जयपुर. वर्तमान दौर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का है और इससे सृजन और विनाश दोनों संभव है। यह एक ऐसे बच्चे की तरह है जिसकी सही ट्रेनिंग इसे रचनात्मक और अनियंत्रित उपयोग खतरनाक भी बना सकती है। आईआईटी जम्मू के निदेशक प्रो. मनोज सिंह गौड़ ने ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एंड द फ्यूचर ऑफ ह्यूमैनिटी’ विषय पर कुछ ऐसे ही विचार साझा किये। राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित इस टॉक शो में गौड़ ने कहा कि एआई के भी अच्छे और बुरे दोनों पक्ष हैं।

एआई पर निर्भरता यानी रचनात्मक कमी
प्रोफेसर गौड़ ने कहा कि एआई का आगामी वर्षों में हेल्थकेयर इंडस्ट्री, लॉ एन्फारेर्समेंट, साईबर सुरक्षा, एग्रीकल्चर और एज्यूकेशन जैसे सेक्टर्स में दबदबा होगा। आज इन सेक्टर्स में एआई का बहुत ज्यादा उपयोग किया जा रहा है। एआई इंसानों से बेहतर काम कर रही है। गौड़ ने कहा कि एआई पर ज्यादा निर्भर होने की वजह से हमारी रचनात्मकता प्रभावित हो रही है। एआई नौकरियां जनरेट करने, ऑटोमेशन को बढ़ावा देने में काम आ सकती है। वहीं, ट्रेवल एजेंट, कंटेंट मॉडरेटर, ट्यूटर, सोशल मीडिया मैनेजर के लिए एआई चुनौती भी है।
मौलिक रचना पर भी एआई का खतरा
एआई की क्रिएटिविटी और उसके अनियंत्रित उपयोग को उदाहरण से समझाते हुए गौड़ ने चैट जीपीटी की मदद से विलियम शेक्सपियर, रामधारी सिंह दिनकर और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की शैली में कविताएं जनरेट कर दिखाईं। यानी मौलिक रचनाओं पर भी एआई का खतरा मंडराने लगा है। उन्होंने कहा कि एआई नौकरीपेशा लोगों के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभर रही है।