माना जा रहा है कि मंत्रिमंडल फेरदबदल के पीछे भाजपा का दबाव ज्यादा काम आया, जो पिछले दिनों रसाना, कठुआ मामले में अपनी छवि बिगडऩे से खासा चिंतित था। मंत्रिमंडल फेरबदल की जो सूची सामने आई है, उसके मुताबिक भी जिन आठ विधायकों को मंत्रीपद की शपथ लेनी है, उनमें से छह विधायक भाजपा के हैं और दो पीडीपी के कोटे से हैं। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि मंत्रिमंडल के कद्दावर नेता और सीएम मेहबूबा के डेप्युटी निर्मल सिंह ने न सिर्फ पद छोड़ा है, बल्कि नए मंत्रिपरिषद में भी उनका नाम नहीं है।
राजस्थान में भाजपा को है इनका डर
प्रदेशाध्यक्ष पद को लेकर राजपूत, अनुसूचित जाति-जनजाति, ब्राह्मण तथा जाट समुदाय के नेताओं की महत्वकांक्षा इस कदर बढ़ गई है कि पद नहीं मिलने की स्थिति में विरोध में भी कोई संकोच नहीं करेंगे। जातिगत सम्मेलनों में भी अब भाजपा अध्यक्ष पद की न केवल चर्चा होने लगी है, बल्कि वोटों का गणित समझाकर दावेदारी भी जताई जाने लगी है। केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेशाध्यक्ष तय माना जा रहा था, लेकिन मुख्यमंत्री की केंद्रीय नेतृत्व से मंत्रणा के बाद मामला अटक गया है। इसे मुख्यमंत्री खेमा अपनी रणनीतिक जीत मान रहा है।
अब कयास यह भी लगाया जा रहा है कि प्रदेशाध्यक्ष को लेकर सर्वानुमति नहीं बनने की स्थिति में राजे को भी प्रदेश भाजपा की कमान सौंपी जा सकती है। यह तय माना जा रहा है कि विधानसभा चुनाव वसुंधरा राजे के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। ऐसे में चुनाव प्रचार समिति और प्रदेशाध्यक्ष भी उनकी पसंद का होगा, ताकि प्रचार अभियान को लेकर किसी प्रकार का कहीं टकराव नहीं हो।