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Sharadiya Navratri 2023: पहाड़ियों की तलहटी पर विराजित हैं सिंह पर सवार आशावारी माता, प्रदेशभर से पैदल चलकर आते हैं भक्त

Aasawari Mata Kul Devi Temple: चूलगिरी की पहाड़ियों की तलहटी पर पुराना घाट खानिया बंधा में अष्टभुजाधारी आसावरी माता विराजित है। कभी यहां घना जंगल था। आज माता के दर पर दूर—दूर से लोग पैदल चलकर आते है।

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Sharadiya Navratri 2023: पहाड़ियों की तलहटी पर विराजित हैं सिंह पर सवार आशावारी माता, प्रदेशभर से पैदल चलकर आते हैं भक्त

Sharadiya Navratri 2023: पहाड़ियों की तलहटी पर विराजित हैं सिंह पर सवार आशावारी माता, प्रदेशभर से पैदल चलकर आते हैं भक्त

जयपुर। चूलगिरी की पहाड़ियों की तलहटी पर पुराना घाट खानिया बंधा में अष्टभुजाधारी आसावरी माता विराजित है। कभी यहां घना जंगल था, तब माता एक चबूतरे पर विराजमान थी, शेर पर सवार माता के दाहिनी ओर के हाथों में चक्र, तलवार, धनुष है, वहीं एक हाथ से माता भक्तों को आशीर्वाद दे रही है, जबकि बाई ओर के हाथों में शंख, गदा, पुष्प व त्रिशुल है। आज माता के दर पर दूर—दूर से लोग पैदल चलकर आते है।

जानकारों की मानें तो माता की प्राण प्रतिष्ठा संवत् 1451 में करवाई गई। तब यहां घना जंगल होने से माता एक चबूतरे पर विराजमान रही। करीब 150 साल पहले यहां एक छोटा मंदिर बनवाया गया। माता के प्रति भक्तों की आस्था दिनों—दिन बढ़ती गई। बाद में कुलदेवी आशावरी माता नांढ़ला मीणा समाज जीर्णोद्धार विकास समिति का गठन कर मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया। आज माता का भव्य मंदिर है।

मंदिर का जीर्णोद्धार वर्ष 2009 में करवाया
समिति अध्यक्ष लक्ष्मीनारायण मीणा ने बताया कि मंदिर की स्थापना जामडोली के नांढला गोत्र के राजा ने करवाई। इसका उल्लेख जागा की पोथी में मिलता है। जामडोली बसने के बाद नांढला गोत्र के 56 बड़े बड़े गांव बसे। इस मंदिर का जीर्णोद्धार वर्ष 2009 में करवाया गया। इसके बाद शिखरबद्ध मंदिर का निर्माण हुआ, मंदिर की शिखर 51 फीट की है। मंदिर को बड़ा आकर दिया गया। गर्भगृह में आशावरी माता को विराजमान करवाया गया। समय के साथ यहां विकास होता गया। अब यहां खानियां के नाम से बड़ी आबादी बस गई। मंदिर के चारों ओर मकान बन गए।

आशावरी के साथ ज्वालामाता भी विराजित
मंदिर में आशावरी माता के साथ प्राचिन ज्वालामात की प्रतिमा भी विराजित है। यहां दर्शन करने आने वाले भक्तों को आशावरी माता के साथ ज्वालामाता के भी दर्शन होते है। मंदिर की सिढ़ियों के नीचे प्राचीन भैरवजी का मंदिर भी है।

नवरात्र में आती पदयात्रा
आशावरी माता के दरबार अब भक्त पैदल चलकर आते है। मंदिर समिति के कोषाध्यक्ष कैलाश चन्द्र मीना ने बताया कि नवरात्र में माता के मेला भरता है। दोनों नवरात्र के अलावा श्रावण व भाद्रपद में माता के कई जगहों से पदयात्राएं आती है। इसके अलावा प्रदेभर से माता के दरबार के श्रद्धालु आते है।

माता को लगता पुए-पुड़ी का भोग
मंदिर पुजारी बृजमोहन शर्मा ने बताया कि माता के दर्शन सुबह 5.30 बजे से खुलते है। नियमित सेवा के बाद दोपहर 12 बजे तक मंदिर खुला रहता है, वहीं शाम को 4 से रात 8 बजे तक मंदिर के दर्शन खुले रहते है। माता की मूर्ति करीब साढ़े तीन फीट की है। माता को पुए, पुड़ी, हलुवा, खीर आदि का भोग लगाया जाता हैै। अष्टमी को यहां बड़ी संख्या में भक्त आते है।