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World AIDS Day 2022: बस्तर में एड्स हुआ खतरनाक, हर साल बढ़ता जा रहा आंकड़ा

World AIDS Day 2022: बस्तर में एचआईवी का संक्रमण तेजी से पांव पसार रहा है। आंकड़ों की माने तो अति पिछड़ा माने जाने वाले इस इलाके में बीते 18 साल में एचआईवी पीड़ितों की संख्या 5 से बढकर 1900 तक पहुंच चुकी है। वहीं इस दौरान 470 से अधिक की मौत हो चुकी है। यह आंकड़े चौकाने वाले हैं।

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World AIDS Day 2022: बस्तर में एचआईवी का संक्रमण तेजी से पांव पसार रहा है। आंकड़ों की माने तो अति पिछड़ा माने जाने वाले इस इलाके में बीते 18 साल में एचआईवी पीड़ितों की संख्या 5 से बढकर 1900 तक पहुंच चुकी है। वहीं इस दौरान 470 से अधिक की मौत हो चुकी है। यह आंकड़े चौकाने वाले हैं।

विशेषज्ञ बताते हैं कि शिक्षा की कमी और जागरूकता की कमी इस बीमारी का सबसे बड़ा कारण है। हालांकि इसमें बड़ी जागरूकता आई है। इसलिए भी अब यह आंकड़े बढ़े हुए नजर आ रहे हैं। नहीं तो पहले जागरूकता की कमी के चलते लोग इलाज के लिए अस्पताल तक नहीं पहुंचते थे लकिन अब ऐसा नहीं है लोग अस्पताल तक न केवल आ रहे हैं बल्कि इलाज भी करवा रहे हैं।

पता चलते ही भाग जाते हैं संक्रमित
एआरटी सेंटर में जैसे ही पीड़ित को यह जानकारी होती है कि उसमें एचआईवी के लक्षण नजर आ रहे हैं, तो सबसे पहले तो वह वहां से भाग जाता है। फिर पहचान छिपाते हुए दूसरे शहर व राज्यों में अपना उपचार कराता है। इसके अलावा कुछ अवसाद में चले जाते हैं। इलाज से बचते हुए धीरे-धीरे खामोश हो जाते हैं। एआरटी सेंटर सूत्रों ने बताया पहचान छिपाने की वजह से पीड़ित का वास्तविक आंकड़ा बता पाना संभव नहीं। काउंसलर्स व एनजीओ की माने तो बस्तर के ग्रामीणों का रोजगार के लिए सीमावर्ती राज्यों में पलायन करते हैं। इनमें अधिकांश एचआईवी के सबसे बड़े वाहक हैं। इनके जरिए असुरक्षित यौनसंपर्क के एचआईवी वायरस एक-दूसरे में फैल रहे हैं।

वर्ष 2003 से बस्तर में इस बीमारी की जांच
बस्तर में 8 फरवरी 2003 के बाद से इस बीमारी की जांच और पहचान का काम शुरू हुआ था। इसके बाद से यहां लगातार लोगों की जांच की जा रही है। तेजी से बढ़ रहे संक्रमितों के आंकड़ों के पीछे भी सबसे बड़ा कारण इस जांच को जाता है। इस जांच व्यवस्था की ही देन है कि अब लोग इस बीमारी से जागरूक हो रहे हैं बल्कि सामाजिक बंदिशों को तोडक़र अस्पताल तक पहुंचकर जांच भी करवा रहे हैं।

शिक्षा का अभाव सबसे बड़ा कारण
सीएमएचओ आरके चतुर्वेदी ने बताया कि बस्तर के सीधे-साधे लोग परंपरागत रिवाजों को मानते हैं। शिक्षा का अभाव और जागरूकता की कमी इस बीमारी का सबसे बड़ा शत्रु है। मरीज की उम्र इलाज के अभाव में केवल 9 से 10 साल ही रह जाती है। एड्स से बचाव और जागरूकता के लिए होने वाले प्रसार-प्रसार पर खर्च के औचित्य पर भी सवाल उठने लगे हैं। इसमें काउंसिलिंग के लिए शामिल वे मरीज भी हैं जिनका उपचार चल रहा है।

महिलाओं में बढ़ रही एड्स के प्रति जागरूकता
राज्य के एनएफएचएस-5 के आंकड़ों में यह बात सामने आई है कि राज्य में पहले जहां 20 प्रतिशत महिलाए ही एचआईवी एड्स के बारे में जानती थी वहीं अब 23 प्रतिशत महिलाओं को एचआईवी एड्स के बारे में पर्याप्त जानकारी है। इसके अतिरिक्त पहले 57 प्रतिशत महिलाएं ही जानतीं थीं कि शारीरिक संबंध के दौरान कंडोम के प्रयोग से एचआईवी एड्स से बचा जा सकता है।