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इस देवी के दरबार से कोई नहीं गया खाली हाथ, यहां भक्तों की हर मुराद होती है पूरी, फिर भी आज तक नहीं हुआ मंदिर निर्माण, जानिए रहस्यमयी वजह

पौराणिक मान्यता अनुसार यह माना जाता है कि देवी मां अपने ऊपर किसी प्रकार का छत बनाना नहीं चाहती हैं।

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इस देवी के दरबार से कोई नहीं गया खाली हाथ, यहां भक्तों की हर मुराद होती है पूरी, फिर भी आज तक नहीं हुआ मंदिर निर्माण, जानिए रहस्यमयी वजह

इस देवी के दरबार से कोई नहीं गया खाली हाथ, यहां भक्तों की हर मुराद होती है पूरी, फिर भी आज तक नहीं हुआ मंदिर निर्माण, जानिए रहस्यमयी वजह

दंतेवाड़ा. जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर ऐतिहासिक प्राचीन मंदिर जो अपने कई नामों से जैसे कोला कामिनी, जल कामिनी एवं तपेश्वरी माता मंदिर के नाम से जाना जाता है। गीदम नगर से 15 किलोमीटर दूर व एनएच-16 जगदलपुर से बीजापुर मार्ग से मात्र एक किलोमीटर तथा शंकनी-डंकनी नदी के तट पर एक किलोमीटर दूरी काली पहाड़ के नीचे गुमरगुंडा मंदिर के मध्य में स्थित है। ऐसी मान्यता है कि देवी मां यह काली पहाड़ के नीचे बैठकर तप करने के कारण इसका नाम तपेश्वरी पहाड़ पड़ा। जालंगा झोड़ी के तट में स्थित होने के कारण जन कामिनी, कोलिया-सियार वाहन में सवार होने के कारण कोला-कामनी तथा काली पहाड़ के नीचे विराज करने का काल भैरवी का नाम पड़ा। यह देवी कमलासन में तप की मुद्रा में विराजमान होने के कारण खुला आसमान पर स्थित है। इसलिए आज तक मंदिर निर्माण नहीं हुआ है।

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छत जलकर खाक हो जाता है
यहां के पुजारी परमानंद जीया ने बताया कि मैं 13वीं पीढ़ी का माता का सेवक हूं। पौराणिक मान्यता अनुसार यह माना जाता है कि देवी मां अपने ऊपर किसी प्रकार का छत बनाना नहीं चाहती हैं। प्राचीनकाल में कुछ लोगों ने लकड़ी-पैरा से इनको छत देना चाहा तो वह तुरंत ही अपने आप जलकर खाक हो गया। यहां पर क्षत्रिय वंश के जिया परिवार के लोग पुश्तैनी पुजारी हुआ करते हैं। जो सात गांव ऑलनार एकुंडेनार, बड़ेसुरोखी, छोटे सुरोखी, सियानार, समलुर एवं बुधपदर के क्षत्रिय वंश के पुजारी के संरक्षण में सुबह शाम पूजा-अर्चना की जाती है। यहां पर वैशाख शुक्ल के पक्ष में मेला लगाया जाता है।

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हजारों ग्रामीण श्रद्धालु मेले में आते हैं। शारदीय नवरात्रि व बसंती नवरात्रि रामनवमीं में नौं दिन कलश स्थापना कर विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर कलश विसर्जन संकनी-डंकनी नदी के तट पर में किया जाता है। ग्राम समलूर में एक व प्राचीन मंदिर है जिसे ओलमराम गुड़ी गोंडी भाषा में कहा जाता है ओम अर्थात शिव शंभू इस कारण गांव का नाम समलूर पड़ा वर्तमान में यह मंदिर भारत सरकार के पुरातत्व के विभाग के संरक्षण में है। यहां पर प्रत्येक वर्ष माघ महीना महाशिवरात्रि की भारी संख्या में मेला लगता है। मातेश्वरी के दरबार में कई हजार लोगों का मनोकामना पूर्ण हुआ है। जो भी मानव सच्चे मन से मां के दरबार में आकर मन्नत मांगता है वह खाली हाथ नहीं जाता उसकी मनोकामना पूर्ण होती ही है। यहां एक ऐसी मान्यता है की यहां पर कोई भी गुम इंसान पूजा करने से वापस अपने आप घर आ जाता है।

सच्चे मन और श्रद्धा से यहां आकर देवी मां को मनाएगा तो वह उसके परिवार से मिलने वापस आ जाएगा। लोग अपने खोए हुए परिवार के इंसानों को पतासाजी करने, ढूंढने के लिए मां के दरबार में अपना माथा टेकने अक्सर यहां आया करते हैं। ’ऐसा ही एक वाक्या मंदिर के जिया पुजारी ने हमारे संवाददाता के साथ साझा किया। उन्होंने बताया कि गांव के ही एक आदमी का पुत्र खो गया था जिसको ढूंढ कर थक गए थे। पिता रोते-रोते आकर मां के दरबार में मन्नते मांगा। तो तुरंत पुत्र वापस मिल गया।