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बैक्टीरियोफेज ने किया गंगाजल से बैक्टीरिया और रोगाणुओं का सफाया

जयपुर. लॉकडाउन के चलते गंगा नदी के पानी में पाए जाने वाले जीवाणु-रोधी बैक्टीरियोफेज की संख्या इतनी बढ़ गई है कि उसने गंगाजल को फिर से पतितपावन बना दिया है। बैक्टीरियोफेज गंगा के पानी में स्नान के बाद इंसानों के शरीर से निकले बैक्टीरिया और रोगाणुओं को खाते हैं और इसी के चलते गंगा को पतितपावनी नाम मिला हुआ है।

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जयपुर

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Subhash Raj

May 17, 2020

बैक्टीरियोफेज ने किया गंगाजल से बैक्टीरिया और रोगाणुओं का सफाया

बैक्टीरियोफेज ने किया गंगाजल से बैक्टीरिया और रोगाणुओं का सफाया

दशकों तक कड़ी मशक्कत और हजारों करोड़ रूपये खर्च कर सरकारें जिन नदियों को प्रदूषण से निजात नहीं दिलायी पायी, उस काम को वैश्विक महामारी कोरोना से बचाव के लिये जारी लाकडाउन ने महज 50 दिनों में बगैर एक पाई खर्च किये संभव कर दिखाया है। गंगा और यमुना समेत देश की अधिसंख्य नदियों का स्वच्छ दिखता जल और इसमे अठखेलियां करते जलचर इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।
मापदंडों के आधार पर जल में बॉयो केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) प्रति लीटर जल में तीन या तीन से कम मिलीग्राम होनी चाहिए। घुलनशील ऑक्सीजन (डीओ) की मात्रा एक लीटर जल में 5 मिलीग्राम से अधिक और पीएच वैल्यू 6.5 से 8.5 के बीच होनी चाहिए। इन परिस्थितियों में गंगा का जल बिल्कुल शुद्ध रहता है जो पीने और जलचरों के लिए भी संजीवनी दायक होता है।
आंकड़ों के अनुसार लॉकडाउन से पहले 13 मार्च को प्रयागराज के रसूलाबाद घाट में पीएच वैल्यू (9.6), शास्त्रीपुल (9.5), संगम घाट (9.0), छतनाग (8.5) और यमुना के सरस्वती घाट (8.0) पाया गया जबकि 19 अप्रैल को इन्ही घाटों पर यह मात्रा दो मिलीग्राम से लेकर 1.3 मिलीग्राम कम पायी गयी। बीओडी की मात्रा दो और तीन मिली ग्राम के बीच रही। इन घाटों पर बीओडी की मात्रा 2.8, 3.0, 2.7, 2.4 और 2.4 की तुलना में 2.8, 3.2, 3.1, 2.8 और 2.2 मिलीग्राम प्रति लीटर पाया गया है। इसके साथ दोनो के बीच का पीएच वैल्यू 8.24 के बीच रहा।बीओडी ऑक्सीजन की वह मात्रा है जो पानी में रहने वाले जीवों को तमाम गैरजरूरी ऑर्गेनिक पदार्थों को नष्ट करने के लिए चाहिए। बीओडी जितनी ज्यादा होगी पानी का ऑक्सीजन उतनी तेजी से खत्म होगा और बाकी जीवों पर उतना ही बुरा असर पड़ेगा। उद्गम से लेकर मुहाने तक गंगा का प्रवाह अब पावन हो चुका है।
गंगा नदी के पानी में जीवाणु-रोधी (बैक्टीरियोफेज) पाए जाते हैं, जो बैक्टीरिया और रोगाणुओं को खाते हैं। जब भी कोई गंगा में स्नान करता है तो उसके शरीर के साथ कई बैक्टीरिया पानी में पहुंच जाते हैं और उन्हें खाकर गंगा में पाए जाने वाले बैक्टीरियोफेज बहुत कम समय में अपनी मात्रा कई गुना बड़ा लेते हैं। इस तरह बैक्टीरियोफेज नामक जीवाणु गंगाजल में मौजूद हानिकारक सूक्ष्म जीवों को खत्म कर नदी के पानी को शुद्ध बनाते हैं। मैदानी इलाकों में गंगा के आते ही उद्योगों का करीब 78 फीसदी भारी भरकम रसायन बिना शोधन के सीधे गंगा में गिरकर उसे अशुद्ध बनाता रहा है। अब गंगा में रसायन न जाने से जल कहीं अधिक शुद्ध हो गया है। लॉकडाउन की वजह से लोगों का गंगा में स्नान, कूड़े फेंकना एवं उद्योग आदि सब बंद है जिससे प्रवाहित होने वाले हानिकारक विषैले तत्वों का प्रवाह गंगा में नहीं हो रहा है। इसका सीधा असर गंगाजल की शुद्धता पर पड़ा है। लॉकडाउन से पहले पहले गंगा में रासायनिक कचरा उद्योगों का सीधे गिरता रहा है। अब उद्योग बंद होने से गंगा नदी में उसका वेस्ट केमिकल नही जा रहा है जिसकी वजह से पूर्व की अपेक्षा गंगा अधिक साफ हो गई हैं। शोध में पाया गया है कि गंगा जल में करीब 18 से 20 वायरस ऐसे हैं, जिनका इस्तेमाल टीबी, टॉयफॉयड, न्यूमोनिया, हैजा-डायरिया, पेचिश, मेनिन्जाइटिस जैसे अन्य कई रोगों के इलाज के लिए किया जा सकता है।