
जयपुर. राजस्थान फार्मेसी काउंसिल में फर्जी दस्तावेज के आधार पर पंजीकरण के मामले सामने आने के बाद अब वर्ष 2018 में भाजपा सरकार के समय निकाली गई फार्मासिस्ट भर्ती परीक्षा को निरस्त कर इसे लिखित रूप में कराने के लिए संशोधित विज्ञप्ति जारी करने की मांग शुरू हो गई है। वर्ष 2018 में निकली इस भर्ती की परीक्षा के लिए पांच बार तारीखें जारी गई थी, लेकिन उसे निरस्त कर वन टाइम मेरिट से भर्ती का निर्णय कर लिया गया। लेकिन फर्जी डिप्लोमा की भरमार के कारण यह भर्ती पूरी नहीं हो पाई।
अब अभ्यर्थियों ने फ्रेशर और संविदा में समानता लाने के लिए चयनित सीटों का बंटवारा मध्यप्रदेश की तरह 80:20 के अनुपात में करने की मांग की है। अभ्यर्थियों का आरोप है कि राज्य में मात्र दो सरकारी कॉलेजों में अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों को बहुत कम अंक प्राप्त होते हैं, जबकि निजी कॉलेजों में अच्छे अंक प्राप्त होते हैं। राज्य के बाहर के विश्वविद्यालय से तो काफी अधिक प्रतिशत की अंकतालिकाएं बनी होती हैं। इसको लेकर राजस्थान फार्मासिस्ट संगठन के प्रदेश अध्यक्ष महेन्द्र जांगिड़ के नेतृत्व में शुक्रवार को मुख्य सचिव सुधांश पंत को ज्ञापन भी दिया गया। जिसमें फर्जी पंजीकरण के मामले की सीबीआई या सीआईडी से जांच की मांग की गई है।
कांग्रेस सरकार में नियम बदलकर मेरिट आधारित की गई
भाजपा सरकार ने फार्मासिस्ट भर्ती-2018 को परीक्षा से कराने का निर्णय लिया था। जिसे कांग्रेस सरकार के आने के बाद नियम बदलकर मेरिट आधारित करवा दिया गया। इसके बाद फर्जी पंजीकरण के मामले सामने आने के कारण भर्ती अटक गई।
2012 में परीक्षा से हुई थी भर्ती
वर्ष 2012 की फार्मासिस्ट भर्ती प्रक्रिया परीक्षा से थी। जिसमें समस्याएं सामने नहीं आई। अब 30 नंबर तक अनुभव वालों को बोनस दिए जा रहे हैं। उन्हें परीक्षा में मात्र 30-35 नंबर लाने होते हैं, जबकि फ्रेशर फार्मासिस्टों को 70 में से 60-65 अंक लाने होते हैं। अनुभव और फ्रेशर दोनों को मौका मिलता है।
Published on:
05 Jan 2024 08:04 pm
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