
संस्कृत को नियमित विषय बनाकर सम्मान दे
जगदलपुर. बस्तर हाईस्कूल में संस्कृत के नये पाठ्यक्रम के तीन दिवसीय प्रशिक्षण में आए शिक्षकों ने कहा जब नासा संस्कृत को सबसे स्पष्ट भाषा का दर्जा देकर सम्मान कर दे चुकी तो हमें भी जरूरत है कि हम भी संस्कृत को नियमित विषय में बनाकर सम्मान दे। संस्कृत भाषा की हो रही अनदेखी को लेकर शिक्षकों ने पत्रिका से अपने विचार साझा किए राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत हर वर्ष प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जाता है । गुरुवार को प्रशिक्षण का अंतिम दिन था। बस्तर के सातों विकासखण्ड के 120 शिक्षक प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे है। प्रशिक्षण की खास बात यह है कि शिक्षकों केा नये पाठ्यक्रम की जानकारी के साथ साथ यह भी बताया जा रहा है की शिक्षकों को विद्यार्थियों को कैसे पढ़ाना चाहिए । रीता शुक्ला, भवन दीवान, बनमाली जोशी व सुरेन्द्र कश्यप प्रशिक्षक मील कर प्रशिक्षण दे रहे है । प्रशिक्षण के अंतिम दिन खास बात यह रही की सभी शिक्षकों व प्रशिक्षकों ने संस्कृत भाषा के महत्व को बताया व वर्तमान में हो रही संस्कृत भाषा की अनदेखी के बारे में बात कही।
विद्यार्थी अपनी भाषा का सम्मान करे
बस्तर की व्याख्याता रीता शुक्ला ने बताया कि आज के परिप्रेक्ष्य में अगर हम संस्कृत भाषा की बात करे तो संस्कृत, अंग्रेजी से सरल, सुरस और सभ्य भाषा है । संस्कृत, संस्कृ ति, अध्यात्म व सभ्यता से जुड़ी हुई भाषा है । हम सभी प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष रूप से संस्कृत से जुड़े हुए है, पर स्वीकार नहीं कर रहे है । विद्यालयों में संस्कृत वैकल्पिक विषय के रूप में हो कर रह गई है । अब समय है की संस्कृत को वैकल्पिक विषय से हटाकर नियमित विषय करे ताकी आज का विद्यार्थी अपनी भाषा का सम्मान करे ।
इसके महत्व की जानकारी देने की जरूरत
परचनपाल के भवन दीवान ने बताया कि संस्कृत भाषा को सभी भाषा की जननी कहा गया है । हमें सभी भाषाओं में संस्कृत भाषा के शब्द मिल ही जाते हैं । अब तो संस्कृत विषय की पढ़ाई विदेशों में भी शुरू हो चुकी है । संस्कृत भाषा विज्ञान, चिकित्सा से लेकर कम्प्युटर में भी प्रयोग हो रहा है। इसके बावजूद हमारे देश में ही संस्कृत भाषा की स्थिति को देखते हुए इसके महत्व की जानकारी देने की जरूरत पड़ गई है ।
हम जननी को न भूले
धरमपुरा की अनिता ठाकुर ने बताया कि संस्कृत को सबसे पहले तो वैकल्पिक विषय से हटाना होगा, तभी जा कर हम अपनी भाषा को सम्मान दे पाएगें । हिन्दी जिसे आज हम राष्ट्रभाषा के रूप में जानते हैं आखिर वह संस्कृत से ही आई है । एेसे में हमारा कर्तव्य बनता है कि हम जननी को न भूले ।
वैकल्पिक विषय बन कर रह गया है
आसना अंजना पचोरी ने बताया कि कर्नाटक के मुत्तुर गांव के लोग केवल संस्कृत में बात करते है आज के समय में यह एक बड़ी बात है । वही दूसरी ओर बस्तर में संस्कृत एक वैकल्पिक विषय बन कर रह गया है । इसे हम त्रासदी नहीं तो और क्या कहेगें । यही कारण है कि आज के समय में बच्चें संस्कृत भाषा से दूर होते जा रहे है ।
नियमित विषय के रूप में पढ़ाना चाहिए
आसना की कंचन भण्डारी ने बताया कि बस्तर के सात स्कूलों में संस्कृत व अंग्रेजी दोनो विषयों की पढ़ाई नियमित विषय के रूप में होती है। इन स्कूलों की तरह ही बस्तर के सभी स्कूलो में संस्कृत भाषा को नियमित विषय के रूप में पढ़ाना चाहिए। संस्कृत भाषा हमें कई प्रकार से फायदा पहुंचाती है । संस्कृत सीखने से दिमाग तेज होता है व याद करने की शक्ति भी बढ़ती है ।
संस्कृत बहुत ही सरल भाषा है
तारापुर की बनमाली जोशी ने बताया कि संस्कृत भाषा हमें विदेशों में सम्मान दिलाती है। अब हमारा वक्त है की हम संस्कृत का सम्मान करे और उसे वैकल्पिक विषय से हटाकर नियमित विषय बनाए । संस्कृत बहुत ही सरल भाषा है । इस भाषा को सीखना सरल है। इसलिए यदि इसे नियमित कर भी दिया जाए तो विद्यार्थियों को कोई कठिनाई नहीं होगी ।
Published on:
06 Oct 2017 07:05 pm
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