
स्लीमनाबाद में कर्नल स्लीमन की याद में बना स्मारक
जबलपुर। यशराज बैनर तले बनी फिल्म ठग्स ऑफ हिंदोस्तान रिलीज हो गई है। खबर है कि फिल्म ने पहले ही दिन 50 करोड़ रुपए से ज्यादा की कमाई कर ली। इसकी स्टोरी, किरदार, फिल्मांकन व अन्य सामग्री आदि को लेकर पक्ष-पक्ष में प्रतिक्रिया का दौर भी शुरू हो गया है, लेकिन फिल्म का यह नाम जबलपुर अंचल की धरती के उस दौर के इतिहास की यादें ताजा कर रहा है, जब यहां दिन दिहाड़े लोगों को ठग व लूट लिया जाता था। 17वीं और 18वीं सदी के दौरान बुंदेलखंड से विदर्भ और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में ठगों का आतंक था। यहां बेहराम और आमिर अली नामक ऐसे ठग थे, जिनके नाम पर सबसे ज्यादा हत्याएं इतिहास में दर्ज हैं। खास बात यह कि इन ठगों के खात्मे का मुख्य केन्द्र संस्कारधानी यानी जबलपुर ही रहा। आइए आपको भी अतीत से जुड़ी इस अनूठी सच्चाई से अवगत कराते हैं।
लूठ और ठगी का व्यवसाय
इतिहासविद अरुण शुक्ल की मानें तो जबलपुर से करीब 75 किलोमीटर दूर कटनी रोड पर स्थित स्लीमनाबाद व आसपास के कुछ क्षेत्रों में एक वर्ग लूट और ठगी का ही काम करता था। एक तरह से यह उनका परम्मपरागत व्यवसाय जैसा बन गया था। इस वर्ग के लोग राहगीरों को ठगकर या फिर लूटकर ही अपना परिवार चलाते थे। इसके अलावा और भी कई क्षेत्र थे जहां लूट के डर से शाम ढलने के बाद निकलना लोग जान से खिलवाड़ जैसा मानते थे। लूट और ठगी में किशोर और बच्चे तक शामिल रहते थे। इन गिरोहों ने अंग्रेजी हुकूमत तक की नींद मुश्किल कर दी थी। ये कभी पकड़ में नहीं आते थे।
कर्नल स्लीमन को मिली जिम्मेदारी
इतिहासकार राजकुमार गुप्ता के अनुसार उस समय स्लीमनाबाद के आसपास के क्षेत्र में मार्गों से यात्रा करने वाले लोगों को गायब कर दिया जाता है। उनका कभी पता नहीं चल पाता था। लोग दशहत में थे और ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी भी इस रहस्य से हैरान थे। बाद में कंपनी ने कैप्टन विलियम स्लीमैन को गायब हो रहे लोगों के रहस्य का पता लगाने की जिम्मेदारी सौंपी। बताया गया है कि इंग्लेंड से आए कर्नल स्लीमन ने भारत में 1806 में बंगाल आर्मी ज्वाइन की थी। 1814-16 में नेपाल युद्ध में सेवाएं दीं और फिर 1820 में सिविल सेवा में आए। इसके बाद उन्हें जबलपुर में गवर्नर लॉर्ड विलियम का सहायक बनाया। इसी दौरान उन्होंने बनारस से नागपुर तक सक्रिय ठगों और पिंडारियों के उन्मूलन के लिए स्लीमनाबाद में अपना कैंप लगाया। ठगी प्रथा के उन्मूलन के बाद यहां उन्होंने मालगुजार गोविंद से 56 एकड़ जमीन लेकर स्लीमनाबाद बसाया था।
ऐसे लगाया शातिर ठग का पता
कैंप और भ्रमण के दौरान स्लीमैन को पता चला कि 200 सदस्यों का एक ऐसा गिरोह है जो लूटपाट के लिये हत्या करता है। इसी वजह लोग घर नहीं लौट पाते और उनके गायब होने की चर्चा फैल जाती है। लूट और हत्या की वारदातों को अंजाम देने वालों का मुखिया वास्तव में बेरहाम ठग है। बेरहाम मुख्यमार्गों और जंगलों पर अपने साथियों के साथ घोड़ों पर घूमता था। इस पतासाजी के बाद कंपनी ने ठगों के खिलाफ विलियम स्लीमैन इंचार्ज बना दिया, और मुख्यालय जबलपुर में बनाया गया। करीब 10 साल की कड़ी मशक्कत के बाद बेरहाम पकड़ा गया और तब सारी चीजों का खुलासा हुआ। सभी ठगों को पेड़ पर लटकाकर फांसी दे दी जाती थी। इनमें से कुछ पेड़ आज भी स्लीनाबाद में मौजूद हैं। जबलपुर से करीब 75 किमी दूर कटनी जिले के कस्बे स्लीमनाबाद को कर्नल हेनरी विलियम स्लीमन के नाम से ही बसाया गया है। गौरतलब है कि कर्नल स्लीमैन ने ही 1400 ठगों का फांसी दी थी और उनकी सहायता करने वाले कई ठगों और उनके बच्चों को समाज की मुख्यधारा में जोडकऱ उनका पुनर्वास भी कराया था। स्लीमनाबाद में आज भी कर्नल स्लीमन के नाम का स्मारक है।
गुरंदी बाजार से रिश्ता
ठगी प्रथा के खात्मे के बाद बचे हुए ठग गुरंदे कहलाए। जिंदा बचे ठगों और उनके बच्चों व परिवार का वर्तमान गुरंदी बाजार में पुनर्वास किया गया। इसलिए इसे गुरंदी बाजार कहा जाने लगा। गुरंदी में हर वह चीज मिला करती थी, जिसका मिलना उस दौरान किसी और जगह मिलना नामुमकिन होता था।
जबलपुर में खुला दरीखाना
ठगी पृथा का अंत के पीछे एक अहम पहल भी छिपी है, जिसके कारण ठगी पृथा को समूल नष्ट किया जा सका। इतिहासकारों के अनुसार ठगों के खात्मे के बाद उनके बच्चों को जीवन यापन करने अन्य व्यवसाय सिखाना आवश्यक था। जिसके लिए जबलपुर में रिफॉर्मेट्री स्कूल खोला गया था। वर्तमान में यहां पर पॉलीटेक्निक कॉलेज स्थित है। इस स्कूल में ठगों के बच्चों को तरह-तरह के व्यवसाय सिखाए गए थे। जिसमें दरी बनाना प्रमुख था। जहां ये काम करते थे वह स्थान आज भी दरीखााना के नाम से प्रसिद्ध है।
फैक्ट्स ऑफ ठग
- ठगों की भाषा रामासी थी। जो गुप्त और सांकेतिक थी।
- ठगों का मूल औजार तपौनी का गुड़, रूमाल और कुदाली प्रमुख होता था।
- ठग अपने शिकार को बनिज कहते थे, जिनका रूमाल से गला घोंट दिया जाता था।
- मूलत: ठग काली के उपासक थे, जिसमें मुस्लिम ठग भी शामिल थे।
- 1839 में फिलिप मीडोज टेलर की बुक कन्फेशंस ऑफ ए ठग से ठगी प्रथा का पता चला।
- ठग बेहराम ने 931 और आमिर अली ने 700 से ज्यादा हत्याएं की थी।
Published on:
11 Nov 2018 06:19 pm
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