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राजस्थान का ग्रीन हाइड्रोजन सपना पानी की कमी में अटका, 2800 केटीपीए के प्रोजेक्ट इंतजार में

Green Hydrogen Project : जयपुर। देश में ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन का सबसे बड़ा केंद्र बनने की राजस्थान सरकार की योजना फिलहाल अटकती नजर आ रही है। सरकार ने भले ही कई बड़े औद्योगिक समूहों का ग्रीन हाइड्रोजन प्रोजेक्ट के लिए पंजीकरण कर लिया हो, लेकिन सबसे जरूरी संसाधन पानी की अब तक ठोस व्यवस्था नहीं हो पाई है।

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सांकेतिक तस्वीर, मेटा एआइ

सांकेतिक तस्वीर, मेटा एआइ

Green Hydrogen Project : जयपुर। देश में ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन का सबसे बड़ा केंद्र बनने की राजस्थान सरकार की योजना फिलहाल अटकती नजर आ रही है। सरकार ने भले ही कई बड़े औद्योगिक समूहों का ग्रीन हाइड्रोजन प्रोजेक्ट के लिए पंजीकरण कर लिया हो, लेकिन सबसे जरूरी संसाधन पानी की अब तक ठोस व्यवस्था नहीं हो पाई है। इस कारण कई कंपनियां प्रोजेक्ट शुरू नहीं कर पाई हैं।

वेस्ट वाटर के उपयोग का सुझाव

अक्षय ऊर्जा विभाग और अक्षय ऊर्जा निगम ने कंपनियों को वेस्ट वाटर (परिशोधित या अनुपयोगी जल) के उपयोग का सुझाव दिया है, लेकिन कंपनियों का कहना है कि वेस्ट वाटर को हाइड्रोजन उत्पादन योग्य बनाने में अतिरिक्त खर्च आएगा, जिससे प्रोजेक्ट महंगे हो जाएंगे। इस वजह से कुछ कंपनियों ने फिलहाल प्रोजेक्ट आगे न बढ़ाने का फैसला किया है, जबकि अन्य अभी भी पानी आवंटन को लेकर सरकार की ओर देख रही हैं। ऐसी सात कंपनियां हैं, जिन्होंने कुल करीब 2800 किलो टन प्रतिवर्ष क्षमता के प्रोजेक्ट प्रस्तावित किए हैं।

पानी आवंटन पर फंसे बड़े प्रोजेक्ट

पावर ग्रिड ने बहरोड़ में प्रोजेक्ट के लिए पानी आवंटन की मांग की थी। अक्षय ऊर्जा निगम ने यह प्रस्ताव जल संसाधन विभाग को भेजा, लेकिन वहां से पानी उपलब्ध न होने की बात कह दी गई। इसके चलते प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ सका। इसी तरह अदाणी, टोरेंट पावर, रिन्यू, अवाडा, एचएमईएल और एकमे जैसी कंपनियां भी पानी की जरूरत जता चुकी हैं। इस मुद्दे पर अक्षय ऊर्जा निगम और जल संसाधन विभाग के बीच मामला अटका हुआ है।

एक किलो हाइड्रोजन के लिए 20 लीटर पानी जरूरी

एक किलो हाइड्रोजन बनाने के लिए करीब 20 लीटर पानी और लगभग 50 यूनिट बिजली की जरूरत होती है। यदि यह बिजली सौर या पवन ऊर्जा से मिले, तो हाइड्रोजन पूरी तरह पर्यावरण अनुकूल मानी जाती है।

इसलिए अहम था ग्रीन हाइड्रोजन प्लान

राजस्थान में सौर ऊर्जा की अपार संभावनाएं हैं, लेकिन पूरी क्षमता का उपयोग नहीं हो पा रहा। इसी को ध्यान में रखते हुए ग्रीन हाइड्रोजन का प्लान बनाया गया था। इससे पेट्रोलियम, रिफाइनरी, स्टील, उर्वरक, सीमेंट, परिवहन और विमानन जैसे क्षेत्रों को स्वच्छ और सस्ता ईंधन मिल सकता था, साथ ही हाइड्रोजन के आयात पर निर्भरता भी कम हो सकती थी।


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