
जयपुर।
प्रदेश के पूर्व गृहमंत्री दिग्विजय सिंह ( Digvijay Singh ) का निधन हो गया है। उन्होंने 86 वर्ष की आयु में जयपुर में अंतिम सांस ली। दिग्विजय सिंह का राजस्थान की सियासत में एक लंबा राजनितिक सफर रहा है। वे टोंक के उनियारा और देवली से छह बार विधायक रहे। वे तीसरे, चौथे, छठे, आठवें, नवें और ग्यारहवें विधानसभा के दौरान सदस्य रहे। उन्होंने गृह मंत्री के अलावा भी कई महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियाँ संभाली। बताया जा रहा है कि वे पिछले कुछ दिनों से अस्वस्थ्य चल रहे थे और उनका उपचार चल रहा था।
... और दिग्विजय ने बचाई थी शेखावत सरकार
बात 1990 की है। जब अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा को बिहार में रोककर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। इसकी तीखी प्रतिक्रिया में भाजपा ने वीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया।
धड़ों में बंट गई जनता दल
नतीजतन वीपी सिंह सरकार अल्प मत में आ गई। इसका प्रभाव ये पड़ा कि राजस्थान में भैरोसिंह ( Bhairon Singh Shekhawat ) की सरकार गिराने क़े लिए जनता दल के सदस्यों को भी वही खेल खेलने को कहा गया। इस पर राजस्थान में जनता दल दो धड़ों में बंट गया। एक धड़ा ऐसा करने को राज़ी था, जबकि दूसरा धड़ा शेखावत सरकार के साथ रहने पर अड़ा रहा।
'दिग्विजय' से बची गिरती सरकार
इधर भैरोंसिंह शेखावत सरकार की गणित तब बिगड़ गई जब मंत्रिमंडल के 11 सदस्यों ने एक साथ अपने त्यागपत्र सौंप दिए। ऐसे में सरकार गिरने का खतरा मंडराने लगा। पर भैरोंसिंह सरकार के इस बुरे वक्त में साथ दिया जनता दल के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने। दिग्विजय सिंह ने मूल जनता दल से बगावत करते हुए अपना एक अलग खड़ा करने का फैसला ले लिया। इस नए राजनीतिक संगठन को नाम मिला जनता दल (दिग्विजय सिंह) । तब इसी दिग्विजय धड़े ने शेखावत सरकार का साथ दिया। इससे सरकार गिरने से बच गई। पर जनता दल में बिखराव आ गया। जो धड़ा बाहर रहा उसके भी तीन टुकड़े हो गए। ज्यादातर नेताओं ने भाजपा का दामन थाम लिया।
राजस्थान में हो रहीं इन राजनीतिक हलचलों के बाद फिर रोचक मोड़ आया। 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा गिरा दिया गया जिससे पूरे देश में सांप्रदायिक दंगे शुरू हो गए। कांग्रेस के समर्थन से केंद्र में चल रही चंद्रशेखर सरकार ने भैरोंसिंह शेखावत सरकार को अपदस्थ कर दिया। इसके बाद उत्तर भारत में हुए ज्यादातर चुनावों में भाजपा की जीत हुई।
... और राजस्थान में ख़त्म होती चली गई जनता दल
1993 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अकेले दम पर 95 सीटें हासिल कीं। वहीं जनता दल जो कि 90 के चुनावों में 55 सीटें जीतने में कामयाब रहा था, इस बार केवल 6 सीटों पर ही सिमट गया। भैरोंसिंह सरकार गिराने और आयोध्या विवाद के बाद राजस्थान में जनता दल की राजनीति का एक तरह से अंत हो गया और आजादी के बाद पहली बार भाजपा को राजस्थान में जनता दल नाम की 'बैसाखी' से मुक्ति मिल गई।
रोचक: जाने भैरोंसिंह का दूसरा कार्यकाल
राजस्थान में 9 वीं विधानसभा के लिए वर्ष 1990 में चुनाव हुए थे। इसमें भारतीय जनता पार्टी को 85, जनता दल (अविभाजित) को 54 और कांग्रेस (इ) को 50 सीटों पर जीत हासिल हुई। जबकि भाकपा का एक और निर्दलियों के 9 प्रत्याशी भी जीते थे। तब भैरोंसिंह शेखावत ने भाजपा प्रत्याशी के तौर पर छबड़ा और धौलपुर की दो अलग-अलग सीटों से चुनाव लड़ा था। वे दोनों ही स्थानों से विजयी रहे। परिणामस्वरूप भाजपा के 84 नेता विधायक बन गए। लेकिन पार्टी को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं मिल सका। ऐसे में भाजपा ने अविभाजित जनता दल में रणनीति के साथ सेंधमारी की।
भाजपा ने जनता दल से सरकार में शामिल होने का अनुरोध किया जो स्वीकार कर लिया गया। इस तरह से भैरोंसिंह शेखावत के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत हुई। शेखावत सरकार में जनता दल के नत्थीसिंह ने कैबीनेट मंत्री पद की शपथ ली। 1990 में ही जनता दल के दिग्विजय सिंह, चन्द्रभान एवं सुमित्रासिंह ने कैबीनेट मंत्री पद की शपथ ली।
आगे चलकर भैरों सिंह सरकार में जनता दल से प्रो. केदार नाथ, सम्पतराम और मदन कौर को भी कैबीनेट मंत्री बना दिया गया। उसी दिन भाजपा के अन्य नेताओं के साथ जनता दल के रामेश्वर दयाल यादव, देवीसिंह भाटी, नफीस अहमदखां व गोपालसिंह खण्डेला को राज्यमंत्री बनाया गया।
अक्टूबर 1990 को भाजपा की अयोध्या रथ यात्रा के कारण जनता दल ने भाजपा सरकार से अलग होने का निर्णय लिया। जनता दल से जुड़े नत्थीसिंह, सम्पतराम, प्रो. केदार, दिग्विजय सिंह, चन्द्रभान, सुमित्रा सिंह और मदनकौर ने कैबिनेट से जबकि फतहसिंह, गोपालसिंह खण्डेला, रामेश्वर दयाल यादव और नफीस अहमद ने राज्य मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। ऐसे में सरकार अल्पमत में आ गयी। पर नवम्बर आते-आते जनता दल के 22 विधायकों ने भाजपा को समर्थन जारी रखने की घोषणा की। इसके चलते शेखावत सरकार ने विधानसभा में विश्वास मत अर्जित कर लिया और सरकार बच गई।
जनता दल (दिग्विजय) में ये थे साथ
जनता दल (दिग्विजय) में दिग्विजय सिंह के अलावा गंगाराम चौधरी, लालचंद डूडी, भंवरलाल शर्मा, सम्पतसिंह, जगमालसिंह यादव, रामनारायण विश्नोई थे जिन्हें बाद में कैबीनेट मंत्री बना दिया गया। जबकि नफीस अहमद खां, उम्मेदसिंह, जगतसिंह दायमा, मान्धातासिंह, बाबूलाल खाण्डा और रतनलाल जाट को राज्य मंत्री बनाया गया। इसी तरह से मिश्रीलाल चौधरी और डूंगरराम पंवार को उपमंत्री बनाया गया।
Updated on:
29 Oct 2019 11:17 am
Published on:
29 Oct 2019 11:16 am
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