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अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा ये पुरातन कुआं

सूखे हलक की प्यास बुझाने वाला पुरातन थिरानियों का कुआं अतिक्रमण का शिकार होने के बाद अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। 

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Bhola Nath Shukla

May 13, 2015

सूखे हलक की प्यास बुझाने वाला पुरातन थिरानियों का कुआं अतिक्रमण का शिकार होने के बाद अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। कभी कस्बे में स्वच्छ व मीठे पानी का प्रमुख स्त्रोत रहा कुआं अब उपयोग नहीं होने के कारण उपेक्षा का दंश झेल रहा है। करीब डेढ़ सदी के इतिहास का गवाह यह कुआं अब जीर्ण-शीर्ण हालत में है। इसकी मुंडेर टूट कर ढह गई।
कभी कुएं की पहचान रहे चार में से दो ही गुम्बद शेष बचे हैं व दो का अस्तित्व मिट गया। इसके आगे का विशाल चौगान अतिक्रमण की भेंट चढ़ गया। इसके एक तरफ मंदिर खड़ा हो गया तो दूसरी तरफ दुकानों के अतिक्रमण ने कुएं को पूरी तरह ढक लिया। इससे कुएं की तरफ जाने के सारे रास्ते बंद हो गए। ऐतिहासिक धरोहर पर अतिक्रमण रोकने को लेकर नागरिकों ने नगर पालिका प्रशासन को कई बार चेताया पर प्रभावी कार्रवाई के अभाव में इसका बड़ा ूभाग अतिक्रमण की जद में आ गया। अधिकतर रास्ते बंद हो जाने के कारण महिलाएं वहां कुआं पूजन के रीति-रिवाज भी नहीं निभा पा रही। ऐसे में इसे बचाना आवश्यक हो गया है।
सौदेवाला कुआं
बाद के वर्षों में कुएं पर हर समय मौसम को सट्टा लगाने वालों की मौजूदगी के कारण इसे सौदे वाला कुआं कहा जाने लगा। सुबह होते ही यहां सटोरियों की भीड़ जुटती है जो शाम तक रहती है। इसके पास खड़े होकर आसमान की गहराई में ताकती सटोरियों की निगाहें मौसम के मिजाज को भांप कर वर्षा होने या नहीं होने, वर्षा के पैमाने के अनुसार नाली चलने या नहीं जैसे सौदे होते हैं।
कुछ समय पहले तत्कालीन थाना प्रभारी रिछपाल चारण के नेतृत्व में पुलिस ने यहां से करीब 14 सटोरियों को पकड़ा था। इसके बाद एक बार तो सट्टे का कारोबार करने वाले यहां से पलायन कर गए पर अब फिर उनकी भीड़ जुटने लगी है। इन हालात के बीच संस्कृति प्रेमी पुरातन कुएं की सुरक्षा के प्रति चिंता जताते हैं। (नसं)