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‘हमारी संस्कृति की ​पहचान है संस्कृत, प्रत्येक भारतीय दे बढ़ावा, अगली जनगणना में जरूर पंजीकृत कराएं’

दुनियाभर में संस्कृत भाषा लोकप्रिय हो रही है। जर्मनी, यूरोपीय देशों में संस्कृत पढ़ने और पढ़ाने में लोग दिलचस्पी ले रहे हैं। इसके विपरीत हम भारतीय अपनी मातृभाषा संस्कृत को भूलते जा रहे हैं।

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जयपुर

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Abdul Bari

Dec 27, 2022

Sanskrit

'संस्कृत भारत की सबसे प्राचीन, सुंदर और दिव्य भाषा है। इसे सभी भारतीय भाषाओं की मां कहा जाता है। मलयालम, तमिल, हिंदी और कई दक्षिण भारतीय भाषाओं की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है। ऐसे में अगली भारतीय जनगणना के दौरान संस्कृत को अपनी भाषा के रूप में शामिल कराना बेहद महत्वपूर्ण है। हम सभी भारतीयों को इस दिव्य भाषा को जीवित रखने की पूरी जिम्मेदारी लेनी चाहिए। क्योंकि यदि संस्कृत को भुला दिया गया तो यह भाषा अपना मूल्य खो देगी। ऐसे में संस्कृत को बिल्कुल न भूलें, क्योंकि हमारी संस्कृति की पहचान ही संस्कृत है। हालांकि आपकी मातृभाषा हिंदी, गुजराती, मराठी या अन्य भी हो सकती है।

कई बार देखने में आया है कि जनगणना में संस्कृत भाषा को लुप्तप्राय भाषा के रूप में माना जाता है। ऐसे में सरकार से भी संस्कृत के विकास के लिए धनराशि का सहयोग नहीं मिल पाता। इसलिए, भारतीय होने के नाते जनगणना अधिकारी द्वारा पूछे जाने पर कृपया उन्हें यह बताना न भूलें कि हम संस्कृत जानते हैं। यदि वर्तमान में संस्कृत की उपेक्षा की गई तो हम संस्कृत भाषा को हमेशा के लिए खो देंगे। इसलिए इस बार संस्कृत का विशेष ध्यान रखें और जनगणना में संस्कृत का नाम शामिल कराएं।

देखने में आ रहा है कि दुनियाभर में संस्कृत भाषा लोकप्रिय हो रही है। जर्मनी, यूरोपीय देशों में संस्कृत पढ़ने और पढ़ाने में लोग दिलचस्पी ले रहे हैं। इसके विपरीत हम भारतीय अपनी मातृभाषा संस्कृत को भूलते जा रहे हैं। हम हर दिन संस्कृत भाषा नहीं बोलते हैं, इसके पीछे का कारण पूरे भारत में संस्कृत बोलने वालों की संख्या है। पिछली जनगणना के दौरान भारत में संस्कृत भाषा के अलावा दूसरी भाषाओं की बड़ी संख्या थी। इन आंकड़ों के मुताबिक केवल दो से तीन हजार लोग ही भारत में प्रतिदिन संस्कृत बोलते हैं।

हमारी प्रार्थना, मंत्र, श्लोक, हमारे प्राचीन ग्रंथ, वेद आदि संस्कृत में लिखे और बोले जाते हैं। जब हम संस्कृत में बोलते हैं तो इसे अपनी दूसरी भाषा के रूप में कैसे भूल सकते हैं। संस्कृत को हम सभी के सामूहिक प्रयासों से ही जीवित रखा जा सकता है। यह सर्वविदित है कि हम भारतीयों ने अपना नुकसान किया है, और संस्कृत को अपनी भाषा के रूप में संजो कर नहीं रखा है। हालांकि निश्चित रूप से इसे ठीक किया जा सकता है, यदि आप सभी जनगणना में पहली या दूसरी भाषा के रूप में संस्कृत दर्ज कराते हैं। तो उसके लिए सरकार अनुदान और धन जारी करती है।

यदि ऐसा नहीं किया जाएगा तो हमारी अपनी प्राचीन संस्कृत भाषा लुप्त हो रही भाषाओं की सूची में शामिल हो जाएगी। भारत को फिर से विश्वगुरु बनाने के लिए देश की इस सबसे प्राचीन भाषा को पुनर्जीवित करना हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है। भारतीय होने पर गर्व करें और संस्कृत से स्वंय को सदैव जोड़े रखें।'

लेखक: प्रोफेसर, डॉक्टर मयंक वत्स (श्वसन चिकित्सा, नींद और गहन देखभाल विभाग, दुबई) हैं।

( आर्टिकल में लेखक के निजी विचार हैं। )