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इन साहसी महिलाओं ने राजस्थान की माटी को दुनिया में दिलाई नई पहचान, नहीं रही किसी का मोहताज

इन महिलाओं ने उस जमाने में घर की चौखट से बाहर निकल अपने लिए मुकाम हासिल किया। जब यहां पुरुष समाज का बोलबाला था।

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जयपुर

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Punit Kumar

Nov 02, 2017

 Women Personalities OF RAJASTHAN

जहां वर्तमान में प्रदेश की महिलाएं अपनी योग्यता साबित कर पूरे प्रदेश का नाम रोशन कर रही हैं, तो वहीं यहां कुछ ऐसी महिलाओं ने जन्म लिया जो आज भले ही बीती बात हो चुकी हों, लेकिन इनके योगदान के लिए आज भी इन्हें जाना जाता हैं। इन महिलाओं ने उस जमाने में घर की चौखट से बाहर निकल अपने लिए मुकाम हासिल किया। जब यहां पुरुष समाज का बोलबाला था। इसके अलावा कुछ वीरांगनाओं ने तो अपने ऐताहिसक फैसले और वीरता से राजस्थानी माटी को एक नया पहचान दिलाया। ये महिलाएं कभी किसी पहचान की मोहताज नहीं रही। आइए जानते हैं इन महिला हस्तियों के बारे में...

महारानी गायत्री देवी-

अपने खास जीवन शैली और सुंदरता के लिए इनका नाम विश्व की सुंदर स्त्रियों में लिया जाता था। इनका जन्म 23 मई 1919 लंदन में हुआ। इनका नाम दुनिया की 10 सबसे सुदंर महिलाओं में लिया जाता था, जिसे वोग मैगजीन द्वारा चुना गया था। राजनीति में भी प्रवेश किया तथा जयपुर से भाजपा की सांसद चुनी गई। भारत में इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी के कोप के भाजन भी बनना पड़ा, और गिफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था। इनकी सुंदरता के चर्चे दूर-दूर तक थे। तो वहीं इनकी सुंदरता के दिवानों में कई बड़े चेहरे भी शामिल थे। 29 जुलाई 2009 रानी गायत्री का जयपुर में निधन हो गया।

हाड़ी रानी-

यहां के वीर पुत्रों के साथ इस माटी में जन्मी कुछ ऐसी भी वीरांगनाओं के बारे में जानने को मिलता है, जिनकी मिसाल आज भी राजस्थान के लोग बड़े शान और अदब से देते हैं। इन्हीं में से एक थी हाड़ा रानी। राजस्थान खासकर मेवाड़ के स्वर्णिम इतिहास में इनको विशेष स्थान प्राप्त है। बात 16वीं शताब्दी की है, इस नई-नवेली दुल्हन ने अपने वीर को जीत दिलाने के लिए अपना कटा शीश रणभूमि में भिजवा दिया था। तो वहीं हाड़ा रानी के नाम पर राजस्थान पुलिस की महिला बटालियन का नामकरण भी किया गया है। हाड़ी रानी जैसी वीरांगना इस वीर धरती के लिए बलिदान की एक अनूठी मिसाल हैं।

रानी पद्मिनी-

पहली बार बाहरी आक्रमणकारियों को अहसास हुआ कि राजस्थान की वीरांगनाएं भी अपने विरोधियों के हौसले पस्त कर सकती है। पद्मिनी चित्तौड़ की रानी थी, जिसे पद्मावति के नाम से जाना जाता था। जिनके पति रतन सिंह थें। उस कालक्रम में इनकी सुंदरता के आगे शायद ही कोई रानी या राजकुमारी रही हो। इनकी साहस और बलिदान की गौरवगाथा की मिसाल आज भी राजस्थान में दी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि जब खिलजी वंश का क्रूर शासक अलाउद्दीन खिलज़ी रानी पद्मावति को पाने के लिए चित्तौड़ के किले को घेर लिया था, तब रानी ने आग में कूदकर अपने प्राण की आहुति दे दी। लेकिन अपने सतीत्व पर आंच नहीं आने दिया। राजस्थान में इनकी जौहर गाथा अक्सर महिलाएं गाते दिख जाती हैं। आज कल इनके जीवन पर बन रही फिल्म रानी पद्मावति काफी विवादों के कारण सुर्खियों में बनी हुई है।

