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एमपी के इस गांव से ब्रितानी हुकूमत के खिलाफ बजा था बिगुल, जान भी जाने जंगल कानून को लेकर क्या हुआ

जबलपुर जिले के पड़वार गांव के युवकों ने 31 जुलाई, १९३० को जंगल कानून के विरुद्ध शुरू हुआ था आंदोलन

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This village of MP used to play against the British rule

This village of MP used to play against the British rule

जबलपुर। फिरंगी हुकूमत ने आम आदमी का जीना मुहाल करने के लिए नजरिए से नमक कानून लागू किया था, जिसे दांडी मार्च निकाल कर महात्मा गांधी ने तोड़ा था। इसके ठीक बाद आम आदमी की जंगल पर निर्भरता को देखते हुए अंग्रेजों ने जंगल-कानून बनाकर किसी भी तरह की वनोपज पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इस कानून को भी नमक-कानून की तर्ज पर ही तोड़ा गया। लेकिन आपको जानकार आश्चर्य होगा कि इस कानून को तोडऩे और इसके विरोध का बिगुल कहीं और नहीं, बल्कि जबलपुर जिले से ही फूंका गया। बरेला से ग्यारह किमी दूर स्थिति पड़वार गांव में रहने वाले दर्जन भर युवाओं ने इस आंदोलन की शुरुआत 31 जुलाई 1930 को की थी।

आजादी के संघर्ष की अनूठी और साहसिक दास्तानों में से एक जबलपुर जिले के एक छोटे से गांव पड़वार की है। महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह से प्रभावित होकर गांव के नौजवानों ने तय किया कि वे अंग्रेजों द्वारा लगाए गए जंगल के संसाधनों के प्रयोग पर प्रतिबंध (जंगल कानून) का डटकर मुकाबला करेंगे। ...और उन्होंने ऐसा करके ही दम लिया।

