
Bastar Lok Sabha Seat: बस्तर सबको चाहिए। बस्तर हर पार्टी जितना चाहती है, लेकिन जब बस्तर को देने की पारी आती है तो सबके हाथ टाइट हो जाते हैं। 12 विधानसभा और 2 लोकसभा क्षेत्र वाले बस्तर को 28 साल से केंद्रीय मंत्री का पद नहीं मिला है। यहां के जनप्रतिनिधि रायपुर की सियासत तक सीमित रह गए हैं।
बस्तर की दो लोकसभा सीटों पर कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस के विधायक रहे हैं। उस दौरान केंद्र में भाजपा और कांग्रेस की सरकार भी रही है इसके बावजूद बस्तर को (Bastar Lok Sabha Seat) केंद्रीय मंत्रीमंडल में जगह नहीं मिल पाई है। मौजूदा चुनाव के नतीजों में बस्तर की दोनों सीटें भाजपा की झोली में गई इसके बावजूद बस्तररिया फिर से खुद को छला हुआ महसूस कर रहे हैं।
बस्तर के लोगों को हर बार उम्मीद रहती है कि उनका सांसद दिल्ली में मंत्री बनकर बस्तर की समस्याओं को दूर करेगा। यहां ट्रेन लाएगा, अच्छी सड़क बनवाएगा और इंद्रावती के जल बंटवारे के विवाद को दूर करेगा लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है। आखिरी बार 1996 में केंद्र की पीवी नरसिम्हा राव कैबिनेट में अरविंद नेताम केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री बनाए गए थे।
इससे पहले 1973 से 1977 तक भी इंदिरा गांधी की सरकार में नेताम शिक्षा और समाज कल्याण राज्य मंत्री रहे थे। नेताम अलग-अलग सरकार में सात साल तक मंत्री रहे। नेताम के बाद से केंद्र में बस्तर को कोई जगह नहीं मिली है। बस्तर को केंद्र में महत्व नहीं मिलने का असर बस्तर के उन मुद्दों पर पड़ा है जिनके सुलझने का इंतजार बस्तर के लोग सालों से कर रहे हैं।
राज्य गठन के बाद से और उससे भी पहले से बस्तर को केंद्रीय मंत्री मंडल में जगह नहीं मिलना बस्तर के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। बस्तर की कई समस्याओं का समाधान केंद्र सरकार के हाथ में है। बस्तर (Bastar Lok Sabha Seat) को इसी वजह से केंद्र में नेतृत्व चाहिए फिर भी बस्तर को मौका नहीं मिल पा रहा है। बस्तर को लेकर पार्टियों को अपनी सोच बदलनी होगी तभी बस्तर का कुछ होगा।
भाजपा को हमेशा बस्तर ने बहुत दिया है फिर भी यहां के साथ उपेक्षापूर्ण व्यवहार रहा है। यहां का विकास और यहां के मुद्दों का समाधान तभी होगा जब बस्तर को केंद्र में जगह मिलेगी। पार्टियां बस्तर के लिए सिर्फ इतना ही सोचती हैं कि यहां के आदिवासी नेता को सांसद बना दिया वही बहुत है। रेल, सडक़, पानी, स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर काम तभी संभव है जब हमारा सांसद केंद्र में मंत्री बने।
आजादी के बाद से अब तक राजनीतिक रूप से बस्तर देश के अन्य हिस्सों की तुलना में संघर्ष करता ही दिखता है। यहां के आदिवासी भोले-भाले हैं और उसका फायदा हर पार्टी ने उठाया। राज्य गठन के 24 साल बाद भी एक भी केंद्रीय मंत्री नहीं मिला है। देश के बड़े नेताओं ने अपने इलाकों का भरपूर विकास किया लेकिन बस्तर के जनप्रतिनिधियों को कभी भी सही मौका नहीं मिला।
बस्तर को केंद्र में अगर नेतृत्व मिलता है तो यहां से जुड़े कई ऐसे मुद्दे हैं जिन पर काम होने की उम्मीद बस्तर के लोगों को है। बोधघाट परियोजना की नींव प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1977 में रखी, लेकिन इसके बाद से इस पर कुछ खास हुआ नहीं। दल्लीराजहरा-रावघाट जगदलपुर (Bastar Lok Sabha Seat) रेल लाइन को 2022 तक शुरू करने का वादा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दंतेवाड़ा में 2015 में किया था जो कि अब तक अधूरा है।
इसी तरह ओडिशा के साथ इंद्रावती के जल बंटवारे को लेकर जारी विवाद पिछले 30 साल से खत्म ही नहीं हो रहा है। बस्तर के यह ऐसे मुद्दे हैं जिनसे यहां का आम बस्तरिया सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है। बस्तर के लोग चाहते हैं कि उनका सांसद केंद्र में मंत्री बनने और इन मुद्दो पर काम हो लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है।
केंद्र को लेकर बस्तर में निराशा पहले से है और अब राज्य सरकार में बस्तर के प्रतिनिधित्व को लेकर बातें होने लगी हैं। इस वक्त साय सरकार में केदार कश्यप इकलौते मंत्री है। पिछली कांग्रेस सरकार में भी कवासी लखमा ही यहां से मंत्री थे। जबकि उस वक्त कांग्रेस के पास बस्तर में 12 के 12 विधायक थे। इस वक्त भी बस्तर में भाजपा के 8 विधायक हैं और राज्य में सिर्फ एक ही पद बस्तर को मिला है।
Published on:
11 Jun 2024 02:50 pm
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