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अब भजनलाल सरकार के सामने आई ऐसी बड़ी चुनौती, चिरंजीवी और आरजीएचएस में करना होगा बड़ा बदलाव

राज्य में कई नि:शुल्क स्वास्थ्य योजनाओं और निरोगी राजस्थान से सरकारी अस्पतालों में संपूर्ण कैशलेस इलाज के बाद भी आने वाली नई महंगी दवाइयों के लिए मरीजों को लाखों खर्च करने पड़ रहे हैं। इनमें कैंसर, किडनी, हृदय रोग और अन्य दुर्लभ बीमारियों की नई महंगी दवाइयां शामिल हैं।

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विकास जैन

राज्य में कई नि:शुल्क स्वास्थ्य योजनाओं और निरोगी राजस्थान से सरकारी अस्पतालों में संपूर्ण कैशलेस इलाज के बाद भी आने वाली नई महंगी दवाइयों के लिए मरीजों को लाखों खर्च करने पड़ रहे हैं। इनमें कैंसर, किडनी, हृदय रोग और अन्य दुर्लभ बीमारियों की नई महंगी दवाइयां शामिल हैं। नए शोध के बाद शुरुआत में ये दवाइयां 20 वर्ष तक पेटेंट वाली कंपनी के एकाधिकार में रहती हैं और इसके कारण वे जैनेरिक की श्रेणी में शामिल नहीं होतीं। इस दौरान उनकी कीमत लाखों और यहां तक की करोड़ों में होती हैं। मस्कूलर डिस्ट्रॉफी, मस्कलर एट्रोफी, जैनेटिक डिसऑर्डर से जुड़ी बीमारियां भी मरीजों को महंगी पड़ रही हैं।

राज्य में अब तेलंगाना की तर्ज पर हब एंड स्पॉक मॉडल की भी जरूरत है। इसके अनुसार सभी तरह के अस्पतालों में महंगी जांच मशीनें देने की बजाय जिले के एक बड़े अस्पताल में ये मशीन स्थापित कर सभी निचले स्तर के अस्पतालों में कलेक्शन सेंटर बनाए जाते हैं। तेलंगाना में यह मॉडल सफलता पूर्वक काम कर रहा है। राजस्थान में भी पिछली सरकार के समय इसे लागू करने की कोशिश की गई थी, लेकिन निजी सहभागिता से देने की कोशिश के कारण यह सफल नहीं हो सकी। इस मॉडल से बड़े अस्पताल पर मरीजों का भार कम होता है और मरीजों की भी भागदौड़ कम हो जाती है।

योजनाओं के एकीकरण की जरूरत
मरीजों के सामने बड़ा संकट सरकारी और निजी अस्पतालों में कई तरह की योजनाओं के कारण भी है। अस्पताल में जाने के बाद वे यह नहीं समझ पाते कि उन्हें किस योजना के तहत किस तरह का इलाज नि:शुल्क मिलेगा। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार अब विस्तार के साथ योजनाओं का एकीकरण कर नेशनल या स्टेट हेल्थ सिस्टम के तहत एक प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराने की जरूरत है।

नहीं करते पैकेज से बाहर इलाज
चिरंजीवी और आरजीएचएस योजनाओं में शामिल निजी अस्पताल भी चिकित्सा विज्ञान के आधुनिक नवाचार की सुविधा नि:शुल्क योजनाओं के तहत मरीजों को नहीं दे पा रहे। उनका कहना है कि योजनाओं के पैकेज सीमित हैं, जिसमें चाहकर भी महंगे नवाचार और दवाइयों से इलाज नहीं किया जा सकता।


यहां बदलाव हो तो सुधरे हालात
- नि:शुल्क दवा काउंटर पर दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित होनी चाहिए
- दवा आपूर्ति की मजबूत चेन हो
- मरीज को अस्पताल या दवा काउंटर से पहले ही ऑनलाइन यह पता होना चाहिए कि वहां दवा उपलब्ध है या नहीं
- इलेक्ट्रोनिक हेल्थ रिकाॅर्ड होना चाहिए
- प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर ऑटो एनालाइजर उपलब्ध कराने चाहिए
- सभी तरह के अस्पतालों में जांच रिपोर्ट की सुविधा ऑनलाइन हो
- निजी अस्पतालों पर निर्भरता की बजाय सरकारी क्षेत्र को मजबूत करने की जरूरत

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अभी नि:शुल्क दवा का हाल दवाइयां, (सर्जिकल और सूचर्स)
मेडिकल कॉलेज अस्पताल : 831
जिला, उप जिला और सैटेलाइट अस्पताल : 743
सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र : 568
प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और डिस्पेंसरियां : 319
नि:शुल्क जांच योजना
मेडिकल कॉलेज अस्पताल : 70
जिला, उप जिला और सैटेलाइट अस्पताल : 56
सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र : 37
प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और डिस्पेंसरियां : 15

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