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करौली के महंगे लाल पत्थरों को कर दिया लाल-पीला

टोंक रोड पर लगे लाल पत्थर को जेडीए लाल-पीला कर रहा है। जबकि, इसको लगाने में जेडीए करोड़ों रुपए खर्च किए थे। अब राइजिंग राजस्थान की तैयारियों के नाम पर लाल पत्थर को गायब ही कर दिया।

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जयपुर। टोंक रोड पर करौली के लाल पत्थर को काला-पीला करने का काम जेडीए कर रहा है। करीब 10 वर्ष पहले जेडीए ने विशेष अनुमति लेकर टोंक रोड पर करीब नौ किमी में डिवाइडर और सड़क किनारे ये पत्थर लगाए थे। अब राइजिंग राजस्थान इंवेस्टमेंट समिट की तैयारियों को देखते हुए इन करौली के पत्थरों रंगा जा रहा है। सूत्रों की मानें तो नगरीय विकास विभाग के आला अधिकारियों के कहने पर ये रंग किया जा रहा है।

दो जगह लगवाया था करौली का पत्थर
-वर्ष 2015-16 में जेडीए ने टोंक रोड (अजमेरी गेट से सांगानेरी पुलिया) और भवानी सिंह रोड (22 गोदाम से जेडीए सर्कल तक) करौली का पत्थर लगवाया था। चार फीट के इस पत्थर की कीमत 1200 रुपए थी। उस समय जेडीए ने चार करोड़ रुपए खर्च किए थे। आज एक पत्थर की कीमत दो हजार रुपए के आस-पास है।
-धीरे-धीरे वाहनों के धुंए से पत्थर बदरंग हो गए थे। जेडीए इनकी सफाई नहीं करवा पाया। इस वजह से जेडीए ने इनको ढकना शुरू कर दिया।

यहां भी गेरुआ रंग से पोत रहे

परकोटे में कई जगह पत्थर को पोतने का काम चल रहा है। वहीं, रामलीला मैदान के बाहर के डिवाइडर को भी गेरू से पोता जा रहा है।

...तो पैसा भी बचता
जिस आकार के करौली पत्थर को लगाया गया, उस आकार के सीमेंटेंड ब्लॉक्स भी बनाए जा सकते थे, उनकी कीमत करीब 400 रुपए ही आती। ऐसे में न सिर्फ पैसे बचते, बल्कि आसानी से रंग-रोगन भी किया जा सकता।

अच्छी सड़क पर नई सड़क
हैरिटेज नगर निगम ने चौड़ा रास्ता में सड़क बनाने में जल्दबाजी दिखाई। बुधवार को रातो-रात एक ओर की सड़क बना दी। जबकि, स्थानीय व्यापारियों का कहना है कि सड़क सही थी। अच्छी सड़क पर नई सड़क बना देने से तीन इंच ऊंचाई और बढ़ गई। इसको लेकर व्यापारियों में नाराजगी है। व्यापारियों का कहना है कि बरसात के दिनों में जलभराव होता है। वहीं, त्रिपोलिया बाजार से न्यू गेट की ओर आने वाली सड़क का काम लोगों ने रुकवा दिया। पार्षद अमर गुर्जर ने कहा कि पहले सड़क को चार इंच उखाड़ा जाए, उसके बाद निगम नई सड़क बनाए।

करीब 10 वर्ष पहले लगा पत्थर धीरे-धीरे बदरंग हो गया था। ऐसे में दृश्यता भी कम होती चली जा रही थी। इसको साफ नहीं किया जा सकता। ऐसे में जो बेहतर विकल्प हो सकता था, उसी पर काम किया गया। यातायात नियमों का भी ध्यान रखा गया है।

-देवेंद्र गुप्ता, निदेशक, अभियांत्रिकी शाखा, जेडीए


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