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इस शासक ने चलाया था भारत में चांदी का रुपया…जानिए नोटों का इतिहास

भारत में सबसे पहले शेरशाह सूरी ने 11.66 ग्राम के रुपए का चलन शुरू किया था जिसमें 91.7 प्रतिशत तक शुद्ध चांदी होती थी 

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Ajay Khare

Nov 10, 2016

the rupee of silver run by this ruler, shershah su

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जबलपुर। देश में 500 और 1000 रुपए के नोट बंद किए जाने के बाद पूरे विश्व में भारतीय मुद्रा चर्चा में है। हम आपको बताने जा रहे हैं भारतीय रुपया के प्रचलन का इतिहास। भारत में सबसे पहले रुपया का चलन शेरशाह सूरी ने सन 1540-45 में शुरू किया था। यह रुपया कागज का न होकर चांदी का था जिसका वजन 11.66 ग्राम था और जिसमें 91.7 प्रतिशत तक शुद्ध चांदी होती थी। भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान भी यह प्रचलन में रहा। पहले रुपए (11.66 ग्राम) को 16 आने या 64 पैसे या 192 पाई में बांटा जाता था। रुपये का दशमलवीकरण 1869 में सीलोन (श्रीलंका) में, 1957 में भारत में और 1961 में पाकिस्तान में हुआ। इस प्रकार एक भारतीय रुपया 100 पैसे में विभाजित हो गया। भारत में कभी कभी पैसे के लिए नया पैसा शब्द भी इस्तेमाल किया जाता था।


संस्कृत भाषा से निकला है रुपया
भारत विश्व की उन प्रथम सभ्यताओं में से है जहाँ सिक्का का प्रचलन शुरू हुआ। लगभग 6वीं सदी ईसा पूर्व में रुपए शब्द का अर्थ, शब्द 'रूपा से जोडा जा सकता है जिसका अर्थ होता है चाँदी। संस्कृत में रूप्यकम का अर्थ है चाँदी का सिक्का ।

रुपये का इतिहास
भारतीय एक रुपये का सिक्का 1862 में, भारतीय आधा आना का सिक्का 1945 में भारतीय एक रुपये का नोट 1917 में, भारतीय पाँच रुपये का नोट 1922 में भारतीय पाँच रुपये का नोट 1937 में भारतीय दस रुपये का नोट 1943 में अस्तित्व में आया।

the rupee of silver run by this ruler

1770 में शुरू हुए कागज के नोट
रुपयों के कागज़़ के नोटों को सबसे पहले जारी करने वालों में से थे 'बैंक ऑफ हिन्दुस्तान (1770-1832), 'द जनरल बैंक ऑफ बंगाल एंड बिहार (1773-75, वारेन हॉस्टिग्स द्वारा स्थापित) और 'द बंगाल बैंक (1784-91)। शुरुआत में बैंक ऑफ बंगाल द्वारा जारी किए गए कागज़़ के नोटों पे केवल एक तरफ ही छपा होता था। इसमें सोने की एक मोहर बनी थी और यह 100, 250, 500 आदि वर्गों में थे। बाद के नोट में एक बेलबूटा बना था जो एक महिला आकृति, व्यापार का मानवीकरण दशातज़ था। यह नोट दोनों ओर छपे होते थे, तीन लिपियों उर्दू, बंगाली और देवनागरी में यह छपे होते थे, जिसमें पीछे की तरफ बैंक की छाप होती थी।

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इस तरह बदलती रही भारतीय मुद्रा
अरबों ने 712 ईसवीं में भारत के सिंध प्रांत को जीत कर उस पर अपनी मुद्रा चलाई। बारहवीं शताब्दी तक दिल्ली के तुर्क सुल्तानों ने अरबी डिजाइन को हटाकर उनके स्थान पर इस्लामी लिखावटों को मुद्रित कराया। इस मुद्रा को टंका कहा जाता था। बाद में सोने, चांदी और तांबे की मुद्राओं का प्रचलन शुरू हो गया। सन् 1526 में मुग़लों का शासनकाल शुरू होने के बाद समूचे साम्राज्य में एकीकृत और सुगठित मौद्रिक प्रणाली की शुरूआत हुई। उप निवेशकाल के भारत के राजे-रजवाड़ों ने अपनी अलग मुद्राओं की ढलाई करवाई, जो मुख्यत: चांदी के रुपये जैसे ही दिखती थीं, केवल उन पर उनके मूल स्थान (रियासतों) की क्षेत्रीय विशेषताएं भर अंकित होती थीं।

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बैंक नोटों का प्रचलन
18 शताब्दी के उत्तराद्र्ध में, एजेंसी घरानों ने बैंकों का विकास किया। बैंक ऑफ बंगाल, द बैंक ऑफ हिन्दुस्तान, ओरियंटल बैंक कॉरपोरेशन और द बैंक ऑफ वेस्टर्न इंडिया इनमें प्रमुख थे। इन बैंकों ने अपनी अलग-अलग कागजी मुद्राएं उर्दू, बंगला और देवनागरी लिपियों में मुद्रित करवाई। लगभग सौ वर्षों तक निजी और प्रेसिडेंसी बैंकों द्वारा जारी बैंक नोटों का प्रचलन बना रहा। परन्तु 1861 में पेपर करेंसी क़ानून बनने के बाद इस पर केवल सरकार का एकाधिकार रह गया। महारानी विक्टोरिया के सम्मान में 1867 में पहली बार उनके चित्र की शृंखला वाले बैंक नोट जारी किए गए। ये नोट एक ही ओर छापे गए (यूनीफेस्ड) थे और पांच मूल्यों में जारी किए गए थे। 1935 में बैंक नोटों के मुद्रण और वितरण का दायित्व भारतीय रिज़र्व बैंक के हाथ में आ गया। जॉर्ज पंचम के चित्र वाले नोटों के स्थान पर 1938 में जॉर्ज षष्ठम के चित्र वाले नोट जारी किए गए, जो 1947 तक प्रचलन में रहे। भारत की स्वतंत्रता के बाद उनकी छपाई बंद हो गई और सारनाथ के सिंहों के स्तम्भ वाले नोटों ने इनका स्थान ले लिया।

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सिक्कों का निर्माण
सिक्कोंं के निर्माण के लिए अनेक धातुएं प्रयोग में लाई जाती थीं। इनमें सोना, चांदी तथा तांबा प्रमुख धातुएं थीं। सोना तो भारत में विपुल मात्रा में था। तांबा भी अयस्क के रूप में प्राप्त होता था। परंतु चांदी बहुत कम मात्रा में उपलब्ध थी इसलिए इसका आयात किया जाता था। सातवाहन वंश ने मुद्रा निर्माण में एक नया
मुद्रा निर्माण विधि

भारतीय नोट की विशेषताएँ
भारतीय रुपया 1957 तक तो 16 आनों में विभाजित रहा, परन्तु उसके बाद (1957 में ही) उसने मुद्रा की दशमलव प्रणाली अपना ली और एक रुपये की गणना 100 समान पैसों में की गई। महात्मा गांधी वाले कागजी नोटों की शृंखला की शुरूआत 1996 में हुई, जो आज तक चलन में है।
प्रचलन
भारतीय उप महाद्वीप में सरकारी मुद्रा को रुपया कहा जाता है। यह भारत के साथ ही भूटान, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, मॉरीशस, मालदीव और इंडोनेशिया जैसे कई देशों में प्रचलित हैं।