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जबलपुर. नगर निगम जनहित के मसलों को लेकर मप्र हाईकोर्ट में लम्बित याचिकाआें के प्रति गम्भीरता नहीं दिखा रहा। कानूनी दांवपेंच के चलते एेसे कई मामले कोर्ट के समक्ष अरसे से लम्बित हैं। आवारा पशुओं का आतंक हो, अतिक्रमण का मसला हो, सार्वजनिक नलों को काटने की बात हो या फिर अधूरी सीवर लाइन का मामला। सभी में कानूनी रोड़ा अटकाकर खींचा जा रहा है। मंगलवार को आवारा पशुओं के मामले पर नगर निगम ने फिर एक बार दो महीने की मोहलत मांग ली।
११ बार सुनवाई, नहीं बढ़ा जुर्माना
आवारा मवेशियों के आतंक को लेकर २००९ में दायर अवमानना याचिका पर २० मार्च २०१७ से लेकर छह फरवरी २०१८ तक ११ बार सुनवाई हो चुकी है। हाईकोर्ट में आवारा पशुओं पर जुर्माना बढ़ाने का प्रस्ताव नगर निगम की ओर से ही रखा गया था। इसे तीन हजार रुपए किया जाना है। मंगलवार को कोर्ट को बताया गया कि यह प्रस्ताव निगम की एमआईसी से पारित हो चुका है। अब इसे अप्रैल में सदन के समक्ष रखा जाना है। इस आधार पर निगम की ओर से सात मई तक की मोहलत मांग ली गई।
अतिक्रमण पर भी साल में आधा दर्जन पेशी
सरकारी जमीन व धार्मिक स्थल क ी आड़ में अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने को लेकर २०१४ में दायर अवमानना याचिका का भी कमोबेश यही हाल है। इसमें भी एक फरवरी २०१७ से लेकर अब तक छह पेशी हो चुकी हैं। निगम की कार्रवाई अस्थायी अतिक्रमण हटाने तक ही सीमित हो गई है। कई बड़े अतिक्रमणों की ओर निगम के अमले की नजर तक नहीं है।
सीवर का काम अधूरा, सार्वजनिक नल पर तीन सुनवाई- अधूरी सीवर लाइन व बेतरतीब काम, सड़कों की बदहाली के मसले पर २०१३ में एक याचिका निराकृत करने के बाद २१ सितम्बर २०१७ को कोर्ट ने स्वयं संज्ञान लेकर इस मसले पर जनहित याचिका दायर की। २२ सितम्बर २०१७ से दो जनवरी २०१८ तक इसमें चार सुनवाई हो चुकी हैं। वहीं, सार्वजनिक नल काटने के मसले पर जनवरी में दायर याचिका पर भी अब तक तीन सुनवाई हो चुकी हैं। लेकिन, जनता के सामने केवल कानूनी प्रक्रि या का ब्योरा आ रहा है, ठोस कार्य नहीं।
नगर निगम गम्भीरता नहीं बरत रहा। आवारा सुअरों का आतंक खत्म किए बिना स्मार्ट सिटी की कल्पना कैसे की जा सकती है? इसी तरह कई अवैध धर्मस्थल जो यातायात में बड़े बाधक हैं, उन पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।
- अधिवक्ता सतीश वर्मा, याचिकाकर्ता
नगर निगम की ओर से समय पर जवाब दिया जा रहा है। आवारा पशुओं या अतिक्रमण का मसला, कोर्ट के निर्देशों का पालन किया जा रहा है। कोर्ट इन मामलों की मॉनीटरिंग कर रहा है। इसलिए बार-बार रिपोर्ट मांगी जाती है।
- अधिवक्ता अंशुमन सिंह, नगर निगम
Published on:
07 Feb 2018 11:13 am
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