जबलपुर

परम्पराओं और उम्र की जंग जीतकर इस ‘शूटर दादी’ ने शूटिंग में रचे कई इतिहास, अब तीसरी पीढ़ी भी शूटर

परम्पराओं और उम्र की जंग जीतकर इस ‘शूटर दादी’ ने शूटिंग में रचे कई इतिहास, अब तीसरी पीढ़ी भी शूटर

जबलपुरDec 28, 2019 / 07:07 pm

abhishek dixit

Prakashi Tomar

जबलपुर. जिस उम्र में लोग रिटायर हो जाते हैं, उसी उम्र में घर की ड्योढ़ी से बाहर निकली प्रकाश तोमर सभी की आदर्श बन गई है। उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के ग्रामीण परिवेश में परम्पराओं को तोड़कर बेटियों को शूटिंग सिखाने की जिद में आगे बढ़ीं और खुद ‘शूटर दादी’ के रूप में फेमस हो गईं। अब उनके बेटे-बेटियों के बच्चों भी शूटिंग की दुनिया में नाम रोशन कर रहे हैं। उनकी सफलताओं पर फिल्म ‘सांड की आंख’ बनी तो यह परिवार देश-दुनिया में चर्चा में आया। शहर के राइट टाउन स्टेडियम से शनिवार सुबह आयोजित मिलावट के खिलाफ मिनी मैराथन में बेटियों की तरक्की का संदेश देने आई प्रकाशी तोमर ने अपनी रियल स्टोरी को पत्रिका से साझा किया।

बेटियों को पढ़ाओ और बचाओ
प्रकाशी तोमर (84 वर्ष) ने कहा, बेटी बचाओ, बेटी पढाओ और बेटो खिलाओ का संदेश देने आई हैं। परम्पराओं के कारण उनकी बेटी सीमा को शूटिंग की प्रैक्टिस शुरू करने के १० दिन बाद भी रोक दिया गया। फिर उन्होंने बेटियों के साथ गांव में बने जुगाड़ के रेंज में जाना शुरू किया। बेटी को सहयोग करते हुए निशाना सही लगा और उन्होंने शूटिंग का सफर शुरू कर दिया। उन दिनों खेतों में जग लेकर जाती थी और संतुलन बनाने के लिए घंटों खड़ी रहती थी। यूपी स्टेट चैम्पियनशिप २०१६ में उन्होंने गोल्ड मेडल जीतने के बाद पैशन को अलविदा कहा। उन्होंने कहा, सोच बदलनी चाहिए। मिलावटी चीज खाने वाले बच्चे आगे नही बढ़ सकते।

पूरा परिवार शूटर
बेटी सीमा तोमर वल्र्ड कप सिल्वर मेडलिस्ट एवं एशियन चैम्पियनशिप रेकॉर्ड होल्डर, बेटी रेखा तोमर ऑल इंडिया यूनिवसिर्टी मेडलिस्ट, पोती सोनिया नेशनल मेडलिस्ट, रूबी एवं प्रीति इंटरनेशनल मेडलिस्ट, पोता सचिन नेशनल प्लेयर, बेटी कुसुम के तीनों बेटे रवि, राम व रतन नेशनल प्लेयर, बेटी सरिता की बेटी मानवी, छोटे बेटे की बेटी नंदिनी नेशनल प्लेयर हैं।

नेशनल कोच से कैसे मिलेंगे इंटरनेशनल प्लेयर
आर्मी की शूटर सीमा तोमर ने कहा, सुविधाएं बढ़ी है लेकिन पर्याप्त नहीं हैं। इंडोर एसी रेंज की जरूरत है। सरकारी कैम्प में नेशनल लेवल के कोच हैं। जिसे इंटरनेशल लेवल का अनुभव नहीं है, वे कैसे इंटरनेशनल प्लेयर बनाएंगे। बेटियों के प्रति सोच बदलने की आवश्यकता है।

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