाऊ आदि देशों से रिटर्न हो चुकी हैं। उन्होंने बताया कि वे मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और गुजरात के जरूरतमंदों की खुशहाली के लिए काम करना चाहती हैं।

नवम्बर 2018 से फरवरी तक अकेले ही सम्पूर्ण नर्मदा की परिक्रमा करने वाली शिप्रा पाठक ने शनिवार को 'पत्रिकाÓ से विशेष बातचीत में बताया कि मां नर्मदा की परिक्रमा के बाद वे उनसे दूर नहीं होना चाहतीं। ओंकारेश्वर से खम्भात खम्भात की खाड़ी, भरूच, जबलपुर, अमरकंटक, होशंगाबाद होते हुए दोनों तट की 3600 किमी परिक्रमा 108 दिन में करने के बाद उन्होंने नर्मदा तटों के प्राकृतिक सौंदर्य और जीवन दर्शन को अपने ढंग से देश-विदेश के लोगों तक पहुंचाने के लिए डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाने का निर्णय किया। फिल्म बनाने वाली टीम के छह लोग भी उनके साथ हैं। वे 11 ज्योतिर्लिंग, कैलाश धाम मानसरोवर, चार धाम, गोवर्धन और कामदगिरि की भी परिक्रमा कर चुकी हैं।

IMAGE CREDIT: patrika

औषधीय खेती से दिया रोजगार
शिप्रा पाठक ने बताया कि उन्होंने अंग्रेजी माध्यम से परास्नातक की डिग्री लेने के बाद पुणे में टेलीकॉम कम्पनी में नौकरी की। फिर अपनी इवेंट कम्पनी बना ली। उन्होंने गांव में श्यामा तुलसी, एलोवेरा, लेमन ग्रास आदि औषधीय पौधों की खेती शुरू की और एक सैकड़ा से अधिक लोगों को रोजगार दिया। कम्पनी और खेती को छोड़ कर अब उन्होंने भक्ति पथ को अपनाया है।

बेटी के लिए खुलते हैं सबके द्वार
शिप्रा पाठक ने बताया कि अकेले नर्मदा परिक्रमा करना चुनौतीपूर्ण था। उन्होंने नर्मदा परिक्रमा शुरू की तो सभी ने उन्हें बेटी जैसा प्यार दिया। बेटों को भले ही हर कोई मदद न करें, लेकिन बेटियों के लिए सबके दरवाजे खुल जाते हैं।