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राज परिवार ने निभाई विवाहोत्सव की रस्म, ‘बेल पूजा’ कर दशहरा में शामिल होने देवियों को दिया न्योता

Bastar Dussehra Bel Pooja: बस्तर दशहरा की प्रमुख रस्म ‘बेल पूजा’ राज परिवार द्वारा सरगीपाल में निभाई गई। देवी स्वरूप बेल फल की पूजा कर उन्हें दंतेश्वरी मंदिर लाया गया और दशहरा उत्सव में देवियों को न्योता दिया गया।

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विवाहोत्सव से जुड़ी है रस्म की कहानी (Photo source- Patrika)

विवाहोत्सव से जुड़ी है रस्म की कहानी (Photo source- Patrika)

Bastar Dussehra Bel Pooja: विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरे की परंपराओं में से एक महत्वपूर्ण रस्म ‘बेल पूजा’ का सोमवार को ग्राम सरगीपाल में विधि विधान के साथ पूर्ण किया। बस्तर राजा कमलचंद भंजदेव के राज परिवार के साथ पहुंचने पर, ग्रामीणों ने उनका भव्य स्वागत किया। इसके बाद बेल वृक्ष की पूजा कर आज्ञा मांगी गई और जोड़ी बेल फल को पेड़ से तोड़ा गया। इस दौरान यहां उत्सव का माहौल था। पारंपरिक वाद् यंत्र की धून पर ग्रामीण झूमते रहे।

Bastar Dussehra Bel Pooja: दशहरे की महत्वपूर्ण रस्म

वहीं महिलाओं ने परंपरा अनुसार एक दूसरे को हल्दी लगाया। फिर पूजा पूर्ण होने पर ग्रामीणों ने देवी स्वरुप बेल जोड़ी को भावभीनी विदाई दी। बेल जोड़े को लेकर समान पूर्वक राज परिवार दंतेश्वरी मंदिर पहुंचे और माई दंतेश्वरी को अर्पित किया। इस तरह जुड़वां फलों की पूजा-अर्चना कर दशहरे की महत्वपूर्ण रस्म पूरी की गई। ग्रामीणों ने बताया कि यहां स्थित वर्षों पुराना बेलवृक्ष अपनी खासियत के कारण अद्वितीय माना जाता है, क्योंकि इसमें सामान्य एक फल की बजाय जोड़ी बेल फल लगते हैं।

बस्तर की सांस्कृतिक पहचान

Bastar Dussehra Bel Pooja: अनुसार इस रस्म की उत्पत्ति विवाह से जुड़ी है। कहा जाता है कि चालुक्य वंश के राजा सरगीपाल ने शिकार के दौरान बेलवृक्ष के नीचे दो सुंदर कन्याओं को देखा और विवाह का प्रस्ताव रखा। कन्याओं ने उनसे बारात लाने को कहा। जब राजा बारात लेकर पहुंचे, तब कन्याओं ने स्वयं को ईष्टदेवी माणिकेश्वरी और दंतेश्वरी बताया।

अपनी भूल पर राजा ने क्षमा मांगी और दशहरे में देवियों को आमंत्रित करने का वचन दिया। तभी से यह परंपरा चली आ रही है। बस्तर दशहरे की इस अद्वितीय रस्म में धार्मिक आस्था, लोककथा और उत्सव का सुंदर संगम देखने को मिलता है, जो बस्तर की सांस्कृतिक पहचान को और समृद्ध करता है।