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दुनिया में बढ़ी स्वीट ड्रिंक्स की खपत, भारत सहित एशियाई देश काफी पीछे

-सबसे ज्यादा अफ्रीकी देश रवांडा में, यहां 34 ड्रिंक्स एक सप्ताह में पी जाता है एक व्यक्ति

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दुनिया में बढ़ी स्वीट ड्रिंक्स की खपत, भारत सहित एशियाई देश काफी पीछे

दुनिया में बढ़ी स्वीट ड्रिंक्स की खपत, भारत सहित एशियाई देश काफी पीछे

लंदन. दुनिया में मीठे ड्रिंक्स की खपत बढ़ गई है। हाल ही नेचर कम्युनिकेशन जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में सामने आया कि 1990 से 2018 के बीच शर्करायुक्त ड्रिंक्स की वैश्विक खपत में 16 फीसदी की वृद्धि हुई है। 185 देशों के इन आंकड़ों के आधार पर मौजूदा जीवन शैली को लेकर अमरीका की टफ्ट यूनिवर्सिटी के अध्ययन में सामने आया कि 2005 में बाद से मीठे ड्रिंक्स का सेवन बढ़ गया, खासकर 40 वर्ष की उम्र से ज्यादा के लोगों में। अध्ययन में सामने आया कि दुनिया में सबसे ज्यादा शर्करा युक्त ड्रिंक्स उप सहारा अफ्रीका, लैटिन अमरीका और कैरेबियाई देशों के लोग पीते हैं। पूर्वी अफ्रीकी देश रवांडा में सबसे ज्यादा 34 डिंक्स एक व्यक्ति सप्ताह में औसतन पीता है, जबकि टोगो में 29 ड्रिंक है।

भारत, चीन, बांग्लादेश में ज्यादा नहीं
इंग्लैंड में 4.2 ड्रिंक्स हर व्यक्ति औसतन एक सप्ताह में पी लेता है। ब्रिटेन की खपत पश्चिमी यूरोप में सबसे अधिक है। एशियाई देशों की बात करें तो भारत, चीन और बांग्लादेश में औसत साप्ताहिक ड्रिंक्स का महज 5 फीसदी ही स्वीट ड्रिंक्स इस्तेमाल करते हैं।

ऐसे किया सर्वेक्षण
ये निष्कर्ष बड़े सर्वेक्षण से निकाला है, जिसमें 20 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों से उनकी आहार आदतों के बारे में पूछा गया। अध्ययन में मीठी चाय और कॉफी का शामिल नहीं किया गया, क्योंकि शर्करा पेय के विपरीत इनमें आमतौर पर एक कप में 50 कैलोरी कम होता है।

डब्लूएचओ कर चुका आगाह
विश्व स्वाथ्य संगठन के मुताबिक स्वीट ड्रिंक्स में आमतौर पर चीनी की बजाय आर्टिफिशियल स्वीटनर एस्पार्टेम का इस्तेमाल किया जाता है, जो कैंसर का भी कारण बन सकता है। एस्पार्टेम एक मिथाइल एस्टर नामक कार्बनिक का कंपाउंड है। इसे लैब में बनाया जाता है और चीनी से 200 गुना तक ज्यादा मीठा होता है। स्वीट ड्रिंक्स में यह 95 फीसदी तक इस्तेमाल किया जाता है।


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