
how to start own business
जगदलपुर/मनीष गुप्ता. औद्योगीकरण को इलाके के विकास का पैमाना माना जाता है लेकिन बस्तर में वन एवं खनिज संपदा का अकूत भंडार मौजूद होने के बावजूद उद्योगों की स्थापना नहीं हो पा रही है। सरकारों एवं उद्योगपतियों ने इसके लिए काफी प्रयास भी किए हैं पर अंजाम तक पहुंचने के पूर्व ही मुहिम ध्वस्त हो गई। सिर्फ एनएमडीसी और एस्सार समूह ही आंशिक रूप से सफलता प्राप्त कर सके हैं। एनएमडीसी ने बचेली और किरंदुल कम्प्लेक्स प्रोजेक्ट व नगरनार स्टील प्लांट की स्थापना की है। इसके अलावा स्लरी पाइप लाइन प्रोजेक्ट वर्तमान में आर्सेलर मित्तल-निप्पन के हाथों में है। बस्तर में उद्योग के नाम पर यही प्रॉपर्टी बची है। एनएमडीसी को छोड़ बस्तर के पास कुछ भी खास नहीं है। सारी अनुकुलाताएं मौजूद होने के बावजूद बस्तर में निवेश का सूखा लोगों के लिए आश्चर्य व कौतुहल का विषय बना हुआ है।
बस्तर में छोटे उद्योग भी नहीं पनप पाए
लगभग चार दशक पूर्व बस्तर जिले में पंडरीपानी में बजरंग और रूद्र सीमेंट प्लांट की स्थापना हुई थी दोनों प्लांट लगभग एक दशक तक लगातार चलते रहे। इन्होंने एक बार फिर से बस्तर में उद्योंगो की उम्मीदों को जगा दिया था लेकिन फिर अचानक दोनों सीमेंट प्लांट के बंद होने से लोग मायूस रह गए थे। इस दौर में कुशल वूड इंडस्ट्री ,बस्तर आइल मिल सहित कुछ लघु उद्योगों ने भी दम तोड़ दिया।
वनोपज आधारित उद्योग भी नहीं है प्राथमिकता में
देश के सर्वाधिक वन आच्छादित राज्यों में से एक होने के बावजूद यहां वन आधारित उद्योगों की अपार सम्भावनाएं मौजूद हैं। जानकारों के मुताबिक यदि बस्तर में वन आधारित कुटीर और बड़े उद्योगों की स्थापना की जाय तो बस्तर में रोजगार के अवसर बनने के साथ-साथ यहां की गरीबी व नक्सलवाद दूर हो सकते हैं। लेकिन आजादी के सात दशक बाद भी बस्तर में वनोपज का सर्वे तक नहीं हो पाया है। बस्तर में पाए जाने वाले कई मेडिसिनल प्लांट वन विभाग की सूची से गायब हैं। सिर्फ तेंदुपत्ता, साल बीज , महुआ इमली जैसे कुछ वनोपज पर ही वन विभाग ध्यान केन्द्रित किए हुए है शेष वनोपज को लेकर विभाग का ध्यान ही नहीं है। एक वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी के मुताबिक बस्तर में वनोपज का एक लाख करोड़ के व्यवसाय की सम्भावनाएं मौजूद हैं।
80 में बोधघाट तो 90 में डायकेम ने जगाई थी उम्मीदें
बस्तर में उद्योग को लेकर लगातार प्रयास होते रहे हैं। इन्द्रावती नदी में बारसूर पर 500 मेगावाट की पन विद्युत परियोजना के निर्माण के लिए विश्व बैंक से लोन लेकर 1979 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने इसकी आधार शिला रखी थी। लेकिन 1980 में पर्यावरण की मंजूरी न मिल पाने की वजह से यह परियोजना अधर में लटक गई। तब से लेकर अब तक लगातार परियोजना को लेकर लगातार प्रयास किये जाते रहे हैं। वर्तमान में छग की भूपेश बघेल सरकार ने भी बोधघाट को लेकर प्रयास तेज किये हैं पर इसका भी विरोध प्रारंभ हो गया है। इसी तरह 90 के दशक में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री सुन्दर लाल पटवा डिलमिली में 2 हजार करोड़ की लागत से एसएम डायकेम स्टील प्लांट की आधारशिला रखी थी लेकिन पूर्व आईएएस ब्रम्हदेव शर्मा के नेतृत्व में हुए विरोध प्रदर्शन ने सरकार को अपना कदम वापस लेने पर मजबूर कर दिया। इसके बाद गीदम के नजदीक गुमडा में मुकुंद स्टील प्लांट भी प्रस्तावित था।
औद्योगिकरण पर होता रहा है सियासी विवाद
बस्तर में औद्योगीकरण सभी दलों के लिए सियासी विवाद का विषय बनता रहा है। यद्दपि छग राज्य निर्माण के बाद अब तक की सभी सरकारें बस्तर में उद्योगों की स्थापना को लेकर गंभीरता दिखाती रहीं है लेकिन यह मुहिम अब तक कारगर साबित नहीं हुई है। छग के पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी के कार्यकाल में नगरनार में एनएमडीसी के स्टील प्लांट के लिए भूमि का अधिग्रहण प्रारंभ हुआ था उसके बाद रमन सिंह की सरकार ने इस काम को आगे बढाया। 2021 में भूपेश सरकार ने रमन सरकार द्वारा औद्योगिक घरानों और कम्पनियों से छग में उद्योग स्थापना के लिए किए गए 158 एमओयू को रद्द कर दिया। इस सरकार ने गत वर्ष नई उद्योग निति की घोषणा कर उद्योगपतियों को बस्तर में उद्योग स्थापित करने आमंत्रित किया है।
60 के दशक से प्रस्तावित है स्टील प्लांट और कागज का कारखाना
आजादी के बाद से ही 60 के दशक में टाटा ने बस्तर में स्टील प्लांट लगवाने के लिए प्रयास किया था किन्तु यह प्रस्ताव फाइलों में ही बंद होकर रह गया। जानकार बताते हैं कि स्टील प्लांट की स्थापना को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री भी इस प्रस्ताव को लेकर सहमत थे। इसके बाद भी साल 2007-08 में बस्तर के लोगों में उम्मीद जागी कि यहां अब टाटा स्टील प्लांट लगकर ही रहेगा लेकिन तब भी प्लांट की स्थापना का मामला ठंडे बस्ते में चला गया। लोहाडीगुड़ा क्षेत्र में जमीन अधिग्रहण से लेकर अन्य सभी जरूरी कार्रवाई प्लांट के लिए हो चुकी थी इसके बावजूद प्लांट की स्थापना नहीं हो पाई। वहीं बस्तर में बांस की अधिकता के मद्देनजर यहां कागज के कारखाने का भी प्रस्ताव था किन्तु यह योजना भी धरी की धरी रह गई। इस बीच लौह अयस्क के निर्यात को लेकर जापान से हुए अनुबंध के कारण एनएमडीसी ने 1958 में बैलाडीला में लौह अयस्क परियोजना का शुरू की जिसने बस्तर में न सिर्फ विकास किया बल्कि क्षेत्र को एक नई पहचान भी दिलाई।
Published on:
25 Dec 2021 10:12 am
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