Jagdalpur News: पाठ्य पुस्तक निगम के स्थानीय बुक डिपो में एक हफ्ते पहले तक किताबों का वितरण आफत बन चुका था। एक-एक किताब को स्कूल प्रबंधन स्कैन करके ले जा रहे थे।
CG News: पाठ्य पुस्तक निगम के स्थानीय बुक डिपो में एक हफ्ते पहले तक किताबों का वितरण आफत बन चुका था। एक-एक किताब को स्कूल प्रबंधन स्कैन करके ले जा रहे थे। इस व्यवस्था में 1000 किताब ले जाने में तीन से चार घंटे का वक्त लग रहा था। जब व्यवस्था का विरोध हुआ तो पाठ्य पुस्तक निगम ने प्रदेश स्तर से ही व्यवस्था में बदलाव कर दिया। अब स्कूल प्रबंधन के लिए डिपो में किताब स्कैन करना जरूरी नहीं है। किताबें डिपो से ले जाने के एक हफ्ते के भीतर किताबों के पीछे छपे क्यूआर को स्कैन करना होगा।
टीबीसी एप में डाटा अपलोड करने का समय निर्धारित कर दिया गया है। इससे स्कूलों को काफी राहत मिली है। स्कूल प्रबंधन डिपो पहुंच रहे हैं और अपनी जरूरत के हिसाब से किताबें ले जा रहे हैं। नई व्यवस्था लागू होने से स्कूलों के साथ ही डिपो प्रबंधन को भी राहत मिली है।
हालांकि अभी भी एक कक्षा की सभी पुस्तक उपलब्ध नहीं होने से परेशानी हो रही है। स्कूलों से कहा जा रहा है कि जितनी किताबें हैं उन्हें ले जाएं। बची हुई किताबें आने पर सूचना दे दी जाएगी। किताबें एक साथ नहीं मिलने से प्राइवेट स्कूलों को दिक्कत हो रही है क्योंकि उन्हें बची हुई पुस्तकों के लिए एक से ज्यादा बार वाहन लेकर आना पड़ रहा है।
स्थानीय डिपो से बांटी जा रही किताबों के पीछे दो क्यूआर कोड छपे हुए हैं। किताब लेने पहुंच रहे स्कूलों ने बताया कि कई किताबों में ऐसे क्यूआर छपे हुए हैं जो अन्य जिलों में भी शो हो रहे हैं। बस्तर के लिए भेजी गई किताब का क्यूआर रायपुर में भी शो हो रहा है। प्रिंटिंग में त्रुटि की वजह से परेशानी हो रही है। 100 में 10 किताब ऐसी निकल रही हैं। ऐसी किताबों को लौटाया जा रहा है।
संभाग के 6 जिलों के 875 संकुल में भेजी गई किताबें
हिंदी हाई स्कूल 356 जिनमें 355 में किताबें भेजी गईं
आत्मानंद स्कूल 243 जिनमें 199 को किताबें दी गईं।
डिपो महाप्रबंधक अनिल दास ने बताया कि पुस्तक का वितरण जब शुरू हुआ तो 1 से 7 तारीख तक डिपो में पैर रखने की जगह नहीं थी। ऐसा इसलिए क्योंकि किताबों को डिपो में ही स्कैन किया जा रहा था। अब जबकि स्कूलों में ले जाकर स्कैन किया जा रहा है तो भीड़ कम हुई है और स्कूलों को आसानी से कुछ ही देर में किताबें मिल जा रही हैं।
डिपो महाप्रबंधक अनिल दास ने बताया कि पूर्व में किताबों का दुरुपयोग होने की शिकायतेें आती थीं। किताबें ले जाने के बाद उसे सही तरह से बांटा नहीं जाता था। इसे रोकने के लिए ही सरकार ने इस साल बार कोड व्यवस्था लागू की। अब स्कूल हर एक किताब के लिए जिम्मेदार हैं। गड़बड़ी की आशंका खत्म हो गई है। एप से हर तरह की गड़बड़ी रुकेगी।
पाठ्य पुस्तक निगम ने पहली बार किताब वितरण में बार कोड कोड और एप की व्यवस्था लागू की है। टीबीसी एप में पुस्तक कलेक्शन से लेकर उसके वितरण तक का डाटा अपलोड किया जा रहा है। यह एप आईआईटी भिलाई ने डेवलप किया है। किताब में दो बार कोड है तो दोनों बार कोड के लिए एप में अलग से स्कैनर दिया गया है। स्कूलों का कहना है कि एक बार कोड स्कैन करने में ज्यादा दिक्कत नहीं है। दो बार कोड स्कैन करने में परेशानी हो रही है।