
लॉकडाउन से एनएमडीसी प्लांट में काम बंद, पैसे भी हो गए खत्म, इसलिए ९०० किलोमीटर पैदल अपने घर जाने निकल पड़े थे मजदूर, फिर.....
जगदलपुर. नगरनार के निर्माणाधीन एनएमडीसी प्लांट में मजदूरी करने आए झारखंड के करीब 15 मजदूरों की हिम्मत सोमवार को जवाब दे दी। इन्होंने भूख से मरने से अच्छा 900 किमी दूर अपने गांव पालुम के लिए पैदल ही रवाना हो बेहतर समझा और सभी निकल गए। पुलिस प्रशासन ने जब इन्हें रोका और पूछा तो इन मजदूरों का दर्द झलक आया और उन्होंने बताया कि एनएमडीसी प्लांट के बीटीएल कंपनी में वह काम करते थे। लॉकडाउन के पहले ठेकेदार चले गया। काम पूरी तरह से बंद हो गया। पिछले बार 19 मार्च तारिख को आखिरी बार ठेकेदार ने पैसे दिए थे। वह भी आधे। वह अब खत्म हो गया है। ऐसे में अब क्या करते। भूख से मर जाने से अच्छा पैदल ही अपने गांव निकलना उचित समझा। पुलिस ने सभी मजदूरों को रोक लिया और नगरनार में राहत शिविर में इन्हें रखा है। साथ ही अब उनके खाने.पीने से लेकर अन्य व्यवस्था खुद कराने की जानकारी दी है।
ठेकेदार ने भी आगे काम नहीं करने की बात कही
गौरतलब है कि कोरोना संक्रमण रोकने के लिए देश में हुए लॉकडाउन का सबसे बुरा असर प्रवासी मजदूरों पर पड़ रहा है। स्टील प्लांट में 20 अप्रैल से दोबारा काम शुरू किया गया हैए लेकिन जिस कंपनी में यह मजदूर काम करते हैं उसका काम फिलहाल बंद है। ठेकेदार ने भी आगे काम नहीं करने की बात कही है। यही वजह है कि अब मजदूर मजबूरी में अपने घर जाना चाहते हैं।
एनएमडीसी प्रबंधन ने नहीं ले रहा मजदूरों की सुध
मजदूर रविंद्र यादव ने बताया कि पिछले 19 मार्च से नगरनार एनएमडीसी स्टील प्लांट में काम बंद कर दिया गया है। उसके बाद से वे वहां पर बड़ी मजबूरी में रह रहे थे। लेकिन उसके बाद ठेकेदार न तो एनएमडीसी प्रबंधन ने इन मजदूरों की मदद के लिए अपने हाथ बढ़ाए। उन्होंने बताया कि मजदूरों ने नगरनार थाने में मदद की गुहार लगाई। इन्हें वहां कुछ दिनों का चावल और दाल मिला। इसके बाद वहां से भी उन्हें मदद मिलनी बंद हो गई। जिसके बाद रविवार देर रात 2 बजे नगरनार प्लांट से वे सभी अपने गांव के लिए निकल पड़े।
नहीं तो कोरोना से पहले भूखे मर जाएंगे
इन मजदूरों का कहना है कि लॉक डाउन की वजह से काम पूरी तरह से बंद हैं। बचत भी खत्म हो चुकी है। इसलिए वे पैदल ही निकल गए। यह इन 15 लोंगों की कहानी नहीं है। यहां और भी मजदूर इसी तरह की परेशानी में हैं। इन मजदूरों का कहना है कि शहर में रहेंगे तो कोरोना से पहले भूख से मर जाएंगे। किसी तरह गांव पहुंच गए तो वहां खाने का जुगाड़ हो ही जाएगा। इसलिए गांव जाने की उन्हें जल्दी है।
पैदल जाने के सिवा कोई चारा नहींए घर पर सूखी रोटी भी खा लेंगे
कृष्णा यादव ने बताया कि साधन न मिलने के चलते पीठ पर सामान लादकर पैदल जाने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं है। दो दिन तक तो किसी तरह भोजन का बंदोबस्त नहीं हुआ है। काम खत्म होने के बाद घर जाना मजबूरी हो गई। कोरोना से पहले यहां रहेंगे तो भूख से मर जाएंगे। घर पहुंच जाएंगे तो रूखीण्सूखी जो मिल जाएगा उसे खाकर जी लेंगे।
Published on:
28 Apr 2020 12:40 pm
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