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पेड़ों पर लटक रहे ये झोले नहीं…ग्रामीणों की लाचारी और सिस्टम की नाकामी है

- रहने के लिए कोई व्यवस्था नहीं, रैन बसेरा जैसी स्थिति नहीं, समय-समय पर जारी होती है रहने- बाहर से आते हैं तो लकडियंा और राशन अपने साथ लेकर आते हैं।- भोजन के लिए भटकना न पड़े इसलिए परिवार सामान समेत पहुंचते हैं मेकाज

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पेड़ों पर लटक रहे ये झोले नहीं...ग्रामीणों की लाचारी और सिस्टम की नाकामी है

पेड़ों पर लटक रहे ये झोले नहीं...ग्रामीणों की लाचारी और सिस्टम की नाकामी है

जगदलपुर. मेडिकल कॉलेज के परिसर के एक कोने में पेड़ों पर टंगे हुए झोले और बोरे आपको जरूर नजर आए होंगे लेकिन इसके पीछे की कहानी इसे टांगने वाले परिवारों की लाचारी और सिस्टम की नकामी का एहसास दिलाती है। दअरसल यहां संभागभर से आने वाले मरीजों के ठहरने और उनके सामान रखने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में मरीज का इलाज करने के साथ गांव वालों के ठहरने और खाने पीने की समस्या हमेंशा खड़ी रहती है। बजट भी इतना अधिक नहीं रहता, इसलिए परिवार घर से ही राशन, लकड़ी समेत अन्य जरूरी सामान लेकर आते हैं। इन सामान के साथ मेकाज के अंदर उनकी एंट्री होना मुश्किल होता है। इसलिए यह परिवार परिसर में उगे पड़ों पर ही सामान को लटका देते हैं।

पेड़ ही इनकी अलमारी, झोला ही लॉकर
मेकाज में मरीजों और उनके परिजनों की मजबूरी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इतने साल भी भी यहां मरीजों के परिजनों के रहने के लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। मेकाज के बरामदें में जगह मिल जाए तो यहां वह किसी तरह अपनी रात गुजार लेते हैं। सबसे बड़ी समस्या सामान की रहती है। ऐसे में वे परिसर के आखिरी कोने में उगे हुए पेड़ों का प्रयोग करते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यह पेड़ ही उनका अलमारी है और उनके झोले व बोरे उनके लॉकर हैं। इसमें सामान रखकर यहां लटका देते हैं। इससे मेकाज में उन्हें सामान लेकर घुमना नहीं पड़ता और कोई उन्हें टोकता भी नहीं है।

समझदारी ऐसी कि कोई किसी का सामान नहीं छूता, चोरी की आजतक शिकायत नहीं
सिस्टम के मारे यह परिवार के सामने दोहरी चुनौती हमेशा बनी रहती है। पहला तो मरीज को सहीं इलाज मिल सके। वहीं दूसरा खुद का गुजर बसर हो सके। इसलिए सामान को यूं ही पेड़ पर रखना भी कम खतरनाक नहीं होता। चोरी का डर हमेशा बना रहता है। लेकिन अच्छी बात यह है कि यहां सभी जरूरतमंद लोग अपना सामान रखते हैं। एक दुसरे का दर्द समझते हैं इसलिए यहां अब तक एक भी चोरी की घटना सामने नहीं आई है। सिस्टम ऐसा तैयार हुआ है कि जो जिस पेड़ में अपना सामान टांग देता है वह पेड़ की वह डाली उसके लिए बुक हो जाती है। दूसरा व्यक्ति दूसरी डाली या फिर दूसरे पेड़ में अपना सामान रख लेता है।


यह है इसके पीछे की कहानी

मेडिकल कॉलेज परिसर के अंदर पेड़ों में लटके झोले और बोरे किसी कि जिम्मेदारी नहीं बल्कि ग्रामीणों की लाचारी और सिस्टम की लाचारी है। जब संभागभर में कहीं भी मरीज का इलाज नहीं हो पाता मेडिकल कॉलेज में इसे बेहतर इलाज के लिए रेफर किया जाता है। करोड़ों की बिल्डिंग और सुविधा की सोच गरीब परिवार यहां इलाज के लिए सिर्फ मरीज के साथ नहीं बल्कि पूरे परिवार और राशन समेत अपनी जरूरत की चीजें लेकर पहुचंता है। ताकि यहा आने के बाद उन्हें भूखे न रहना पड़े। इसी क्रम में जब यहां इलाज के लिए कुछ ज्यादा दिन लगने की बात सामने आती है तो उन्हें ठहरने और सामान को सुरक्षित रखने की चुनौती सामने आती है। ऐसे में यह पेड़ ही इनका सहारा बनते हैं।