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मिर्गी दिवस: घबराएं नहीं, बीमारी के बावजूद महिलाएं पा सकती हैं मातृत्व का सुख

जयपुर। मिर्गी की समस्या अब लाइलाज नहीं रही। चिकित्सा विज्ञान में लगातार विकसित हो रही नई दवाओं और तकनीकों के चलते अब मिर्गी पीड़ित मरीज भी सामान्य जीवन जी सकता है।

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International Epilepsy Day

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जयपुर। मिर्गी की समस्या अब लाइलाज नहीं रही। चिकित्सा विज्ञान में लगातार विकसित हो रही नई दवाओं और तकनीकों के चलते अब मिर्गी पीड़ित मरीज भी सामान्य जीवन जी सकता है। हालांकि महिलाओं में इस बीमारी के होने पर उन्हें न सिर्फ उस बीमारी से बल्कि समाज में फैली भ्रांतियों से भी लड़ना होता है।
मिर्गी की समस्या महिला की फर्टिलिटी को प्रभावित नहीं करती है। अगर किसी महिला को मिर्गी की समस्या है तो इसके बावजूद भी वो मां बनने की पूरी क्षमता रखती है क्योंकि मिर्गी की दवाईयां फर्टिलिटी को बिल्कुल भी प्रभावित नहीं करती हैं। लेकिन गर्भधारण करने से पहले प्लानिंग करना बहुत जरूरी है, क्योंकि गर्भधारण के बाद गर्भस्थ शिशु को दवाओं से नुकसान हो सकता है।

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मिर्गी दिवस पर न्यूरोलॉजिस्ट डॉ.एस.पी.पाटीदार ने महिलाओं में मिर्गी होने पर फैली भ्रांतियों पर सही जानकारी दी। उन्होंने बताया कि मिर्गी से जूझ रही महिलाएं न सिर्फ सामान्य जीवन जी सकती हैं, बल्कि मातृत्व का सुख भी प्राप्त कर सकती हैं। ऐसा तब होगा जब महिला मिर्गी की सही दवाइयां ले और समय-समय पर न्यूरोलॉजिस्ट और ऑब्स्टेट्रिशियन से खुद की जांच कराती रहे और डॉक्टर की सलाह पर अमल करती रहे।

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95 प्रतिशत महिलाओं के बच्चे स्वस्थ पैदा होते हैं
मिर्गी पीड़ित महिलाओं को अपनी प्रेग्नेंसी को लेकर ज्यादा घबराने की आवश्यकता नहीं है। आंकड़ों के अनुसार मिर्गी रोग से ग्रसित 95 प्रतिशत महिलाएं बिल्कुल स्वस्थ बच्चे को जन्म देती हैं। इसके अलावा मिर्गी का अनुवांशिक होने का भी कोई खतरा नहीं होता है। डॉ. पाटीदार ने बताया कि हालांकि गर्भावस्था के 10 से 12 हफ्ते के बीच लेवल-2 सोनोग्राफी टेस्ट करवाना चाहिए जिससे गर्भस्थ शिशु में संभावित विकार के बारे में पता लगाया जा सके। लोगों में यह भी भ्रांति है कि बच्चे के जन्म के बाद मिर्गी पीडित महिलाएं दूध नहीं पिला सकती हैं। इस भ्रांति में कोई सच्चाई नहीं है। बच्चे में मिर्गी रोग नहीं होता है।