scriptVIDEO: राजस्थान की इस दिव्यांग महिला को सलाम- मशरुम की खेती से कमा रही 20 से 25 लाख, तो दिया इतनों को रोजगार | Divyang women of Rajasthan mushroom farming success story | Patrika News

VIDEO: राजस्थान की इस दिव्यांग महिला को सलाम- मशरुम की खेती से कमा रही 20 से 25 लाख, तो दिया इतनों को रोजगार

locationजयपुरPublished: Feb 08, 2018 08:19:59 pm

मसरूम की खेती की शुरुआत गायत्री ने सबसे पहले अपने घर से की। राजपूत समाज में पर्दा प्रथा काफी होने के कारण घर से बाहर भी नहीं निकलने….

 Mushroom farming by Divyang women
हनुमानगढ़/जयपुर। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं के लिए घर बाहर निकलकर अपने लिए नया स्थान हासिल करना आज भी काफी चुनौतियों से भरा है। ऐसे में एक दिव्यांग महिला जिसे हर समय शारीरिक चुनौतियों के साथ समाजिक प्रथा का ध्यान रखना पड़े तो उसके लिए ये सब कर पाना शायद मुमकिन नहीं हो पाए। लेकिन कुछ ऐसा ही जिले की एक महिला ने कर दिखाया है। तलवाड़ा झील की रहने वाली गायत्री राठौड़ ने दिव्यांगता के साथ-साथ पर्दा प्रथा को दरकिनार कर साबित कर दिया कि आज के दौर की महिला किसी से भी पीछे नहीं नहीं हैं। चाहे वो शारीरिक रुप से अक्षम हो या ना हो। इस महिला किसान ने इलाके में सबसे बड़ा मसरूम प्लांट लगाकर लोगों के लिए मिसाल बनकर उभरी है।
गायत्री को ये कामयाबी ऐसे ही नहीं मिली है। इसके लिए उन्हें अपने ही समाज कई बार संघर्ष करना पड़ा। लेकिन अब उनके इसी काम के कारण उन्हें राज्य स्तर पर कई बार सराहना मिल चुकी है। जबकि हाल ही में महिला एवं बाल विकास विभाग ने राष्ट्रीय स्तर के ‘नारी शक्ति पुरस्कार’ के लिए गायत्री का नाम केंद्र सरकार को भिजवाया है। वर्तमान में गायत्री की सलाह पर जिले के 40 किसान अपने-अपने खेतों में मसरूम के छोटे-छोटे प्लांट लगा चुके हैं। जिन्हें वह निरंतर प्रशिक्षण भी दे रही हैं।
पर्दा प्रथा के बावजूद निकली घर से बाहर-

दरअसल, मसरूम की खेती की शुरुआत गायत्री ने सबसे पहले अपने घर से की। उनका कहना कि साल 1996 में शादी के बाद ससुराल आने पर उन्हें बागवानी करने का मन करता था। लेकिन राजपूत समाज में पर्दा प्रथा काफी होने के कारण घर से बाहर भी नहीं निकलने दिया जाता था। फिर कुछ बरस बाद सास-ससुर की मौत के बाद जब परिवार की जिम्मेदारी दंपती पर आई तो उन्होंने खेती में हाथ बंटाना शुरू किया, लेकिन जेठ-जेठानी और अन्य रिश्तेदारों को यह सब अच्छा नहीं लगता। यहां तक कि कुछ रिश्तेदार तो जमीन बेच भी कर दूसरी जगह चले गए। इस विरोध के बावजूद गायत्री लगातार खेती मेें नवाचार करती रही। तो वहीं उनके इस काम में उनके पिता और पति का पूरा साथ भी मिला। जिसके कारण आज पूरे प्रदेश में गायत्री मिसाल बन गई है।
आय बढ़ने से मिला हौसला-

गायत्री की मानें तो शुरआत में उन्हें इस काम को शुरु करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। सबसे पहले हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में जाकर मसरूम की खेती और इसके बाजार को जाना। फिर उसके बाद गांव में करीब दो बीघे में मसरूम की खेती शुरू की। जिसके लिए खेत में ही 30 लाख रुपए की लागत से प्राकृतिक रूप से मचान बनवाए। इतना ही नहीं फसल को धूप और हवा से बचाने के लिए जूट के थैलै के अलावा पराली से शैड बनाए। इसके बाद गोबर खाद की परतें मचानों पर जमाए। हिमाचल के सोलन से बीज मंगवाकर खेती करने के दौरान शुरुआत में कई दिक्कतें आईं, लेकिन आय लगातार बढ़ती रही।
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अब कमा रही 20 से 25 लाख रुपए-

गायत्री का कहना है कि सबकुछ क्वालिटी पर निर्भर करता है। अच्छे मसरूम होंगे तभी अच्छे रेट भी मिलते हैं। फिलहाल वो मशरुम की खेती के जरिए प्रति सीजन लगभग 20 से 25 लाख रुपए कमा रही हैं। जबकि इसके लिए उन्हें बहुत सतर्कता के साथ रोज बारीकी से निगरानी करनी पड़ती है। गायत्री ने तलवाड़ा झील स्थित अपने खेत में मसरूम प्लांट में बारह से अधिक बड़े मचान बना रखे हैं। जिसमें कुल 48 रैक बने हुए हैं। जबकि कीट के प्रकोप से बचाने के लिए दिन में कई बार सफाई करती हैं।
30 मजदूरों के लिए खोला रोजगार के अवसर-

आपको बता दें कि गायत्री के पति कालू सिंह राठौड़ सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं। तो वहीं उनके पास कुल 10 बीघा जमीन है। जिस पर वो दो बीघे में मसरूम के अलावा एक बीघे में मटर, मिर्च भी लगा रखी हैं। जबकि बाकी के खेतों में गेहूं और सरसों की फसल लगा रखी है। सबसे बड़ी बात इस खेती के जरिए कई लोगों का घर-परिवार का भरण-पोषण भी हो रहा है। मसरूम प्लांट इतना बड़ा है कि इससे करीब 30 मजदूरों को स्थाई रूप से रोजगार भी मिला हुआ है। तो वहीं लगभग 400 से 500 क्विंटल औसत रूप से मसरूम का उत्पादन ले रही हैं। जबकि शादी-ब्याह के सीजन में मसरूम 200 से 260 रुपए प्रति किलो तक बिक जाता है।
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आज अपने लिए समाज में एक अलग स्थान हासिल कर चुकी इस राजपूत महिला का कहना है कि महिला अगर चाह ले तो कोई भी काम मुश्किल नहीं है। तो वहीं बदलाव के लिए किसी को पहल तो करनी ही पड़ती है।
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