लोग बात करने लगे, जब उसे कार चलाना आता ही नहीं तो सड़क पर लेकर क्यों निकला। परिवहन विभाग भी बिना तस्दीक के लाइसेंस बना देता है। घर का माहौल बिगड़ता देख दोनों भाइयों के शव जल्दी ही अंत्येष्टि के लिए ले गए, जहां पर गौरांश ने चाचा और पिता की चिता को अग्नि दी। घर लौटने पर गौरांश बोला, अब मेरे पापा और चाचा कब घर आएंगे। यह सुनकर उसके दादा राजकुमार फूट फूटकर रोने लगे।
पसलियां टूटकर फेंफड़ों में धस गईं हादसे के वक्त कार की टक्कर से उछलकर करीब 70 फीट दूर जा गिरे पुनीत और विवेक की पसलियां टूटकर फेफडों में धंस गई। इससे शरीर में खून भर गया था और उनकी मौके पर मौत हो गई थी।
आंखों के तारे यूं छोड़ जाएंगे पिता राजकुमार को बार-बार रिश्तेदार ढांढ़स बंधा रहे थे। वे बोल रहे थे कि उनकी आंखों के तारे छोड़ गए। रिश्तेदार बोले, हमेशा राजकुमार हंसते रहते थे, लेकिन हादसे के बाद से उनकी आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे। कुछ बोल भी नहीं रहे।
हमेशा मदद के लिए दोनों भाई रहते थे तैयार लोगों ने बताया कि पुनीत और विवेक काफी हसमुंख स्वभाव के थे। कॉलोनी में दूसरों की मदद के लिए वह हमेशा तैयार रहते थे। दोनों भाई भगवान शिव के बड़े भक्त थे। हर रोज सुबह चार बजे उठ जाते और कॉलोनी में बने मंदिर में पूजा करने जाते थे।
संयोग, उस दिन एक ही बाइक पर लौट रहे थे पड़ोसियों ने बताया कि पुनीत, विवेक अक्सर अलग-अलग बाइक से जयपुर जाते थे। विवेक कई बार पिता राजकुमार के साथ आता था, लेकिन यह संयोग ही था कि मंगलवार को पुनीत और विवेक एक ही बाइक से लौट रहे थे।