राजस्थान पत्रिका ने पड़ताल की तो जयपुर सहित राज्य के ज्यादातर शहर-कस्बों में हालात अराजक नजर आए। पड़ताल में सामने आया कि हाईकोर्ट के कई बार फटकार लगाने और आदेश देने के बावजूद कार्रवाई होने की बजाय अवैध इमारतें धड़ाधड़ खड़ी हो रही हैं। कब्जे और अवैध निर्माण करने वालों को न पर्यावरण की परवाह है, न जनता की सुविधा की फिक्र। न अदालत का डर है और न नियम-कायदों की चिन्ता। कहीं नदी-नालों के बहाव क्षेत्र में धड़ल्ले से निर्माण हो रहे हैं, कहीं सुविधा क्षेत्र पर व्यावसायिक गतिविधियां चल रही हैं लेकिन जिम्मेदार मौन हैं।
परनामी के रवैये की प्रदेशभर में तीखी आलोचना हो रही है लेकिन सरकार के मंत्री अप्रत्यक्ष तौर पर उनके बयान के साथ ही खड़े नजर आ रहे हैं। मीडिया के सवालों पर संसदीय कार्य मंत्री राजेन्द्र राठौड़ ने जवाब तो दिया लेकिन यह कहकर बचाव ही करते नजर आए कि बयान उनका व्यक्तिगत मत हो सकता है। ऐसे में अवैध निर्माण करने वालों को शह मिल रही है।
– 63 शिकायतकर्ता पहुंचे थे अतिक्रमणों के खिलाफ अक्टूबर में नगर निगम में लेकिन नवम्बर में अब तक यह आंकड़ा 23 ही है, जबकि अक्टूबर से पहले तक आंकड़ा थोड़ा ही ऊपर-नीचे होता रहा है
(विशेषज्ञ कहते हैं कि शिकायतों का निस्तारण नहीं हो तब ऐसे हालात बनते हैं कि जनता शिकायत करना ही छोड़ देती है। शिकायतों का आंकड़ा घटाने के लिए लोकसेवकों ने इसे साधन ही बना लिया है)