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सविता व्यास
जयपुर। रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के प्रेम और सुरक्षा के वचन का प्रतीक है, लेकिन राजस्थान के कई इलाकों में यह पवित्र रिश्ता 'आटा-साटा' जैसी कुप्रथा की बेड़ियों में जकड़ा हुआ है। यहां भाइयों की शादी के बदले बहनों का सौदा कर दिया जाता है। बिना उनकी इच्छा, उम्र या सपनों की परवाह किए। ये सौदे कई बेटियों के लिए जीवनभर की कैद बन जाते हैं, जो उन्हें मानसिक और शारीरिक यातना, मजबूरी और कभी-कभी मौत तक की ओर धकेल देते हैं। पैतृक संपत्ति में बेटियों का हक न मांगना, इस अमानवीय प्रथा को और मजबूत बना रहा है। ऐसे में, जहां रक्षाबंधन की डोर सुरक्षा का वादा करती है, वहीं 'आटा-साटा' उस डोर को निर्दयता से काट देता है।
सीमा और सुमन की मार्मिक कहानियां
18 साल की सीमा (परिवर्तित नाम) की जिंदगी आटा-साटा ने तबाह कर दी। 15 साल की उम्र में भाई की शादी के लिए उसका रिश्ता तय हुआ। ससुराल में मारपीट की तो वह पीहर आ गई। इससे भाई का रिश्ता टूट गया। दूसरी शादी की तो पति की शराबखोरी और हिंसा से वह टूट गई। वह अब मासूम बेटे के लिए वह जी रही है। नागौर की 21 वर्षीय ग्रेजुएट सुमन की कहानी और दुखद है। 2021 में उसने सुसाइड नोट में लिखा, 'आटा-साटा ने मुझे मार डाला। कोई भाई अपनी बहन की चिता पर घर न बसाए।'
शिक्षित बेटियों का संघर्ष
जयपुर के मालवीय नगर में 2021 में एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर लड़की ने आटा-साटा के तहत शादी से इनकार किया। चूरू के मुंदीताल गांव में एक महिला को अपने मंगेतर से शादी के लिए भागना पड़ा, क्योंकि भाई ने जान से मारने की धमकी दी। जैसावास के छगनाराम चौधरी ने 2024 में प्रथा के खिलाफ उदयपुर में शादी की, तो खाप पंचायत ने उनके परिवार का हुक्का-पानी बंद कर 20 लाख का जुर्माना ठोका।
सामाजिक दबाव और बेटियों की कमी
माउंट आबू की जनचेतना संस्था की डायरेक्टर रिचा औदिच्य के अनुसार लड़कियों की कमी, बेरोजगारी और कम शिक्षा के कारण परिवार आटा-साटा को अपनाते हैं। शर्त होती है- बेटी देंगे तो बेटी लेंगे। इसमें बाल विवाह और उम्र में बड़े अंतर वाले रिश्ते आम हैं।
जागरुकता और कठोर कानून जरूरी
इस प्रथा में दो परिवारों के बीच लड़कियों की अदला-बदली कर शादियां की जाती हैं। आटा-साटा के कारण तलाक और आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं। वर्ष 2023 में गहलोत सरकार ने कानून की बात की, पर अमल नहीं हुआ। बेटियों को बचाने के लिए कठोर कानून, जागरूकता और शिक्षा जरूरी है.
प्रेमचंद डाबी, प्राचार्य, सर्वोदय कन्या महाविद्वालय बागीदौरा बांसवाड़ा
दावा दायर करने से पीछे हटती हैं बेटियां
कोर्ट में 100 फीसदी केसों में से करीब 5 से 7 प्रतिशत केस बेटियों के पैतृक संपत्ति में दावे के होते हैं। भाई-बहनों के रिश्ते खराब होने के डर से अभी भी राजस्थान में बेटियां पैतृक संपत्ति में बंटवारे को लेकर कतराती हैं।
महावीर सुरेंद्र जैन, पूर्व अध्यक्ष बार एसोसिएशन सांगानेर जयपुर
Published on:
10 Aug 2025 02:44 pm
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