
बस्तर की संस्कृति का स्वाद और स्वाभिमान (Photo source- Patrika)
Bastar Wild Mushroom: बस्तर, जो अपनी समृद्ध आदिवासी संस्कृति, प्राकृतिक विविधता और पारंपरिक खानपान के लिए प्रसिद्ध है, वहां के जंगलों में मिलने वाला फुटू (स्थानीय नाम: जंगली मशरूम) न केवल एक खाद्य वस्तु है, बल्कि संस्कृति, परंपरा और जैव विविधता का प्रतीक भी है। आदिवासी समाज की रसोई में इसका विशेष स्थान है।
'फुटू' वास्तव में जंगली मशरूम का स्थानीय नाम है, जो खासकर मानसून के मौसम में बस्तर अंचल के घने वनों में अपने आप उग आता है। यह बिना किसी खेती या रसायन के शुद्ध प्राकृतिक रूप से तैयार होता है, जिससे इसे जैविक और औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है।
बस्तर के आदिवासी समाज में पुटू को सिर्फ भोजन नहीं, उत्सव के रूप में देखा जाता है। बारिश के शुरुआती दिनों में जब जंगल हरे-भरे होते हैं, महिलाएं और बच्चे टोकरियाँ लेकर फुटू खोजने निकलते हैं। यह गतिविधि केवल भोजन जुटाने की नहीं होती, बल्कि सामूहिकता, पारिवारिक मेल-जोल और प्रकृति से जुड़ाव का एक प्रतीक बन जाती है।
फुटू की कई प्राकृतिक किस्में पाई जाती हैं, जैसे:
सफेद फुटू – मुलायम और स्वादिष्ट
काला फुटू – हल्की कड़वाहट लिए, पर मसालों के साथ लाजवाब
छीमी फुटू – आकार में छोटे, पर स्वाद में तीखे
मोर फुटू – मोर के पंख जैसे दिखने वाला, दुर्लभ और महँगा
अब फुटू सिर्फ जंगलों और गांवों तक सीमित नहीं है। बस्तर के कई स्थानीय बाजारों में इसकी बड़ी मांग रहती है। त्योहारी सीजन में इसका दाम किलो के हिसाब से 800 से 1500 रुपए तक पहुंच जाता है। कुछ स्टार्टअप और सेल्फ-हेल्प ग्रुप अब इसे सुखाकर पैकिंग कर ऑनलाइन भी बेच रहे हैं।
रिश की पहली बूंदों के साथ ही छत्तीसगढ़ के घने जंगलों की मिट्टी से फूटता है ये फुटू। किसी तरह की खेती या रासायनिक खाद के बिना उगने वाला यह मशरूम 100% जैविक होता है। बस्तर, कांकेर, नारायणपुर, सुकमा और कबीरधाम जैसे वनक्षेत्रों में यह बहुतायत में पाया जाता है।
Bastar Wild Mushroom: फुटू से बनाई गई सब्जी, भुजिया और सूप न केवल लज़ीज़ होते हैं, बल्कि प्रोटीन, फाइबर, विटामिन बी, और एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर होते हैं। स्थानीय वैद्य और आदिवासी बुजुर्गों का मानना है कि यह मशरूम पाचन क्रिया को दुरुस्त, इम्युनिटी बढ़ाने और शरीर में सूजन कम करने में सहायक होता है।
फुटू केवल एक खाद्य पदार्थ नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की आदिवासी संस्कृति, प्रकृति से सह-अस्तित्व और परंपरागत ज्ञान का प्रतीक है। इसे पहचान दिलाने और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित करने की ज़रूरत है।
Updated on:
17 Jul 2025 09:40 am
Published on:
16 Jul 2025 05:17 pm
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