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नाथूराम नहीं कुछ और ही था गांधीजी के हत्यारे का नाम

अंग्रेजी की स्पेलिंग के कारण हुई बड़ी गड़बड़ी, इतिहास में दर्ज हो गया त्रुटिपूर्ण नाम

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Prem Shankar Tiwari

Jan 30, 2016


@प्रशांत गाडगिल। महात्मा गांधी की हत्या किसने की थी...? देश में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसकी जुबान नाथूराम गोडसे का नाम नहीं आए.., लेकिन सच कुछ और है। गांधीजी की हत्या नाथूराम ने नहीं... बल्कि नथूराम ने की थी। यह सच दस्तावेजों में सामने आया है। दरअसल अंग्रेजी भाषा के उच्चारण की वजह से नथूराम लोगों के लिए नाथूराम हो गया और एक बड़ी शाब्दिक त्रुटि इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई। वैसे नथूराम का वास्तवितक नाम रामचन्द्र भी था। 30 जनवरी का ही दिन था जब नथूराम ने गांधीजी की हत्या की थी। पुण्य तिथि पर शनिवार को देश ही नहीं पूरा विश्व गांधीजी को याद करके उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करेगा।

ये हुई छोटी सी चूक
30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या करने वाला नाथूराम विनायक गोडसे दुनियाभर में कुख्यात है, लेकिन यह बहुत कम लोगों को मालूम है कि उनको उनके परिवार वाले नाथूराम नहीं बल्कि नथूरामÓ कहते थे। अंग्रेजी में लिखी गई स्पेलिंग के कारण नथूरामÓ नाथूराम हो गए और गांधीजी की हत्या के बाद उसका यही नाम दुनिया भर में प्रचलित हो गया। नथूरामÓ नाम के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है।

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ये है दिलचस्प कहानी
नथूराम गोडसे का जन्म 19 मई 1910 को महाराष्ट्र में पुणे के निकट बारामती नमक स्थान पर चित्त पावन मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। नथूराम के जन्म का नाम रामचन्द्र था। गोडसे की भतीजी और गोपाल गोडसे की पुत्री हिमानी सावरकर ने लिखा है कि नथूराम के जन्म से पहले इनके माता-पिता की सन्तानों में तीन पुत्रों की अल्पकाल में ही मृत्यु हो गई थी, केवल एक पुत्री ही जीवित बची थी।


माता-पिता ने ईश्वर से प्रार्थना की थी कि यदि उन्हें अब कोई पुत्र हुआ तो उसका पालन-पोषण लड़की की तरह किया जाएगा। इसी कारण नथूराम की परवरिश लड़कियों की तरह की गई। इसी मान्यता के कारण इनकी नाक बचपन में ही छेद दी गई और नाम भी बदल दिया गया। नथÓ पहनने के कारण नाथूराम गोडसे का परिवार उन्हें नथूरामÓ कहता था। नाथूराम नाक में बांयी तरफ नथ पहनते थे। नथूराम गोडसे के पिता विनायक वामनराव गोडसे पोस्ट ऑफिस में काम करते थे और माता लक्ष्मी गोडसे गृहणी थीं।

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कसरत और तैराकी का शौक
लड़कियों की तरह पाले जाने के बावजूद नथूराम को शरीर बनाने, कसरत करने और तैरने का शौक था। जब भी गांव में गहरे कुएं से खोए हुए बर्तन तलाशने होते या किसी बीमार को जल्द डॉक्टर के पास पहुंचाना होता तो नथूराम को ही याद किया जाता था।
15 नवंबर को हुई फांसी
बताया जाता है कि नथूराम को इंग्लिश सीखने में खासी मुश्किल पेश आई और इसी वजह से वह मैट्रिक में फेल भी हो गए। पुणे से मराठी भाषा में अपना अखबार निकालने से पहले नथूराम लकड़ी के काम और टेलरिंग में भी अपना हाथ आजमा चुके थे। नाथूराम गोडसे ने मराठी भाषा में पन्नास कोटीचे बलीÓ (पचास करोड़ की बलि) पुस्तक भी लिखी है। नाथूराम गोडसे को 15 नवम्बर 1949 में अंबाला (हरियाणा) में फांसी दी गई थी।

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