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मातृभाषा से ही सर्वांगीण विकास संभव

शिक्षा : एक्सपर्ट अरुण सिंह भदौरिया बता रहे हैं विद्यार्थी और परिजनों के लिए मंत्र

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जयपुर

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Neeru Yadav

Jan 20, 2021

मातृभाषा से ही सर्वांगीण विकास संभव

मातृभाषा से ही सर्वांगीण विकास संभव

हमारे चारों ओर जो भी वस्तुएं हमें दिखाई देती हैं उन सभी का आविष्कार अन्वेषण हमारे देश में नहीं हुआ यह चिंता का विषय है। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी कोई नए आविष्कार नहीं कर पाए, जिसने दुनिया की दिशा और दशा बदल दी हो। हमारे यहां शिक्षा का माध्यम मातृभाषा नहीं है। व्यक्ति की मौलिक चेतना मातृभाषा और एक विदेशी भाषा के द्वंद में घुटकर समाप्त हो जाती है। विश्व के जितने भी प्रगतिशील राष्ट्र हैं उनके यहां शिक्षा का माध्यम मातृभाषा ही है। हमारा देश विविध भाषाओं वाला देश है इसलिए एक सर्वमान्य भाषा नहीं हो सकती यह दलील दी जाती है। किंतु भौगोलिक विस्तार के साथ भाषाई विविधता हर देश में होती है। चीन में भी मेंडरिन, केंटनीज, शियांग, मिन भाषाएं प्रचलित हैं। रूस में पैतीस से अधिक भाषाएं और जापान जैसे छोटे से देश में जापानी, रयू, क्युआंन बोली जाती हैं। इन राष्ट्रों ने क्षेत्रीयता से ऊपर उठकर राष्ट्र के बारे में सोचा और एक भाषा को राष्ट्रभाषा स्वीकार कर शिक्षण प्रारंभ किया। हमारे देश में क्षेत्रीय भाषाओं के बोलने वालों की संख्या भी अधिक है, तो उन राज्यों में वहां की मातृभाषा में शिक्षण हो सकता है। अंग्रेजी सभी जगह छठी या नवीं से सिखाई जा सकती है।

तीन चरणों में हो सकता है लागू

मातृभाषा में पढ़ाने के लिए तीन चरण में लागू हो सकता है। प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा से पढ़ाई की शुरुआत हो। छठी कक्षा से हिंदी और अंग्रेजी को पढ़ाई से जोड़ा जाए। इसके बाद हिंदी या मातृभाषा में शिक्षा दी जाए। जरूरी होने पर अंग्रेजी विकल्प भी चुन सकते हैं। इसके लिए देश में अनुवाद के सेंटर बनाए जाएं। इससे तकनीकी किताबें आसानी से बच्चों को उन्हीं की भाषा में उपलब्ध हो सकें। मध्यप्रदेश का उदाहरण से मामला समझें तो राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने हिंदी में बीई में कोर्स करने की अनुमति दी है, अब विद्यार्थियों के पास पुस्तकें ही उपलब्ध नहीं हैं। हमें यह मानना होगा है कि मौजूदा पढ़ाई का सिस्टम बीते पचास साल में विकसित हुआ है, इसलिए हमें कुछ समय इस मॉडल को भी देना होगा। स्नातकोत्तर अंग्रेजी भाषा में करने की सुविधा हो, जिससे वह दुनिया के बाहर भी अवसर पा सके।

कोरोनाकाल में आई परेशानी

कोरोनाकाल में अचानक स्कूली बच्चों समेत सभी की पढ़ाई ऑनलाइन करानी पड़ी। ऐसे में उन परिवारों में समस्या ज्यादा आई, जो खुद तो हिंदी या क्षेत्रीय भाषा में पढ़े हैं और बच्चे अंग्रेजी माध्यम में। मातृभाषा या हिंदी में पढ़ाई होती तो छोटी कक्षाओं के बच्चों को भी परिजन आसानी से समझा सकते थे।

भाषा के दरवाजे बंद न हों

भाषा की बात करते हैं तो कोई भी भाषा के दरवाजे बंद नहीं होने चाहिए। ऐसा हमने संस्कृत के साथ किया। संस्कृत ने अन्य भाषाओं के लिए अपने दरवाजे बंद रखे। हमने समय रहते दूसरी भाषाओं के शब्द भी अंग्रेजी की तरह संस्कृत में समाहित किए तो आज संस्कृत अलग-थलग नहीं होती। जैसे हमारे पास ट्रेन का कोई शब्द नहीं था तो इसका अनुवाद कर लौहपथगामिनी लाए, पंप का अविष्कार पौराणिक काल में नहीं हुआ था। हमारे पास यह शब्द था ही नहीं तो उस शब्द को संस्कृत में लेने में संकोच नहीं करना चाहिए। अंग्रेजी ने हिंदी सहित अन्य भाषाओं के शब्दों को लेकर अपना शब्दकोष समृद्ध किया।

पारसी समुदाय से सीखें

भाषा के मामले में पारसी समुदाय का उदाहरण देना यहा तर्कसम्मत रहेगा। उन्होंने अपनी मातृभाषा गुजराती को भी नहीं छोड़ा और एक दूसरी भाषा अंग्र्रेजी को अपने साथ समाहित कर अपना और समाज का लगातार विकास किया। वे उस समय पानी के जहाज से लेकर एयरलाइंस तक भारत में लाए। आज यह समुदाय परंपरा के साथ लगातार इनोवेशन कर आगे बढ़ रहा है। बाकी देश में हम मातृभाषा को छोड़ रहे हैं। (इंटरव्यू : राजीव जैन)