दांडी यात्रा से प्रभावित थे नौजवान
इस कानून के लागू होने से जंगल के सुदपयोग और रक्षा करने वाले ग्रामवासियों के समक्ष लकड़ी व अन्य तरह की वनोपज का संकट खड़ा होने लगा। ग्रामवासियों की चिंता बढऩे लगी। जब यह बात नौजवानों तक पहुंची तो वे भड़क उठे। इस फिरंगी मनमानी से चार महीने पहले ही गांधी जी की नमक कानून तोडऩे (दांडी यात्रा) की खबर नौजवानों को लगी थी। जिससे उत्साहित होकर वो किसी भी कीमत पर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ की तैयारी में थे। चार माह पूर्व नमक कानून तोडऩे का जोश उनके अंदर हिलोर मार रहा था, जो जंगल कानून के विरोध में लामबंदी का कारण बना। देश में पहली बार 31 जुलाई 1930 को जंगल-कानून तोडऩे की तारीख पड़वार के इन्हीं नौजवानों की खिलाफत ने लिख दी थी।
जंगल के लिए निकल पड़े युवा
करीब दर्जन भर नौजवान बा-कायदा कुल्हाड़ी लेकर गांव से सटे जंगल की तरफ निकल पड़े। उन्होंने लकडिय़ां काटीं और उन्हें गांव में ही श्रीराम मंदिर के सामने मैदान में एकत्र कर दिया। ऐसा केवल इसलिए किया गया ताकि फिरंगी-हुक्मरानों तक इस खिलाफ की सूचना पहुंच जाए। यह सूचना जैसे ही ग्राम कोटवार के माध्यम से अंग्रेजी अधिकारियों तक पहुंची, पुलिस ने गांव के राम मंदिर स्थित मैदान में जहां काटी गई लड़कियां रखीं गई थी, उस स्थान को चारों तरफ से घेर लिया।
सीना तानकर बोला हमने तोड़ा कानून
राम मंदिर के सामने नौजवान एकत्रित थे, जब अंग्रेज अधिकारी ने उनसे पूछा कि जंगल का कानून तोडऩे की हिमाकत किसने की तो, सीना तानकर खड़े ठाकुर विशाल सिंह द्विवेदी, हरि सिंह द्विवेदी, बद्री प्रसाद चौबे, गिरजा प्रसाद दुबे, जगन्नाथ प्रसाद उपाध्याय, सरयू प्रसाद तिवारी, घसीटे लाल अग्रवाल, भैया लाल पंसारी, सुखदेव पंसारी, जैसे दर्जन भर युवक सामने आ गए और जोर से एक स्वर में कहने लगे हमने तोड़ा है यह कानून और ऐसा हम करते रहेंगे। उन्हें पहले समझाइश दी गई कि वे अपनी गलती मान ले और दोबारा ऐसा नहीं करने का आश्वासन दें तो वो कार्यवाही से बच सकते है। लेकिन राष्ट्रप्रेम के रंग में रंगे इन सभी नौजवानों ने अंग्रेज-अफसर की सलाह को ठुकरा दिया। नतीजतन 31 जुलाई 1930 की इस खिलाफत के लिए उन सभी को गिर तार कर जबलपुर ले आया गया।
पुलिस आयीं तो गांव में सन्नाटा छाया
वृद्धा क्रांतिकारी दशरथ सिंह द्विवेदी की पत्नी छबरानी बाई का कहना है कि जब गांव में पुलिस आई तो एक अजीब सा सन्नाटा छा चुका था, लोग डरे सहमे थे, गांव के ही लोगों से जानकारी मिली कि राममंदिर के सामने जोर-जोर से नारेबाजी चल रही है। उन्होंने बताया उनके पति दशरथ सिंह जंगल से लकड़ी काटने के बाद किसी काम से घर तक आए थे, जिन्हें उनके बड़े भाई ने किसी अनहोनी की आशंका को ध्यान में रखते हुए घर के एक कमरे में बंद कर बाहर से कुंडी लगाकर कुछ ऐसी व्यवस्था कर दी कि वह खुल न पाए लेकिन उत्साही दशरथ सिंह ने सरौतें का इस्तेमाल कर दरवाजे की कुंडी को खोल लिया और सीधे राममंदिर की तरफ दौड़ लगा दी, जहां पुलिस मौजूद थीं। जब सभी से पूछा जा रहा था कि जंगल का कानून किसने तोड़ा तभी भीड़ को चीरते हुए दशरथ सिंह अपने साथियों के पास खड़े हो गए और जोर-जोर से चिल्लाने लगे, हमने तोड़ा और यह हमारा हक है, जिसके लिए हम आगे भी ऐसा करते रहेंगे।
23 गिरफ्तारी, 12 को जेल
अंग्रेज अधिकारी के आदेश पर जब उनके हिन्दुस्तानी पुलिस रंगरूटों ने नौजवानों को गिरफ्तार करना शुरू किया तो एक बार फिर बड़े जोर-शोर के साथ भारत माता की जय, इंकलाब जिंदाबाद, हमें हमारा हक चाहिए के नारों से गांव की वादियां गूंज उठीं। इन सभी 12 नौजवनों को भारतीय दंड विधान की धारा 379 व 447 के तहत मुकदमा दर्ज कर जेल भेज दिया गया। जंगल कानून को तोडऩे के दौरान सबसे ज्यादा 23 गिरफ्तारियां जबलपुर जिले के इसी पड़वार गांव से हुई थीं, जिनमें 12 पर मुकदमा चलाया गया। इस दौरान विशाल सिंह को अगुवाई करने और बद्री प्रसाद चौबे के अक्खड़पन के कारण दोनों को सबसे ज्यादा 9 माह का कारावास भुगतना पड़ा था।
सत्याग्रह को लेकर दीवानगी
दशरथ सिंह के पुत्र व शिक्षक निरंजन सिंह द्विवेदी का कहना है कि उन्होंने बुजुर्गों से सुना है कि उस दौर में नौजवानों के अंदर नमक सत्याग्रह को लेकर गजब की दीवानगी देखी गई थी, वे किसी की सुनने तैयार नहीं थे, यहां तक कि जब बुजुर्गों ने उनसे संभावित खतरे का जिक्र कर शांत रहने की बात भी की तब भी उन्होंने इसे सिरे से खारिज कर यह कह दिया कि कल को वो हमसे सांस लेना बंद करने की बात कहेंगे तो क्या हम ऐसा करने लगेंगे। यह नहीं होगा, जंगल हम एक दूसरे पर निर्भर हमारे और जंगल के बीच में कोई नहीं आ सकता।

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