कोयले से बनने वाली बिजली महंगी होने के बावजूद उसके उत्पादन पर अधिक राशि खर्च हो रही है, वहीं सस्ती दर पर पानी से बनने वाली बिजली के प्रति राज्य सरकार का रवैया उपेक्षापूर्ण होने से प्रदेश को रोजाना लाखों यूनिट बिजली से वंचित रहना पड़ रहा है। माही विभाग की जर्जर नहर से राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम के लीलवानी स्थित बिजली घर को पर्याप्त पानी नहीं मिलने से मशीनों का पूरा उपयोग नहीं हो पा रहा है। इसके चलते पानी एकत्र होने की स्थिति में दो से तीन दिन में एक बार ही बिजली का उत्पादन संभव हो रहा है।
जर्जर नहर से हो रहा घाटा
जिले में पांच नम्बर विद्युत उत्पादन गृह में 25-25 मेगावाट एवं लीलवानी विद्युत उत्पादन गृह में 45-45 मेगावाट की दो-दो मशीनें लगी हुई हैं। लीलवानी बिजली घर के लिए पानी एलएमसी से जाता है, लेकिन नहर जर्जर होने से 1900 क्यूसेक से भी कम पानी पहुंच रहा है। इसके चलते दो-तीन दिन में पानी एकत्र होता है इसके बाद ही बिजली का उत्पादन हो सकता है। रोजाना पानी मिलने की स्थिति में यहां पर प्रत्येक मशीन से10.80 लाख यूनिट बिजली का उत्पादन संभव है। एेसे में प्रतिदिन 20 से 22 लाख यूनिट बिजली का उत्पादन नहीं हो पा रहा है। वहीं पीएच-एक में प्रतिदिन 8 लाख यूनिट बिजली का उत्पादन हो रहा है, जबकि यहां 12 लाख यूनिट का उत्पादन संभव है। इससे 4 लाख यूनिट रोज का नुकसान हो रहा है।
14 करोड़ का लक्ष्य
इस संबंध में आरवीवीएनएल अधीक्षण अभियन्ता केसी भावसार ने बताया कि जिले में माहीबांध में उपलब्ध पानी को देखते हुए इस वर्ष 14 करोड़ यूनिट बिजली उत्पादन का लक्ष्य दिया गया है। अब तक 8 करोड़ 75 लाख यूनिट बिजली का उत्पादन ही हो पाया है। यदि इसी तरह पानी की किल्लत बनी रही तो लक्ष्य अर्जित करना मुश्किल हो जाएगा।