
जयपुर। भगवान राम के राजतिलक से पहले राजा दशरथ के वचन के अनुसार राम को वनवास मिल गया और भरत को राजगद्दी। पिता के वचन का सम्मान करने के लिए राम तो वन चले गए, लेकिन भरत ने आदेश नहीं माना और मां की इच्छा नहीं मानी और फैसले पर असहमति व्यक्त की। एक हद तक उपेक्षा की। असहमति का मतलब आलोचना नहीं है। प्राचीन भारत में होता आया है। यह बात बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कही। वे गुरुवार को जयपुर के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ राजस्थान में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की 98 वीं जयंती के अवसर पर हुई व्याख्यानमाला असहमति और लोकतंत्र पर बतौर मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे।
उन्होंने असहमति की सदियों पुरानी भारतीय परंपरा को विस्तार और विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से वर्णित किया। वेद, उपनिषद्, रामायण, महाभारत और गीता के प्रसंग, श्लोक और कथानकों से उन्होंने असहमति के अनेक उदाहरण प्रस्तुत किए। पूर्व प्रधानमंत्री को लेकर उन्होंने कहा कि वे गरिमापूर्ण असहमति और लोकतंत्र के प्रहरी थे।
प्रोग्रेसिव राइटर्स क्लब एसोसिएशन की ओर से हुए कार्यक्रम में अतिथियों को लोकेश कुमार सिंह साहिल ने स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया।
-पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने कहा कि जब में राजस्थान विवि का जब मैं अध्यक्ष बना तब वे कार्यालय का उद्घाटन करने आए थे। उन्होंने कहा कि वे आम आदमी की आवाज थे। उनके नेतृत्व में कई नेता खड़े हुए।
-विधायक गोपाल शर्मा ने वर्ष 1982 की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि पहली बार काशी स्टेशन पर उनसे मुलाकात हुई थी। वे कहते थे कि मैंने कभी पद और जिम्मेदारी किसी से मांगी नहीं।
-पूर्व सांसद पंडित रामकिशन ने भी पूर्व प्रधानमंत्री के साथ बिताए पलों को साझा किया। लोकसभा और विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण में उनकी भूमिका के बारे में भी उन्होंने बताया।
Updated on:
17 Apr 2025 08:22 pm
Published on:
17 Apr 2025 06:24 pm
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