मीरा बाई-

मीरा बाई जन्म 1498 में राजस्थान के पाली स्थित कुड़की गांव में हुआ था। इनका नाम कृष्ण भक्ति शाखा की अहम कवयित्रियों में लिया जाता है। ये सोलहवीं शताब्दी की विश्व चर्चित हिन्दू कवयित्री थीं। तो वहीं इन्हें कृष्ण का परम भक्त के नाम से भी जाना जाता है। इनके द्वारा रचित पदों में कृष्ण की भक्ति झलकती थी। इतना ही कृष्ण को वो अपना स्वामी तक मानती थी, और इसके लिए उन्हें कई विरोधों का भी समाना करना पड़ा। उस काल में मीरा बाई रुढ़िवादी परंपराओं की अहम आलोचक के साथ मुखर विरोधी रही। इनकी मृत्यु 1557 में द्वारिका में भगवान कृष्ण की साधना करते हुई।

पन्ना धाय-

मेवाड़ के शासक राणा सांगा के पुत्र उदयसिंह की धाय मां जिसे राजस्थान में पन्ना धाय के नाम से जाना जाता है। जानकारों के मुताबिक, इनका जन्म 8 मार्च 1490 को राजस्थान के पांडोली गांव में हुआ था। जबकि चित्तौड़ का शासक बनने की लालसा रखने वाला दासी पुत्र बनवीर से उदयसिंह को बचाने के लिए ये कुंभलगढ़ के जगंलों में काफी दिनों तक भटकती रही। इनके बलिदान की मिसाल पूरे प्रदेश में दी जाती है, कि कैसे बनवीर से उदयसिंह को बचाने के लिए पन्ना धाय ने उन्हें झूठी पत्तल में रख महल के बाहर भिजवा दिया और उनके स्थान पर अपने पुत्र को सुला दिया। जिसके बाद बनवीर की रक्तरंजित तलवार ने उनके बेटे चंदन की हत्या कर दी। बावजूद इसके पन्ना धाय अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटी। इनके नाम पर राज्य सरकार पन्नाधाय जीवन अमृत योजना भी चला रही है, जो कि महिलाओं के लिए विशेष रुप से लाई गई है।

यशोदा देवी-

देश की आजादी के बाद राजस्थान में पहली बार विधानसभा का चुनाव साल 1952 में हुआ, हालांकि इसमें राज्य की किसी महिला उम्मीदवार ने जीत नहीं दर्ज कर सकी थी। लेकिन उसके बाद 1953 में हुए उपचुनाव में बांसवाड़ा विधानसभा सीट से यशोदा देवी चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचने वाली राज्य की पहली महिला विधायक बनने का गौरव हासिल किया। 3 जनवरी 2004 में इनका निधन हो गया। इनका जन्म 1927 में हुआ था।

सुमित्रा सिंह-

राजस्थान विधानसभा की पहली महिला अध्यक्षा सुमित्रा सिंह का जन्म 3 मई 1930 को हुआ था। साल 1957 में अखिल भारतीय कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत पहली बार विधायक बनी। इसके बाद साल 1962 से लगातार चार बार इन्होंने झुंझुनू से विधानसभा चुनाव जीता। साल 2003 में बीजेपी के टिकट पर झुंझुनू से विधायक बनकर अब तक नौ बार विधानसभा पहुंचने का गौरव हासिल कर चुकी हैं। साल 2004 में सुमित्रा सिंह को राजस्थान विधानसभा का 12वीं अध्यक्षा के तौर पर चुना जा चुका है।