शोध की लेखिका डॉ. एल्ज़े सिगूते मिकालोनायटे ने कहा कि आज के “स्क्रीन और स्मार्टफोन की दुनिया” में अमूर्त सोच करने की क्षमता धीरे-धीरे खोती जा रही है। शोधकर्ताओं का यह भी मानना है कि कला की सुंदरता में मन लगाना लोगों को रोज़मर्रा की चिंताओं से बाहर निकालने में मदद करता है।
इस अध्ययन में प्रतिभागियों को मिट्टी से बनी चीजों की प्रदर्शनी दिखाई गई। एक समूह को इन कलाकृतियों की सुंदरता का मूल्यांकन करने को कहा गया, जबकि दूसरे समूह को बस उन्हें देखने को कहा गया।
वरिष्ठ शोधकर्ता प्रोफेसर सिमोन शनाल ने कहा कि मिट्टी से बनी वस्तुएं इस अध्ययन के लिए उपयुक्त थीं।
उन्होंने कहा: “अगर हम किसी प्रसिद्ध चित्रकार की शानदार पेंटिंग दिखाते, तो वह बहुत ज़्यादा प्रभावशाली होती। हमें ऐसे कला कार्यों की ज़रूरत थी जो अपने रूप में सूक्ष्म हों और जिन्हें देखने में ध्यान व गहराई की ज़रूरत पड़े।”
परिणामों में पाया गया कि जिन लोगों ने कला की सुंदरता का आकलन किया, उन्होंने ज्यादा अमूर्त सोच दिखाई, जबकि सिर्फ देखने वाले समूह ने ऐसा नहीं किया। हालांकि, इससे उनकी खुशी की भावना में कोई खास फर्क नहीं पड़ा।
डॉ. मिकालोनायटे ने कहा कि ये परीक्षण यह समझने के लिए बनाए गए थे कि लोग किस प्रकार सोचते हैं।
उन्होंने कहा: “आजकल दिमाग को खाली छोड़ देना और विचारों में बह जाना दुर्लभ हो गया है, जबकि यही वो समय होता है जब हम अपने सोचने के दायरे को बढ़ाते हैं।”
“कला की सुंदरता की सराहना करना शायद उन अमूर्त मानसिक प्रक्रियाओं को जगाने का सबसे अच्छा तरीका हो सकता है, जो आज के डिजिटल युग में कहीं खोती जा रही हैं।”