
आबूरोड संसाधनों व शिक्षकों की कमी से क्षेत्र के कई सरकारी शिक्षण संस्थान जूझ रहे हैं। इन स्कूलों में शिक्षकों की कमी व मौजूदा शिक्षक ठीक से ना पढ़ाने से छात्र स्वयं के बूते पर पढ़ाई करने को मजबूर हो जाते है। वहीं एक स्कूल ऐसा भी है जहां कक्षा पहली से पांचवीं तक के छात्र बाहर से आने वालों व शिक्षकों का स्वागत अंग्रेजी संवाद के साथ करते है। अब हर कोई यहीं कहेगा कि इसमें क्या नई बात है, ऐसा तो हर निजी विद्यालयों में होता है और बात लाजिमी भी है। हिन्दी समेत अंग्रेजी भाषा का ज्ञान प्राथमिक स्तर की कक्षाओं में केवल निजी विद्यालयों में ही देखने को मिल सकता है। लेकिन यहां बात हो रही है आदिवासी बहुल क्षेत्र सियावा के जलोइया फली स्थित राजकीय आदर्श प्राथमिक विद्यालय की। जब पत्रिका नींव: शिक्षा का सवाल लेकर इस विद्यालय में पहुंचे तो छात्रों ने गुड मॉर्निंग कहकर स्वागत किया।
स्कूल में फिलवक्त कुल 98 छात्रों के नामांकन है। इन छात्रों को पढ़ाने के लिए सिर्फ रावताराम व भीमाराम दो ही शिक्षक है, लेकिन दोनों शिक्षक पढ़ाई के मामले में कोई कमी नहीं छोड़ते। छात्रों को हिन्दी समेत अंगे्रजी व गणित विषयों की भी अच्छे से शिक्षा दी जाती है। आदिवासी बहुल व भाखर क्षेत्र में इस विद्यालय को आदर्शविद्यालय घोषित किया गयाहै।
पत्रिका में समाचार के बाद सुधरी व्यवस्था
स्कूल में पढ़ा रहे शिक्षक रावताराम ने बताया कि पत्रिका में विद्यालय को लेकर समाचार प्रकाशित होने के बाद व्यवस्थाओं में काफी सुधार हुआ। पहले छात्रों के लिए दरी पर्याप्त उपलब्ध नहीं होती थी, लेकिन अब पर्याप्त मात्रा में दरियां भेजी गई है। छात्र-छात्राओं के लिए शौचालयों की भी समस्या थी। अब छात्र व छात्राओं के लिएअलग शौचालय बनवाए गए है। पहले आसपास के लोग भी छात्रों को कम ही विद्यालय भेजते है। लेकिन अब आठ-दस ही अनुपस्थित रहते हैं। स्कूल में 70 छात्र उपस्थित मिले।
सर्दी में ठिठुरते हुए आते हैं छात्र
स्कूल में जलोईया फली समेत आसपास के छात्र पढऩे आते है। स्कूल में अधिकतर कृषक व मजदूरी करने वाले परिवारों के घर से ही बच्चें पढऩे आते है। अधिकतर छात्रों के पास सर्दी से बचाव के लिए स्वेटर नहीं है। ऐसे में अधिकतर छात्र-छात्राएं सर्दी में ठिठुरते हुए ही स्कूल आते है। रावताराम ने बताया कि स्कूल में छात्रों के लिए पर्याप्त कमरे व दरियां उपलब्ध है, लेकिन छात्रों के पास स्वेटर नहीं होने से परेशानी होती है। कमरे होने के बावजूद छात्रों को सर्दी से बचाव के लिए धूप में ही पढ़ाना पड़ता है।
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