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टूट-फूट तक पहुंचा संग्राम तो तीसरे मोर्चे की नींव आसान

असंतुष्ट चेहरों और जातिगत ग णित पर अन्य दलों को चुनावी एडवांटेज की आस  

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टूट-फूट तक पहुंचा संग्राम तो तीसरे मोर्चे की नींव आसान

टूट-फूट तक पहुंचा संग्राम तो तीसरे मोर्चे की नींव आसान

जयपुर. प्रदेश में मौजूदा सियासी संग्राम को कांग्रेस, भाजपा के नुकसान फायदे के नजरिए से तो देखा ही जा रहा है। लेकिन अगर राजनीति की शह-मात का यह खेल पंजाब और मध्यप्रदेश जैसे हालात पर पहुंचता है तो अगले विधानसभा चुनाव के सियासी समीकरणों में तीसरे मोर्चे की नींव आसान नजर आ रही है। 2018 के चुनाव में दोनाें प्रमुख दलों के बाद बेहतर प्रदर्शन करने वाली आम आदमी पार्टी, बसपा और रालोपा पल-पल बदलती सियासत पर नजरें गड़ाए बैठी हैं। अशोक गहलोत और सचिन पायलट समेत दोनों गुटों में नीचे तक शामिल हर नेता के पार्टी से अलगाव की सूरत में पॉलिटिकल एडवांटेज क्या होगा, इस बात का आकलन किया जा रहा है। रालोपा के हनुमान बेनीवाल ने तो खुले तौर पर पायलट को लेकर अपनी सियासी चाल जाहिर कर दी। गुजरात के बाद राजस्थान चुनााव को लेकर राज्य सरकार के खिलाफ अग्रेसिव प्रचार अ भियान छेड़ने वाली आप ने भी संभावित राजनीतिक समीकरणों का एक्शन प्लान तैयार कर लिया है। सूत्रों की मानें तो सियासी संग्राम के बीच मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की प्रस्तावित यात्रा में भी प्लान को मूर्त रूप देने की तैयारी थी। हालांकि यह यात्रा फिलहाल स्थगित कर दी गई।

चेहरे की तलाश
दरअसल, बीते चुनावों में बसपा, आप और रालोपा ने जनता में अपनी स्वीकार्यता को साबित की है। लेकिन सांसद रालोपा में हनुमान बेनीवाल के नेतृत्व को छोड़े तो बसपा और आप में ऐसा कोई चेहरा अब तक नहीं, जिसकी पूरे प्रदेश में पकड़ हो। निर्दलीय विधायकों में भी अ धिकतर बड़े नाम किसी ना किसी दल से जुड़े हैं। यदि संग्राम की परिणाम में इन दलाें को ऐसा कोई चेहरा मिल जाए तो अगले चुनाव में इन दलों को दायरा बढ़ाने में मदद मिलेगी।

वोट बैंक के समीकरण
कांग्रेस में सिर फुटौव्वल के मद्देनजर जातिगत वोट बैंक के समीकरण भी बैठाए जा रहे हैं। सियासी संकट का यदि जाति आधारित समाधान निकाले जाने मैसेज जाता है तो तीसरे मोर्चे के दलों को सहानुभूति कार्ड खेल कर शेष वोट बैंक में सेंध लगाने का मौका मिल जाएगा।

वोट शेयर के बड़े खिलाड़ी
बीते चुनाव में अन्य प्रमुख दल कुल पड़े वोटों का ढाई से चार प्रतिशत तक ले गए थे। इससे अलावा निदर्लीयों को अलग से दस प्रतिशत वोट मिले थे। सभी को एक साथ देखें तो चुनावी नजरिए से अन्य की ताकत छोटी नहीं कही जा सकती।

1 आम आदमी पार्टी
पार्टी को बीते चुनाव 0.38 प्रतिशत वोट मिले थे। पंजाब जीत के बाद पार्टी राजस्थान और गुजरात में भी सरकारों के खिलाफ बड़ा प्रचार अ भियान चला रही है। शहरी मध्यम वर्गीय वोटर में पकड़।

2 बसपा
पार्टी ने पिछले चुनाव में 4.3 प्रतिशत वोटों के साथ छह सीटें जीती थीं। अभी हर विधानसभा स्तर पर संगठन गतिवि धियां संचालित कर रही है। जातिगत आधार पर वोट बैंक में खासी पकड़।

3 रालोपा
पार्टी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल की प्रदेश भर में फायरब्रांड नेता की पहचान। बीते चुनाव 2.40 प्रतिशत वोट लेकर तीन सीटें जीतीं। सियासी संग्राम में खुल कर सचिन पायलट के समर्थन में आए।

4 बीटीपी
जनजाति जिलों में दो सीटों पर पार्टी उम्मीदवार चुने गए। कुल 0.72 प्रतिशत वोट लिए। लेकिन जिन सीटों पर लड़ी, वहां वोट शेयर 13 प्रतिशत तक रहा।


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