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नसीराबाद से 500 किमी. दूरी तय कर मध्य प्रदेश पहुंचा खरमोर

सैटेलाइट ट्रांसमीटर लगने से पहली बार मिली जानकारी जयपुर. खरमोर पक्षी के राज्य से बाहर जाने के मार्ग का रहस्य खुल गया है। इसकी पुष्टि बीते दिनों नसीराबाद के समीप कल्याणपुरा गांव में एक खरमोर की पीठ पर लगाए गए सैटेलाइट ट्रांसमीटर से हुई है। इससे पता चला कि यह पक्षी करीब 500 किलोमीटर दूरी तय कर मध्य प्रदेश के एक इलाके में पहुंच गया।

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नसीराबाद से 500 किमी. दूरी तय कर मध्य प्रदेश पहुंचा खरमोर

नसीराबाद से 500 किमी. दूरी तय कर मध्य प्रदेश पहुंचा खरमोर

अजमेर जिले में मानसून के दौरान घास के मैदान और खेतों में दिखाई देने वाले खरमोर पक्षी को अंग्रेजी में लेसर फ्लोरिकन कहा जाता है। इस दुर्लभ पक्षी की नर प्रजाति का रंग काला, ऊपरी पंख सफेद और सिर पर मोर की तरह कलंगी होती है।
वहीं, मादा खरमोर का रंग भूरा होता है। वर्षाकाल के दौरान प्रजनन के बाद यह पक्षी फिर से अदृश्य हो जाता है। इसके अदृश्य होने के बारे में पता लगाने के लिए वन विभाग और भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून के विशेषज्ञों ने एक प्रोजेक्ट बनाया। वन्यजीव विशेषज्ञ सुतीर्थ दत्ता, तृष्णा करकरिया और श्रवण सिंह राठौड ने नसीराबाद के कल्याणपुरा में एक खरमोर की पीठ पर वजन के 3 प्रतिशत भारनुमा सौर ऊर्जा से संचालित होने वाला सैटेलाइट ट्रांसमीटर लगा दिया। साथ ही इसकी निगरानी रखी गई।
फिर 500 किमी की दूरी तय कर पक्षी बिजौलिया, गांधी सागर व मंदसौर से होते हुए मध्य प्रदेश के आकार में पहुंचा। जहां उसके ट्रांसमीटर में लगी बैट्री खत्म हो गई। बैट्री खत्म होने से आगे की जानकारी नहीं मिल सकी। आगामी दिनों में अन्य खरमोर पक्षी पर भी ट्रांसमीटर लगाने की कवायद हो रही है।
यह आती है परेशानी
सौर ऊर्जा से संचालित ट्रांसमीटर की अवधि तीन वर्ष तक की होती है। इसके ऊपर बाल आ जाने से सूरज की रोशनी इस तक नहीं पहुंच पाती, जिससे यह डिस्चार्ज हो जाती है।
वल्र्ड रेकॉर्ड से कम नहीं
&कई दशक बाद यह सफलता मिली है। राजस्थान में यह काम हुआ है़, जो कि वल्र्ड रेकॉर्ड से कम नहीं है। -सुरतीर्थ दत्ता,
विशेषज्ञ, भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून

पत्रिका ने उठाया था संरक्षण का बीडा
40 साल पहले पत्रिका ने उठाया था संरक्षण का बीडा। देशभर में केवल तीन हजार खरमोर पक्षी ही बचे हैं। बस्टर्ड प्रजाति के इस पक्षी के संरक्षण के लिए राजस्थान पत्रिका ने 40 साल पूर्व प्रोजेक्ट शुरू किया था, जो अब पूरा हो रहा है। 2014 में नसीराबाद के समीप दो अन्य खरमोर (लेसर फ्लोरिकन) के भी ट्रांसमीटर लगाए थे, लेकिन दोनों भीलवाड़ा के आसपास ही रूक गए थे। पहली बार खरमोर द्वारा इतनी दूरी तय किए जाने का पता चला है।


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