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बाड़मेरः हादसा जो भूल नहीं सकती, बेटी गोद में थी…पर छिटक गई…अब तरस रही आंखें

सुखी है उसका नाम। वह पचपदरा के भांडियावास के पास हुआ दर्दनाक हादसा जिदंगी में कभी भूल नहीं पाएगी। क्योंकि उसेसामने मासूम पुत्री ममता को बस में भगवान के भरोसे छोड़कर बस के कांच से कूद कर बाहर आना पड़ा।

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barmer bus accident update

बालोतरा/बाड़मेर/जोधपुर। सुखी है उसका नाम। वह पचपदरा के भांडियावास के पास हुआ दर्दनाक हादसा जिदंगी में कभी भूल नहीं पाएगी। क्योंकि उसेसामने मासूम पुत्री ममता को बस में भगवान के भरोसे छोड़कर बस के कांच से कूद कर बाहर आना पड़ा। अब अफसोस हो रहा है कि मासूम बेटी गोद में होने पर भी उसे बचा नहीं पाई।

दरअसल, सुखी पत्नी सोनाराम बस में दो पुत्रियों के साथ जोधपुर जा रही थी। अस्पताल में भर्ती सुखी बावरी ने बताया कि गांव आसोतरा में उसका ससुराल है। बड़ी बेटी कमला के सिरदर्द होने पर इसे मंथराने के लिए वह मंगलवार को ससुराल आई थी। बुधवार को लौट रही थी, बड़ी बेटी कमला पास में और पांच महीने की छोटी बेटी ममता को गोद में बैठा कर यात्रा कर रही थी।

अचानक बस के जोर से लगे ब्रेक पर वह संभलती, इससे पहले ही दर्जनों यात्री उस पर धड़ाम से आ गिरे। इस दौरान मासूम बच्ची गोदी से छिटक कर कहीं गिर व दब गई। कुछ ही पल में आग ने बस को घेर लिया। उसने खूब आवाज दी, ढूंढ़ने की कोशिश की, लेकिन धक्का मुक्की की स्थिति में वह कहीं नहीं मिली।

दूसरी ओर आग उसकी ओर तेजी से बढ़ रही थी। बड़ी बेटी व खुद को खतरे में देख पहले उसने खिड़की से बेटी को बाहर फेंका व फिर वह कू दी। अस्पताल में उपचार के लिए भर्ती सुखी की आंखों में से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। उसकी नजरें चिकित्सालय के वार्ड के दरवाजे की ओर टिकी हुई थीं। वह बेसब्री से ममता का इंतजार कर रही थी। लेकिन कहीं भी उसके होने की खबर नहीं थी। संभवत: वह हादसे की भेंट चढ़ चुकी थी।

आंखों के सामने नजर आई मौत...
बस में सवार स्वरूपकुमार निवासी सराणा गांव जोधपुर में अध्यनरत है। वह स्कूल खुलने पर जोधपुर जा रहा था। उसने बताया कि हादसे में जलती बस को देख ऐसा लगा कि अब बच नहीं पाऊंगा। बाहर खड़े लोगों ने बस के कांच तोड़े और कांच से कूद कर जान बचा ली। आंखों के सामने लोग जिंदा जल गए।

जान बची, लेकिन अभी भी खौफ
जालोर के सांचौर निवासी शाहरुख का चेहरा खौफ से पीला पड़ा हुआ है। शाहरुख अपने ताऊ के साथ जोधपुर में आ रहा था। उसके पैर की हड्डी टूट गई।

सिर पर पत्थर लगा, बहादुरी से बची जान
जोधपुर निवासी प्रदीप, उनकी पत्नी पूजा और छह माह की पुत्री पीहू भी बस में सवार थे। आग लगने के दौरान बस के कांच बंद थे। प्रदीप ने कांच खोलने का प्रयास किया लेकिन नहीं खुला। किसी ने बाहर से पत्थर फेंककर कांच फोड़ा। यह पत्थर व कांच प्रदीप के सिर पर लगा, खून बहने लगा। इसके बावजूद उसने पुत्री को गोद में उठाया और दोनों कांच से नीचे कूद गए। जिससे उसका एक पांव फ्रैक्चर हो गया।


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