
ध्यान की ओर अग्रसर होने का जरिया है ध्रुपद
Delphic Dialogue Series के तहत डागर ध्रुपद घराने पर हुई चर्चा
जयपुर। डेल्फिक काउंसिल ऑफ राजस्थान की वर्चुअल डेल्फिक डायलॉग श्रृंखला के तहत शनिवार को 'भारतीय संगीत की शास्त्रीय विरासत' पर चर्चा की गई। डेल्फिक डायलॉग की 13वीं कड़ी के दौरान विश्व विख्यात ध्रुपद गायक और पदमश्री उस्ताद एफ वसुफुद्दीन डागर और शबाना डागर शामिल हुईं।
काउंसिल की अध्यक्ष और वन विभाग की प्रमुख शासन सचिव श्रेया गुहा ने बताया कि डागर धु्रपद घराना भारतीय संगीत की शास्त्रीय विरासत पर आधारित श्रृंखला के दौरान ध्रुपद गायन पर विस्तारपूर्वक चर्चा हुई। उस्ताद वसीफुद्दीन डागर ने बताया कि ध्रुपद शास्त्रीय संगीत की सबसे प्राचीन परंपराओं में शुमार है। स्वामी हरिदास से पहले की इस परम्परा का जिक्र तो 12वीं सदी के संगीत रत्नाकर में भी मिलता है।
छंद, प्रबंध, माटा का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि ध्रुपद शब्द धु्रव और पद से मिलकर बना है। यह संगीत की सबसे प्राचीनतम शैली है। भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में रहकर उनके पूर्वजों ने इस विरासत को आगे बढ़ाने में योगदान दिया। ध्रुपद घराने के उस्ताद बाबा बहराम खान का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि पहले के समय में यातायात के साधन नहीं होने की वजह से बैल गाडिय़ों में बैठकर उनके पूर्वजों ने इस परंपरा को आगे पहुंचाया। मध्य भारत से लेकर भारत भर में उनके पूर्वज भिन्न.भिन्न स्थानों पर रहे। इसके बावजूद ध्रुपद शैली के रागों के स्वरूप में कोई बदलाव नहीं आया।
सुरों की गहराई में जाएं तो यह अपने आप को खोजने की कुव्वत है। सत्र में शबाना डागर ने बताया कि ध्रुपद घराने के उस्तादों ने अपने पूर्वजों से मिली तालीम को न केवल जिया बल्कि उसे आगे बढ़ाने में भी योगदान दिया।
Published on:
16 Oct 2021 09:51 pm
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