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बैलाडीला की तराई में बसे लोहा गांव की लाल नदी पर बनेगा लोहे का पुल

किरन्दुल. बैलाडीला क्षेत्र में जनहित के मुद्दों को लेकर पत्रिका की मुहिम लगातार चल रही है और जिसके खबर का असर भी देखने को मिल रहा है। ऐसा ही मामला बैलाडीला की लाल पहाड़ी के पीछे बसे हीरोली ग्राम पंचायत के आश्रित ग्राम लावा जिसे आदिवासी ग्रामीण लोहा गांव भी कहते हैं।

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चुनौती भरा 9 किलोमीटर सफर तय कर एनएमडीसी के अधिकारी पहुंचे लोहा गांव, किया सर्वे


- चुनौती भरा 9 किलोमीटर सफर तय कर एनएमडीसी के अधिकारी पहुंचे लोहा गांव, किया सर्वे

- पुल बनने को लेकर माओवादियों का भी मौन समर्थन। पत्रिका की मुहिम रंग लाई।

इस गांव में आजादी के इतने वर्ष बाद भी शासन की कोई भी योजना नहीं पहुंची। इस पूरे क्षेत्र में माओवादियों की अच्छी पैठ है।जिसके चलते आम आदमी यहां जाने से भी परहेज करता है।बैलाडिला की लौह अयस्क की पहाड़ियों से बहे कर आ रहे लौह चूर्ण से इस गांव की नदी लाल और दलदल में तब्दील हो गई है। पिछले वर्ष गांव के 2 ग्रामीण पानी के तेज बहाव में नदी पार करते वक्त बह गए। जिसके बाद दलदल में एक की लाश मिला वही दूसरा अब तक लापता है। लाल नदी पर लोहे का पुल बनाने के लिए लंबे समय से ग्रामीण मांग कर रहे थे। जिसके बाद पत्रिका ने इस गांव की समस्याओं को लेकर मुहिम छेड़ी। इस गांव में जाने को ना सड़क है, ना पीने का पानी, ना बच्चों के लिए स्कूल, ना स्वास्थ्य सुविधा, ना आंगनबाड़ी, बद से बदतर जीवन जीने को मजबूर हैं यहां के ग्रामीण।

जिसको देखते हुए एनएमडीसी किरंदुल परियोजना मुख्य महाप्रबंधक पदमनाभ नाइक ने सीएसआर के अधिकारियों और संयुक्त पंचायत संघर्ष समिति के सरपंचों की टीम भेजी जिसमें सीएसआर के मैनेजर जितेंद्र कुमार सिविल विभाग के इंजीनियर दोहरे आसपास क्षेत्र के ग्राम पंचायत सरपंच किरंदुल से 11 सी तक गाड़ी से गए उसके बाद पैदल पहाड़ियों के रास्ते नदी नाला पार कर टीम 9 किलोमीटर सफर तय कर लोहा गांव पहुंची। जहां ग्रामीणों से मिल उनकी समस्या जाना और लाल नदी पर लोहे के पुल बनाने का सर्वे किया। अधिकारियों ने कहा कि सर्वे रिपोर्ट मुख्य महाप्रबंधक को सौंप दी जाएगी जिसके बाद आगे की प्लानिंग की जाएगी।

लाल नदी पर पुल बनाने में कितनी चुनौती

लोहा गांव पहुंचने के लिए 9 किलोमीटर का सफर आपको पैदल ही तय करना पड़ेगा और जहां दो नदी पड़ती है एक नदी काफी चौड़ी है जहां 26 मीटर लोहे का पुल बनाया जाना है, और दूसरी नदी पर 22 मीटर लोहे का पुल। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि यहां पहुंचने के लिए कोई रास्ता नहीं है लोहे के पुल का स्ट्रक्चर 11c खदान में बनाना पड़ेगा और जहां से पैदल 9 किलोमीटर गांव तक पहुंचाना पड़ेगा और नट बोल्ट सिस्टम से ही फुल को खड़ा किया जा सकता है। क्योंकि वहां वेल्डिंग मशीन के लिए बिजली उपलब्ध नहीं है जिसके चलते एकमात्र नट बोल्ट सिस्टम ही कारगर सिद्ध हो सकता है। दूसरा हीरोली गांव होते हुए लोहा गांव तक पहुंचने के लिए कच्चा मार्ग बनाया जाए और गांव में सभी मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराई जाए। काफी चुनौती भरा यह काम है।आपको बतादे की चांद पर पहुंचना तो आसान है पर इस गांव पर पहुंचकर फूल बनाना बहुत बड़ी चुनोती है।

पुल बनाने को लेकर माओवादियों का भी मौन समर्थनग्रामीणों की समस्याओं को देखते हुए माओवादी भी लाल नदी पर लोहे का पुल बनाने को लेकर मौन समर्थन दे दिए हैं। क्योंकि बारिश के दौरान नदी उफान पर रहती है और जैसा कि पिछले वर्ष दो लोगों की नदी पार करते वक़्त डूबने से मौत हो गई। जिसके बाद माओवादी इस मामले में समर्थन करते नजर आ रहे हैं। यह पूरा क्षेत्र पश्चिम बस्तर डिवीजन कमेटी अंतर्गत आता है। जहां माओवादी अपनी जनताना सरकार चलाते है। जिसके चलते बैलाडीला की पहाड़ियों की तराई में बसे सैकड़ों गांव आज भी विकास से कोसो दूर है।

लोहा गांव के मुखिया छन्नू मंडावी ने पत्रिका की टीम को बधाई देते हुए कहा कि पत्रिका ने हमारे गांव की समस्या को उठाया एनएमडीसी के साहब पहली बार हमारे गांव सर्वे करने पहुंचे। हमारी नदी में पुल बन जाने से गांव के लोगों को बहुत सुविधा होगी। लोहा गांव के आसपास के बहुत से गांव के लोगों को इस पुल का लाभ मिलेगा।

चोलनार ग्राम पंचायत के सरपंच भीमा मंडावी ने कहा कि संयुक्त पंचायत संघर्ष समिति और एनएमडीएम के अधिकारियों की टीम लोहा गांव पहुंची।जहा पुल का सर्वे किया गया। लंबे समय से ग्रामीण लाल नदी पर पुल बनाने की मांग कर रहे हैं। ग्रामीण पुल बनाने में एनएमडीसी का पूरा सहयोग करेंगे। उन्होंने पत्रिका को जनहित के मामले को उठाने के लिए बधाई दी और कहा कि लोहा गांव के लिए पत्रिका ने मुहिम चलाई जो सफल होते नज़र आ रही है।

नंदा कुंजाम अध्यक्ष संयुक्त पंचायत संघर्ष समिति ने कहा कि एनएमडीसी के अधिकारी हमारे साथ पैदल 9 किलोमीटर जंगल पहाड़ियों के रास्ते लोहा गांव पहुंचे। काफी चुनौती भरा सफर रहा। मैं तो नदी पार करते वक्त दलदल में फंस गया मुझे खींचकर निकाला गया। अधिकारियों ने यह सब अपनी आंखों से देखा। उन्होंने भी कहा कि वाकई में गांव में बहुत समस्या है।