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गुरु पूर्णिमा विशेष: इस गुरु ने पूरे विश्व को बांटा अनूठा ज्ञान, इनके दर्शन में समाया है विज्ञान

गुरु पूर्णिमा पर विशेष

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Balmeek Pandey

Jul 08, 2017

story of the unique guru of the world

story of the unique guru of the world

जबलपुर। गुरु ब्रम्हा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा, गुरु साक्षात परमब्रम्ह तस्मै श्री गुरुवे नम:। ये श्लोक हमें बताता है कि जीवन में गुरु का क्या महत्व है। 9 जुलाई को पूरा विश्व गुरु पूर्णिमा महोत्सव मनाने जा रहा है। इस शुभ अवसर पर हम बताने जा रहे हैं संस्कारधानी के एक ऐसे शख्स व गुरु के बारे में जिसने पूरे विश्व में ज्ञान का प्रकाश फैलाया है। जिन्हें पूरी दुनिया महर्षि महेश योगी के नाम से जानती है। छत्तीसगढ़ से कटनी और कटनी से जबलपुर के बाद गुरुत्व का ऐसा प्रकाशपुंज फैलाया जो युगों-युगों के लिए अमर हो गया है। पूरे विश्व में भावातीत ज्ञान की अलख जगाई।

ये है वो शख्सियत
महर्षि महेश योगी का जन्म 12 जनवरी 1918 को छत्तीसगढ़ के राजिम शहर के पास पांडुका गांव में हुआ था। उनका मूल नाम महेश प्रसाद वर्मा था। उन्होंने कटनी और जबलपुर में प्रारंभिक शिक्षा के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से भौतिकी में स्नात की उपाधि अर्जित की। उन्होने तेरह वर्ष तक ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती के सानिध्य में शिक्षा ग्रहण की। महर्षि महेश योगी ने शंकराचार्य की मौजूदगी में रामेश्वरम में 10 हजार बाल ब्रह्मचारियों को आध्यात्मिक योग और साधना की दीक्षा दी।


हिमालय में की तपस्या
हिमालय क्षेत्र में दो वर्ष का मौन व्रत करने के बाद सन् 1955 में उन्होंने टीएम तकनीक की शिक्षा देना आरम्भ की। सन् 1957 में उनने टीएम आन्दोलन आरम्भ किया और इसके लिए विश्व के विभिन्न भागों का भ्रमण किया। महर्षि महेश योगी द्वारा चलाया गए आंदोलन ने उस समय जोर पकड़ा जब रॉक ग्रुप 'बीटल्सÓ ने 1968 में उनके आश्रम का दौरा किया। इसके बाद गुरुजी का ट्रेसडेंशल मेडिटेशन अर्थात भावातीत ध्यान पूरी पश्चिमी दुनिया में लोकप्रिय हुआ।

पूर्व पीएम इंदिरा गांधी भी थीं शिष्य
महर्षि महेश योगी ने वेदों में निहित ज्ञान पर अनेक पुस्तकों की रचना की। महेश योगी अपनी शिक्षाओं एवं अपने उपदेश के प्रसार के लिये आधुनिक तकनीकों का सहारा लेते हैं। उन्होने महर्षि मुक्त विश्वविद्यालय स्थापित किया जिसके माध्यम से 'आनलाइनÓ शिक्षा दी जाती है। अपनी विश्व यात्रा की शुरूआत 1959 में अमेरिका से करने वाले महर्षि योगी के दर्शन का मूल आधार था, 'जीवन परमआनंद से भरपूर है और मनुष्य का जन्म इसका आनंद उठाने के लिए हुआ है। प्रत्येक व्यक्ति में ऊर्जा, ज्ञान और सामथ्र्य का अपार भंडार है तथा इसके सदुपयोग से वह जीवन को सुखद बना सकता है।

फिर पहुंचे हॉलैंड
वर्ष 1990 में हॉलैंड के व्लोड्राप गांव में ही अपनी सभी संस्थाओं का मुख्यालय बनाकर वह यहीं स्थायी रूप से बस गए और संगठन से जुड़ी गतिविधियों का संचालन किया। दुनिया भर में फैले लगभग 60 लाख अनुयाईयों के माध्यम से उनकी संस्थाओं ने आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति और प्राकृतिक तरीके से बनाई गई कॉस्मेटिक हर्बल दवाओं के प्रयोग को बढ़ावा दिया।

story of the unique guru of the world

विदेश में चलाई राम मुद्रा
महर्षि योगी ने एक मुद्रा की स्थापना भी की थी। महर्षि महेश योगी की मुद्रा राम को नीदरलैंड में क़ानूनी मान्यता प्राप्त है। राम नाम की इस मुद्रा में चमकदार रंगों वाले एक, पांच और दस के नोट हैं। इस मुद्रा को महर्षि की संस्था ग्लोबल कंट्री ऑफ वल्र्ड पीस ने अक्टूबर 2002 में जारी किया था। डच सेंट्रल बैंक के अनुसार राम का उपयोग कानून का उल्लंघन नहीं है।


ग्रहण की अध्यात्म साधना
अपने गुरु स्वामी ब्रहानंद सरस्वती से आध्यात्म साधना ग्रहण कर भावातीत ध्यान की अलख जगाने के लिए महर्षि विश्व भ्रमण पर निकल पड़े। इस दौरान उन्होंने करीब सौ से अधिक देशों की यात्रा की। 1953 में ब्रह्मलीन हुए शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद को जब वाराणसी के दशमेश घाट पर जल समाधि देने लगे तब शोकाकुल गुरुभक्त महेश ने भी गंगा में छलांग लगा दी। फिर काफी मशक्कत के बाद गोताखोरों ने उन्हें किसी तरह बाहर निकाला।

दिया से संदेश
पांच फरवरी 2008 को महाशून्य में निलय हुए महर्षि महेश योगी ने कहा - मेरे न होने से कुछ नुकसान नहीं होगा। मैं नहीं होकर और भी ज्यादा प्रगाढ़ हो जाऊंगा...Ó उनके इन शब्दों से महर्षि पहले से अधिक प्रासंगिक और ज्यादा प्रगाढ़ हो गए थे।
महर्षि योगी ने भावातीत ध्यान के माध्यम से पूरी दुनिया को वैदिक वांग्मय की संपन्नता की सहज अनुभूति कराई। नालंदा व तक्षशिला के अकादमिक वैभव को साकार करते हुए विद्यालय, महाविद्यालय व विश्वविद्यालय की सुपरंपरा को गति दी। महर्षि द्वारा प्रणीत भावातीत ध्यान एक विशिष्ठ व अनोखी शैली है, जो चेतना के निरंतर विकास को प्राप्त करने का मार्ग दिखाती है। अब 200 से अधिक देशों में ज्ञान का प्रकाशपुंज जगमगा रहा है।

गजब का संदेश
योगी ने भारतीय संस्कृति के संदेशवाहक, आध्यात्मिक महापुरुष, विश्व बंधुत्व और आधुनिकता व संसार के महान समन्वयक होने का गौरव हासिल किया। नर्मदा के तट पर बसी ऋषि जाबालि की पवित्र नगरी जबलपुर से भावातीत उड़ान भरने वाली इस दिव्य विभूति ने अपने वैदिक ज्ञान से संपूर्णविश्व को आलौकित किया। महेश योगी बनकर संपूर्ण दुनिया को शांति और सदा चार की शिक्षा दी और विश्व भर में भारत का नाम रोशन किया। इस महापुरुष का व्यक्तित्व अजर-अमर है।

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